नई दिल्ली
शिव विहार इलाके के दंगा पीड़ितों के लिए मुस्तफाबाद स्थित ईदगाह में लगाया गया राहत शिविर सोमवार से शुरू हो गया। शिविर में पहुंचे कई दंगा पीड़ितों ने आपबीती सुनाई। पीड़ितों का दर्द जब उनकी जुबान पर आया तो उनका गला रुंध गया, आंखें नम हो गई। लोगों ने बताया कि उनका पूरा घर तबाह हो गया। अब उनके पास न सर छिपाने की जगह बची है और न पहनने-ओढ़ने के लिए कपड़े।
अम्बिका विहार में रहने वाले नसीम अहमद तीन बेटों और एक शादीशुदा बेटी के साथ यहां रहते हैं। घर पर ही सिलाई मशीनें लगा रखी हैं। तीनों बाप बेटे यही काम करते हैं। दो बेटों की शादी हो चुकी है। उनके तीन छोटे बच्चे भी हैं। उपद्रवियों की नजर लगातार उनके घर पर थी। जब भी दंगाई उनकी कॉलोनी में पहुंचते, उनके पड़ोसी आनंद सोनी ढाल बनकर खड़े हो जाते। इतना ही नहीं, पड़ोसी ने उनके घर के बाहर ताला भी लगा दिया। जब भी उपद्रवी यहां आते, यह कहकर उन्हें टरका देते कि ये लोग तो काफी पहले ही मकान छोड़कर चले गए हैं।
कुछ उपद्रवियों ने उनके मकान को नुकसान पहुंचाना चाहा, तब भी उन्होंने किसी तरह से मकान को तहस-नहस होने से बचा लिया। लेकिन मंगलवार को जब उपद्रवियों की भीड़ हंगामा करते हुए कॉलोनी में पहुंची तो उन्हें लगा कि अब बचना मुश्किल है। तब पड़ोसियों ने पीछे के रास्ते से उन्हें सुरक्षित घर से बाहर निकाला। इसके बाद वह लोनी में अपने रिश्तेदार के घर पहुंचे। कुछ दिन पहले ही उन्होंने तीन लाख रुपये की कमिटी छुड़ाई थी, वह पैसा भी घर में रखा हुआ था। वहीं, शिव विहार फेज 7 की गली नंबर 19 में रहने वाले मुजफ्फर हुसैन ने बताया कि उन्होंने हिंसा वाले दिन शाम 4 बजे से पुलिस को कॉल करनी शुरू की थी, लेकिन पुलिस मौके पर नहीं पहुंची।
शिव विहार 25 फीट रोड पर रहने वाले मोहम्मद जाकिर ने बताया कि वह होजरी के कारीगर हैं, करावल नगर में काम करते थे। 24 फरवरी को उपद्रवियों की भीड़ उनकी कॉलोनी में घुस आई और एक-एक करके सभी घरों पर पथराव और आग लगानी शुरू कर दी। उस समय वह पत्नी और चार बच्चों के साथ घर में मौजूद थे। कुछ समय के लिए तो सोचने-समझने की शक्ति खत्म हो गई। किसी तरह पत्नी और बच्चों के साथ जान बचाकर भागे, चमन पार्क में अपने रिश्तेदार के यहां पहुंचे। उन्होंने बताया कि पूरा एक सप्ताह हो गया है, बेघर हुए। अब भी इतनी हिम्मत नहीं हो रही है कि कॉलोनी में जाकर अपने घर की हालत देखें।
शिव विहार इलाके के दंगा पीड़ितों के लिए मुस्तफाबाद स्थित ईदगाह में लगाया गया राहत शिविर सोमवार से शुरू हो गया। शिविर में पहुंचे कई दंगा पीड़ितों ने आपबीती सुनाई। पीड़ितों का दर्द जब उनकी जुबान पर आया तो उनका गला रुंध गया, आंखें नम हो गई। लोगों ने बताया कि उनका पूरा घर तबाह हो गया। अब उनके पास न सर छिपाने की जगह बची है और न पहनने-ओढ़ने के लिए कपड़े।
अम्बिका विहार में रहने वाले नसीम अहमद तीन बेटों और एक शादीशुदा बेटी के साथ यहां रहते हैं। घर पर ही सिलाई मशीनें लगा रखी हैं। तीनों बाप बेटे यही काम करते हैं। दो बेटों की शादी हो चुकी है। उनके तीन छोटे बच्चे भी हैं। उपद्रवियों की नजर लगातार उनके घर पर थी। जब भी दंगाई उनकी कॉलोनी में पहुंचते, उनके पड़ोसी आनंद सोनी ढाल बनकर खड़े हो जाते। इतना ही नहीं, पड़ोसी ने उनके घर के बाहर ताला भी लगा दिया। जब भी उपद्रवी यहां आते, यह कहकर उन्हें टरका देते कि ये लोग तो काफी पहले ही मकान छोड़कर चले गए हैं।
कुछ उपद्रवियों ने उनके मकान को नुकसान पहुंचाना चाहा, तब भी उन्होंने किसी तरह से मकान को तहस-नहस होने से बचा लिया। लेकिन मंगलवार को जब उपद्रवियों की भीड़ हंगामा करते हुए कॉलोनी में पहुंची तो उन्हें लगा कि अब बचना मुश्किल है। तब पड़ोसियों ने पीछे के रास्ते से उन्हें सुरक्षित घर से बाहर निकाला। इसके बाद वह लोनी में अपने रिश्तेदार के घर पहुंचे। कुछ दिन पहले ही उन्होंने तीन लाख रुपये की कमिटी छुड़ाई थी, वह पैसा भी घर में रखा हुआ था। वहीं, शिव विहार फेज 7 की गली नंबर 19 में रहने वाले मुजफ्फर हुसैन ने बताया कि उन्होंने हिंसा वाले दिन शाम 4 बजे से पुलिस को कॉल करनी शुरू की थी, लेकिन पुलिस मौके पर नहीं पहुंची।
शिव विहार 25 फीट रोड पर रहने वाले मोहम्मद जाकिर ने बताया कि वह होजरी के कारीगर हैं, करावल नगर में काम करते थे। 24 फरवरी को उपद्रवियों की भीड़ उनकी कॉलोनी में घुस आई और एक-एक करके सभी घरों पर पथराव और आग लगानी शुरू कर दी। उस समय वह पत्नी और चार बच्चों के साथ घर में मौजूद थे। कुछ समय के लिए तो सोचने-समझने की शक्ति खत्म हो गई। किसी तरह पत्नी और बच्चों के साथ जान बचाकर भागे, चमन पार्क में अपने रिश्तेदार के यहां पहुंचे। उन्होंने बताया कि पूरा एक सप्ताह हो गया है, बेघर हुए। अब भी इतनी हिम्मत नहीं हो रही है कि कॉलोनी में जाकर अपने घर की हालत देखें।
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Read more: पड़ोसियों ने घर के बाहर ताला लगा दंगाइयों से बचाया