नई दिल्ली
दिल्ली विधानसभा में इस बार भी विपक्षी पार्टी बीजेपी होगी, लेकिन सवाल अब यह चल पड़ा है कि नेता विपक्ष (प्रतिपक्ष) कौन होगा? कारण यह है कि इस बार विधानसभा में बीजेपी से चुनकर आने वाले दो विधायक कई बार विधायक रह चुके हैं। वे भी इस बार नेता विपक्ष की दौड़ में शामिल हो गए हैं। वैसे पार्टी ही नेता का चयन करती है, इसलिए देखना है कि वह किस विधायक का चयन करेगी। विपक्षी नेता बनाने के लिए सरकार की अनुमति ली जाती रही है, लेकिन इस मामले में दिल्ली विधानसभा के नियम साइलेंट हैं।
बिष्ट और बिधूड़ी कई बार रहे हैं विधायक
दिल्ली विधानसभा में इस बार बीजेपी के 8 विधायक चुनकर आए हैं। इनमें मोहन सिंह बिष्ट, रामबीर सिंह बिधूड़ी, विजेंद्र गुप्ता, ओमप्रकाश शर्मा, अभय वर्मा, जितेंद्र महाजन, अनिल वाजपेयी, अजय महावर शामिल हैं। पिछली विधानसभा में बीजेपी के तीन विधायक थे। ओपी शर्मा दूसरी बार चुनाव जीते थे। लेकिन विजेंद्र गुप्ता कई बार एमसीडी पार्षद रह चुके थे और उनकी राजनैतिक समझ परिपक्व बताई जा रही थी। इसलिए पार्टी ने उन्हें नेता विपक्ष घोषित किया। केजरीवाल सरकार ने बाद में उन्हें नेता विपक्ष का ओहदा दे दिया। यह बात अलग है कि उस वक्त बीजेपी विधायकों की संख्या पर सवाल उठे थे।
इस बार विधानसभा में करावल नगर से चुनकर आने वाले मोहन सिंह बिष्ट लगातार पांचवीं बार विधायक चुनकर आए हैं। बदरपुर से चुनकर आने वाले रामबीर सिंह बिधूड़ी चौथी बार विधायक बने हैं। सवाल यह है कि क्या इस बार बीजेपी नेतृत्व इन दोनों में से किसी को नेता विपक्ष घोषित करेगा या विजेंद्र गुप्ता को ही रिपीट किया जाएगा। बिधूड़ी को आक्रामक नेता माना जाता है। वह दूसरी पार्टियों से भी विधायक रह चुके हैं। बिष्ट लगातार बीजेपी में रहकर चुनाव जीते हैं और उनकी छवि सौम्य है। नेता विपक्ष का लाभ यह होता है कि उसे वही सारी सुविधाएं मिलती हैं जो दिल्ली सरकार के किसी मंत्री को मिलती हैं। इनमें सरकारी आवास से लेकर वाहन सुविधा सब शामिल है।
विधानसभा के नियम साइलेंट
सूत्रों के अनुसार विधानसभा में नेता विपक्ष का पद देने के लिए दिल्ली सरकार की औपचारिक मंजूरी जरूरी होती है। दिल्ली विधानसभा में नेता विपक्ष के पद के लिए संसद जैसे नियम नहीं है। पार्लियामेंट के नियमों के अनुसार उसी पार्टी को विपक्षी दल घोषित किया जाता है जिसके पास कुल सांसदों के दस प्रतिशत सांसद होते हैं।
संसद व दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा के अनुसार इस मसले पर दिल्ली विधानसभा के नियम 'साइलेंट' हैं। नियमों मे कहा गया है कि जिस भी विपक्षी पार्टी के सबसे अधिक विधायक होंगे, उसी पार्टी के विधायक को नेता विपक्ष का पद मिलेगा। दिल्ली विधानसभा में नंबर का गेम नहीं है। इसी आधार पर पिछली बार बीजेपी के तीन विधायक होने के बावजूद विजेंद्र गुप्ता नेता प्रतिपक्ष बन गए थे। शर्मा के अनुसार वैसे सरकार चाहे तो इस मसले पर देर कर सकती है, लेकिन अंतत: उसे नेता विपक्ष को वह सुविधा देनी होगी, जो किसी मंत्री को मिलती है।
