राज शेखर, नई दिल्ली
फरवरी में हुए दंगों की साजिश को लेकर हजारों पन्नों की चार्जशीट यूं ही तैयार नहीं हुई। दिल्ली पुलिस ने जांच के लिए नई साइंटिफिक तकनीकों का इस्तेमाल किया। चूंकि केस काफी संवेदनशील था, इसलिए जांचकर्ताओं ने कॉल डीटेल्स रिकॉर्ड जैसे परंपरागत टूल्स से इतर जाकर ऐडिशनल तकनीक इस्तेमाल हुई। मसलन, इंटरनेट प्रोटोकॉल डीटेल्स रिकॉर्ड एनालिसिस के साथ एक प्रयोग किया गया। पश्चिमी देशों की पुलिस अक्सर इसका इस्तेमाल करती हैं। इसमें उन स्मार्टफोन्स के इंटरनेट ट्रैफिक को स्टडी किया जाता है जो VoIP कॉल्स वगैरह के जरिए कनेक्ट होते हैं। इसके जरिए उन स्मार्टफोन यूजर्स के बीच कनेक्शन स्थापित किया जा सकता है। दिल्ली दंगों के कई आरोपी वॉट्सऐप और टेलिग्राम के जरिए कॉल्स पर बात करते थे। ऐसे में यह तकनीक काम आई।
शिनाख्त और पैसों के लेन-देन का पता लगाने के लिए सॉफ्टवेयर
हिंसा भड़काने के लिए पैसा कहां से आया और किसके पास गया, इसका पता भी एक सॉफ्टवेयर के जरिए चला। दिल्ली पुलिस ने फंड फ्लो एनालिसिस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर आरोपियों के ट्रांजेक्शंस में पैटर्न्स तलाशे और फिर उस रकम के कथित रूप से दंगों में इस्तेमाल का कनेक्शन जोड़ा। एक जांचकर्ता ने कहा, "हमने जला दिए गए शवों की पहचान के लिए फेशियल रीकंस्ट्रक्शन सॉफ्टवेयर यूज किया। पीड़ितों की तस्वीरों पर खोपड़ी को सुपरइम्पोज किया गया।"
दिल्ली दंगाः 17,000 पेज की चार्जशीट, जानें किनके नाम
मैसेज से पहचान, जियो लोकेशन से मिले सुराग
कथित दंगाइयों की पहचान टेक्स्ट मैसेजेस के जरिए भी हुई। वाहनों को आग लगाने से पहले ई-वाहन को मैसेज भेजकर उनके मालिकों का पता लगाया गया था। एक सूत्र ने कहा, "दंगों वाले दिन जिन नंबर्स से मैसेज भेजे गए थे, वो हमें सरकारी डेटाबेस से हासिल हुए। क्राइम ब्रांच की स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम (SIT) ने भी दंगों से जुड़े अन्य मामलों की जांच में इन तकनीकों का यूज किया। आरोपियों के मूवमेंट्स का पता लगाने के लिए पुलिस ने उनके फोन्स में इंस्टॉल गूगल मैप्स की डीटेल्स निकालीं। जियो-लोकेशन एनालिसिस के जरिए राहुल सोलंकी के मर्डर केस को सुलझाने में मदद मिली। सोलंकी को 24 फरवरी की शाम 5.50 बजे गोली मारी गई थी।
तकनीक से हुई ढाई हजार से ज्यादा की पहचान
एक अधिकारी ने कहा, "हमने सड़कों पर लगे सीसीटीवी कैमरों, स्मार्टफोन, मीडिया हाउसेज और अन्य जगह से आईं वीडियो रिकॉर्डिंग्स से कुल 945 वीडियो क्लिप्स हासिल कीं। फिर एनालिटिक्स टूल और फेशियल रिकग्निशन सिस्टम की मदद से उन्हें एनालाइज किया गया। उनसे निकली फोटोग्राफ्टस कई डेटाबेस से मैच हुईं। इससे हमें 2,655 लोगों की पहचान औन उनके खिलाफ सबूतों के आधार पर कानूनी कार्रवाई करने में मदद मिली।
एक-दूसरे की मदद कर राख होने से बचाईं 50 दुकानें
शाहबाज मर्डर केस में काम आई फेस रिकग्निशन तकनीक
फेशियल रिकग्निशन तकनीक का इस्तेमाल उन लाशों की शिनाख्त के लिए किया गया जो पूरी तरह जल चुकी थीं। करावल नगर के शाहबाज की हत्या के मामले में खासतौर पर यह तकनीक इस्तेमाल हुई। आरोपियों के पास से सीज किए गए मोबाइल हैंड्सेट्स से डेटा रिकवर किया गया। इन मोबाइल्स से कई कॉल रिकॉर्डिंग्स, वीडियो हासिल हुए जो डिजिटल सबूत बने। जब दिल्ली पुलिस कमिश्नर एसएन श्रीवास्तव से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा, "मामला अदालत में है इसलिए डीटेल्स साझा नहीं की जा सकतीं। लेकिन मैं इससे सहमत हूं कि हमारी जांच काफी हद तक साइंटिफिक टूल्स और मेथड्स पर आधारित है।"
