Tuesday, April 28, 2020

1918..तब स्पेनिश फ्लू ने ली थी करोड़ों जान

अविजित घोष, नई दिल्ली
राजधानी दिल्ली देश में कोरोनावायरस से सबसे अधिक प्रभावित शहरों में शामिल है। करीब 100 साल पहले इसी तरह की एक बीमारी ने दिल्ली में तबाही मचाई थी। उस वैश्विक महामारी के कारण भारतीय उपमहाद्वीप में करीब 1.8 से 2 करोड़ लोगों की मौत हुई थी। अकेले दिल्ली में इस महामारी ने करीब 23 हजार लोगों की जान ली थी।

समुद्र के रास्ते भारत पहुंचा था स्पेनिश फ्लू
उस खतरनाक बीमारी को स्पेनिश फ्लू नाम दिया गया था और कोरोना की तरह उसमें भी मरीज को बुखार आता था। इस बीमारी ने 2018 के मई-जून में समुद्र से रास्ते मुंबई (तब बंबई) में दस्तक दी थी। साइंस जर्नलिस्ट लॉरा स्पिनी ने अपनी किताब ‘पेल राइडर’ में बंबई से एक स्वास्थ्य अधिकारी के हवाले से लिखा, ‘स्पेनिश फ्लू रात में चोर की तरह घुसा और उसने बहुत तेजी से अपने पैर पसारे।’ अगले कुछ महीनों के दौरान यह महामारी रेलवे के जरिये देश के दूसरे शहरों में भी फैल गई। इसकी दूसरा दौर सितंबर में आया जो पहले से काफी खतरनाक था।

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जॉन बैरी ने भारत के भयावह मंजर का किया था जिक्र
न्यू ओरलियंस के लेखक जॉन बैरी ने अपनी किताब ‘द ग्रेट एनफ्लूएंजा’ में दिल्ली में स्पेनिश फ्लू के भयावह मंजर का वर्णन किया है। वह लिखते हैं, ट्रेनें लोगों को लेकर एक स्टेशन से चलती थी और लाशों को लेकर अगले स्टेशन पर पहुंचती थीं। दिल्ली के एक अस्पताल ने एनफ्लूएंजा के 13,190 मरीजों का इलाज किया जिनमें से 7,044 की मौत हो गई।

'दिल्ली को अपने हाल पर छोड़ दिया गया'
ऐसी मुश्किल घड़ी में दिल्ली के मुख्य आयुक्त विलियम मैलकम हैली ने शहर को अपने हाल पर छोड़ दिया और अगस्त से तीन महीने की छुट्टी पर चले गए। इस दौरान उन्होंने जापान की यात्रा की। हैली के जीवनीकार जॉन डब्ल्यू सेल ने हैलीः ए स्टडी इन ब्रिटिश इम्पीरिएलिज्म में लिखा है, ‘कुछ समय तक मत्स्य आखेट के बाद हैली कोरिया और उत्तरी चीन होते हुए वापस लौट आए।’

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हैली ने लिखा था चेम्सफोर्ड को खत
दिल्ली में एक सड़क का नाम हैली के नाम पर रखा गया है। हैली अक्टूबर के मध्य में दिल्ली पहुंचे। उन्होंने 19 अक्टूबर को लॉर्ड चेम्सफोर्ड को लिखा, ‘दिल्ली एनफ्लूएंजा से कराह रही है। यह ऐसी बीमारी है जिसे नजरअंदाज किया जाए तो यह घातक हो सकती है। कल इससे 264 लोगों की मौत हुई। शहर में लगभग हर कोई इस बीमारी की चपेट में है।’

दिल्ली में हजारों की हुई थी मौत
7 नवंबर, 1918 को द टाइम्स ऑफ इंडिया ने स्पेनिश फ्लू महामारी पर हैली के 5 नवंबर का एक पत्र प्रकाशित किया जिसमें उन्होंने कहा, ‘इस महामारी के कारण दिल्ली में अब भी बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो रही है लेकिन इस बात से उम्मीद बंधती है कि अब निश्चित रूप से इसमें कमी आ रही है।’ 15 से 31 अक्टूबर तक मरने वालों की संख्या इस प्रकार थीः 116, 126, 115, 250, 276, 351, 333, 357, 418, 656 (दो दिन), 326, 317, 317 और 259। संयोग की बात है कि हैली ने अपने पत्र में 264 लोगों की मौत का जिक्र किया था लेकिन इनमें से कोई भी आंकड़ा उससे मेल नहीं खाता है। 1 नवंबर को मरने वालों की संख्या घटकर 201 हो गई और 2-3 नवंबर (दो दिन) 297 लोग मारे गए। सेल ने लिखा, ‘ब्रिटिश भारत की राजधानी में करीब 23,000 लोगों की मौत हुई।’

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'दिल्ली बन गई थी लाशों का शहर'
हैली ने साथ ही कहा कि महामारी की शुरुआत में ही मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए किए गए इंतजाम धराशायी हो गए। अहमद अली ने अपनी किताब ‘ट्वलाइट इन देल्ही’ में स्पेनिश एनफ्लूएंजा के मंजर का विस्तार से वर्णन किया है। वह लिखते हैं कि दिल्ली लाशों का शहर बन गई थी जहां कफन चोर धड़ल्ले से अपना काम करते थे, कब्र खोदने वालों ने अपना मेहनताना और कपड़ा व्यापारियों ने कफन की कीमत बढ़ा दी थी।

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'हर समय निकलती थी मय्यत'
वह लिखते हैं, ‘शहर में हर समय किसी न किसी की मय्यत निकलती रहती थी। जल्दी ही कब्रिस्तान में जगह खत्म हो गई और लाश को सुपुर्दे खाक करने के लिए तीन गज जमीन ढूंढना भी मुश्किल हो गया। जीते जी कोई सुकून नहीं था और ऐसा लगता था कि मरने के बाद भी सुकून की उम्मीद नहीं थी।’

'कई लाशों को कफन तक नसीब नहीं हुआ था'

अली ने लिखा है, ‘इस मामले में हिंदू भाग्यशाली थे। वे यमुना किनारे जाते थे और मृतक का अंतिम संस्कार करते थे और राख फेंक देते थे। कई लाशों को तो कफन तक नसीब नहीं हुआ। लेकिन मरने के बाद इसका कोई मतलब नहीं था कि आपका तन ढका हुआ है या नहीं, आपके जला दिया गया है या गिद्धों का भोजन बनने के लिए छोड़ दिया गया है।’

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