दिल्ली विधानसभा में इस बार भी विपक्षी पार्टी बीजेपी होगी, लेकिन सवाल अब यह चल पड़ा है कि नेता विपक्ष (प्रतिपक्ष) कौन होगा? कारण यह है कि इस बार विधानसभा में बीजेपी से चुनकर आने वाले दो विधायक कई बार विधायक रह चुके हैं। वे भी इस बार नेता विपक्ष की दौड़ में शामिल हो गए हैं। वैसे पार्टी ही नेता का चयन करती है, इसलिए देखना है कि वह किस विधायक का चयन करेगी। विपक्षी नेता बनाने के लिए सरकार की अनुमति ली जाती रही है, लेकिन इस मामले में दिल्ली विधानसभा के नियम साइलेंट हैं।
बिष्ट और बिधूड़ी कई बार रहे हैं विधायक
दिल्ली विधानसभा में इस बार बीजेपी के 8 विधायक चुनकर आए हैं। इनमें मोहन सिंह बिष्ट, रामबीर सिंह बिधूड़ी, विजेंद्र गुप्ता, ओमप्रकाश शर्मा, अभय वर्मा, जितेंद्र महाजन, अनिल वाजपेयी, अजय महावर शामिल हैं। पिछली विधानसभा में बीजेपी के तीन विधायक थे। ओपी शर्मा दूसरी बार चुनाव जीते थे। लेकिन विजेंद्र गुप्ता कई बार एमसीडी पार्षद रह चुके थे और उनकी राजनैतिक समझ परिपक्व बताई जा रही थी। इसलिए पार्टी ने उन्हें नेता विपक्ष घोषित किया। केजरीवाल सरकार ने बाद में उन्हें नेता विपक्ष का ओहदा दे दिया। यह बात अलग है कि उस वक्त बीजेपी विधायकों की संख्या पर सवाल उठे थे।
इस बार विधानसभा में करावल नगर से चुनकर आने वाले मोहन सिंह बिष्ट लगातार पांचवीं बार विधायक चुनकर आए हैं। बदरपुर से चुनकर आने वाले रामबीर सिंह बिधूड़ी चौथी बार विधायक बने हैं। सवाल यह है कि क्या इस बार बीजेपी नेतृत्व इन दोनों में से किसी को नेता विपक्ष घोषित करेगा या विजेंद्र गुप्ता को ही रिपीट किया जाएगा। बिधूड़ी को आक्रामक नेता माना जाता है। वह दूसरी पार्टियों से भी विधायक रह चुके हैं। बिष्ट लगातार बीजेपी में रहकर चुनाव जीते हैं और उनकी छवि सौम्य है। नेता विपक्ष का लाभ यह होता है कि उसे वही सारी सुविधाएं मिलती हैं जो दिल्ली सरकार के किसी मंत्री को मिलती हैं। इनमें सरकारी आवास से लेकर वाहन सुविधा सब शामिल है।
विधानसभा के नियम साइलेंट
सूत्रों के अनुसार विधानसभा में नेता विपक्ष का पद देने के लिए दिल्ली सरकार की औपचारिक मंजूरी जरूरी होती है। दिल्ली विधानसभा में नेता विपक्ष के पद के लिए संसद जैसे नियम नहीं है। पार्लियामेंट के नियमों के अनुसार उसी पार्टी को विपक्षी दल घोषित किया जाता है जिसके पास कुल सांसदों के दस प्रतिशत सांसद होते हैं।
संसद व दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा के अनुसार इस मसले पर दिल्ली विधानसभा के नियम 'साइलेंट' हैं। नियमों मे कहा गया है कि जिस भी विपक्षी पार्टी के सबसे अधिक विधायक होंगे, उसी पार्टी के विधायक को नेता विपक्ष का पद मिलेगा। दिल्ली विधानसभा में नंबर का गेम नहीं है। इसी आधार पर पिछली बार बीजेपी के तीन विधायक होने के बावजूद विजेंद्र गुप्ता नेता प्रतिपक्ष बन गए थे। शर्मा के अनुसार वैसे सरकार चाहे तो इस मसले पर देर कर सकती है, लेकिन अंतत: उसे नेता विपक्ष को वह सुविधा देनी होगी, जो किसी मंत्री को मिलती है।
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