फरवरी में हुए दंगों की साजिश को लेकर हजारों पन्नों की चार्जशीट यूं ही तैयार नहीं हुई। दिल्ली पुलिस ने जांच के लिए नई साइंटिफिक तकनीकों का इस्तेमाल किया। चूंकि केस काफी संवेदनशील था, इसलिए जांचकर्ताओं ने कॉल डीटेल्स रिकॉर्ड जैसे परंपरागत टूल्स से इतर जाकर ऐडिशनल तकनीक इस्तेमाल हुई। मसलन, इंटरनेट प्रोटोकॉल डीटेल्स रिकॉर्ड एनालिसिस के साथ एक प्रयोग किया गया। पश्चिमी देशों की पुलिस अक्सर इसका इस्तेमाल करती हैं। इसमें उन स्मार्टफोन्स के इंटरनेट ट्रैफिक को स्टडी किया जाता है जो VoIP कॉल्स वगैरह के जरिए कनेक्ट होते हैं। इसके जरिए उन स्मार्टफोन यूजर्स के बीच कनेक्शन स्थापित किया जा सकता है। दिल्ली दंगों के कई आरोपी वॉट्सऐप और टेलिग्राम के जरिए कॉल्स पर बात करते थे। ऐसे में यह तकनीक काम आई।
शिनाख्त और पैसों के लेन-देन का पता लगाने के लिए सॉफ्टवेयर
हिंसा भड़काने के लिए पैसा कहां से आया और किसके पास गया, इसका पता भी एक सॉफ्टवेयर के जरिए चला। दिल्ली पुलिस ने फंड फ्लो एनालिसिस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर आरोपियों के ट्रांजेक्शंस में पैटर्न्स तलाशे और फिर उस रकम के कथित रूप से दंगों में इस्तेमाल का कनेक्शन जोड़ा। एक जांचकर्ता ने कहा, "हमने जला दिए गए शवों की पहचान के लिए फेशियल रीकंस्ट्रक्शन सॉफ्टवेयर यूज किया। पीड़ितों की तस्वीरों पर खोपड़ी को सुपरइम्पोज किया गया।"
दिल्ली दंगाः 17,000 पेज की चार्जशीट, जानें किनके नाम
मैसेज से पहचान, जियो लोकेशन से मिले सुराग
कथित दंगाइयों की पहचान टेक्स्ट मैसेजेस के जरिए भी हुई। वाहनों को आग लगाने से पहले ई-वाहन को मैसेज भेजकर उनके मालिकों का पता लगाया गया था। एक सूत्र ने कहा, "दंगों वाले दिन जिन नंबर्स से मैसेज भेजे गए थे, वो हमें सरकारी डेटाबेस से हासिल हुए। क्राइम ब्रांच की स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम (SIT) ने भी दंगों से जुड़े अन्य मामलों की जांच में इन तकनीकों का यूज किया। आरोपियों के मूवमेंट्स का पता लगाने के लिए पुलिस ने उनके फोन्स में इंस्टॉल गूगल मैप्स की डीटेल्स निकालीं। जियो-लोकेशन एनालिसिस के जरिए राहुल सोलंकी के मर्डर केस को सुलझाने में मदद मिली। सोलंकी को 24 फरवरी की शाम 5.50 बजे गोली मारी गई थी।
तकनीक से हुई ढाई हजार से ज्यादा की पहचान
एक अधिकारी ने कहा, "हमने सड़कों पर लगे सीसीटीवी कैमरों, स्मार्टफोन, मीडिया हाउसेज और अन्य जगह से आईं वीडियो रिकॉर्डिंग्स से कुल 945 वीडियो क्लिप्स हासिल कीं। फिर एनालिटिक्स टूल और फेशियल रिकग्निशन सिस्टम की मदद से उन्हें एनालाइज किया गया। उनसे निकली फोटोग्राफ्टस कई डेटाबेस से मैच हुईं। इससे हमें 2,655 लोगों की पहचान औन उनके खिलाफ सबूतों के आधार पर कानूनी कार्रवाई करने में मदद मिली।
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शाहबाज मर्डर केस में काम आई फेस रिकग्निशन तकनीक
फेशियल रिकग्निशन तकनीक का इस्तेमाल उन लाशों की शिनाख्त के लिए किया गया जो पूरी तरह जल चुकी थीं। करावल नगर के शाहबाज की हत्या के मामले में खासतौर पर यह तकनीक इस्तेमाल हुई। आरोपियों के पास से सीज किए गए मोबाइल हैंड्सेट्स से डेटा रिकवर किया गया। इन मोबाइल्स से कई कॉल रिकॉर्डिंग्स, वीडियो हासिल हुए जो डिजिटल सबूत बने। जब दिल्ली पुलिस कमिश्नर एसएन श्रीवास्तव से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा, "मामला अदालत में है इसलिए डीटेल्स साझा नहीं की जा सकतीं। लेकिन मैं इससे सहमत हूं कि हमारी जांच काफी हद तक साइंटिफिक टूल्स और मेथड्स पर आधारित है।"
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