मोहम्मद असगर, नई दिल्ली
आज के दौर में कुछ तस्वीरें बेहद सुकून देती हैं। नफरत को मिटाने के लिए बारिश बनकर बरसती एक तस्वीर सामने आई गीता कॉलोनी इलाके से। यहां शिवपुरी में कुछ मुस्लिम के साथ एक मस्जिद के इमाम श्री साईं मंदिर पहुंचे। मुस्लिमों ने जब भंडारा किया तो हिन्दुस्तान की वो तस्वीर उभरकर सामने आई, जिसकी मिसालें दी जाती हैं, गंगा-जमुनी तहजीब की तस्वीर। हिंदू-मुस्लिम एकता, भाईचारे और सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए लगाए गए इस भंडारे को नाम दिया गया था 'लंगर-ए-आम'।
गीता कॉलोनी के इलाके में आराम पार्क है, जहां मस्जिद नुरुल्लाह है। फोन पर मस्जिद के इमाम मुफ्ती सालिम कासमी ने एनबीटी को बताया, 'हम लोगों ने आपस में तय किया कि क्यों ना कुछ ऐसा किया जाए, जिससे गरीबों की मदद हो और हिंदू-मुस्लिम एक दूसरे के करीब आ सकें। दोनों एक-दूसरे को इतने करीब से जानें कि इंसानियत बाकी रहे। यहां आकर अच्छा लगा कि पुजारी जी ने हमारा खैर मकदम किया। हमसे मोहब्बत से मिले।' लोग आते रहे। प्रसाद लेते रहे। मंदिर के सामने लगा भंडारा अमन और मोहब्बत का पैगाम दे रहा था। इंसानियत की दावत दे रहा था।
भंडारा होने पर पुजारी हरि प्रसाद शुक्ला अपने गांव को याद करने लगते हैं। वह कहते हैं, 'हम हमीरपुर (यूपी) के रहने वाले हैं। वहां हमारे गांव में आधे मुस्लिम हैं और आधे लोग हिंदू। वहां मुस्लिम रामलीला में आते हैं और वहां सैयद बाबा की मजार है, जहां हिंदू भी जाते हैं। कव्वाली होती हैं। सब मिलकर रहते हैं।' पुजारी कहते हैं, 'मेरा बेटा जब पढ़ाई कर रहा था, तो मुझे किसी ने बताया कि अगर सैयद बाबा का फकीर अपने बेटे को बना दो। और चादर चढ़ाने की मन्नत मान लो। मैंने जब ऐसा किया तो बेटा मेरा पास हुआ और नौकरी मिल गई। तो ऐसा ही हमारा माहौल रहा कि मिलजुलकर रहें। प्रेम से रहें। आज मुस्लिम भाई आए भंडारा करने। अच्छा लग रहा है। ऐसे ही प्रेम बांटें।' पुजारी की बातचीत का विडियो सोशल मीडिया पर भी शेयर हो रहा है।
जैद अहमद कहते हैं कि नफरतों को खत्म करने के लिए हमें इस तरह करीब और करीब आना होगा, ताकि एक दूसरे के बारे में जो लोग अफवाह फैला कर माहौल खराब करते हैं उसे ऐसी ही कोशिशों से रोका जा सकता है। दीपक मेहता कहते हैं, सबके धर्म सबके अपने-अपने लिए हैं। मगर हमें इसी तरह से मिलकर रहना चाहिए। चाहें सीएए हो या फिर कोई और मसला। इसपर बहस हो सकती हैं, मगर धर्म तो सबको मिलकर रहने का ही सन्देश देते हैं। इसलिए हमारी कोशिश रहेगी हम सब ऐसे ही एक रहें। एकजुट रहें। ये ही भारत की संस्कृति है।
मुफ्ती सालिम कहते हैं, हम इस तरह और कोशिशें करेंगे। इस तरह भंडारा करेंगे। गरीब लोगों की मदद करेंगे। इस काम में उनके साथ खालिद सैफी भी साथ रहे। भंडारा करते ये लोग अमन और इंसानियत का पैग़ाम तो दे ही रहे थे, मगर ये तस्वीर ऐसी थी, जैसे किसी ने हिंदुस्तान का नक्शा सामने उकेर दिया हो। जैसे ईद और दिवाली का मिलन हो रहा हो।
आज के दौर में कुछ तस्वीरें बेहद सुकून देती हैं। नफरत को मिटाने के लिए बारिश बनकर बरसती एक तस्वीर सामने आई गीता कॉलोनी इलाके से। यहां शिवपुरी में कुछ मुस्लिम के साथ एक मस्जिद के इमाम श्री साईं मंदिर पहुंचे। मुस्लिमों ने जब भंडारा किया तो हिन्दुस्तान की वो तस्वीर उभरकर सामने आई, जिसकी मिसालें दी जाती हैं, गंगा-जमुनी तहजीब की तस्वीर। हिंदू-मुस्लिम एकता, भाईचारे और सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए लगाए गए इस भंडारे को नाम दिया गया था 'लंगर-ए-आम'।
गीता कॉलोनी के इलाके में आराम पार्क है, जहां मस्जिद नुरुल्लाह है। फोन पर मस्जिद के इमाम मुफ्ती सालिम कासमी ने एनबीटी को बताया, 'हम लोगों ने आपस में तय किया कि क्यों ना कुछ ऐसा किया जाए, जिससे गरीबों की मदद हो और हिंदू-मुस्लिम एक दूसरे के करीब आ सकें। दोनों एक-दूसरे को इतने करीब से जानें कि इंसानियत बाकी रहे। यहां आकर अच्छा लगा कि पुजारी जी ने हमारा खैर मकदम किया। हमसे मोहब्बत से मिले।' लोग आते रहे। प्रसाद लेते रहे। मंदिर के सामने लगा भंडारा अमन और मोहब्बत का पैगाम दे रहा था। इंसानियत की दावत दे रहा था।
भंडारा होने पर पुजारी हरि प्रसाद शुक्ला अपने गांव को याद करने लगते हैं। वह कहते हैं, 'हम हमीरपुर (यूपी) के रहने वाले हैं। वहां हमारे गांव में आधे मुस्लिम हैं और आधे लोग हिंदू। वहां मुस्लिम रामलीला में आते हैं और वहां सैयद बाबा की मजार है, जहां हिंदू भी जाते हैं। कव्वाली होती हैं। सब मिलकर रहते हैं।' पुजारी कहते हैं, 'मेरा बेटा जब पढ़ाई कर रहा था, तो मुझे किसी ने बताया कि अगर सैयद बाबा का फकीर अपने बेटे को बना दो। और चादर चढ़ाने की मन्नत मान लो। मैंने जब ऐसा किया तो बेटा मेरा पास हुआ और नौकरी मिल गई। तो ऐसा ही हमारा माहौल रहा कि मिलजुलकर रहें। प्रेम से रहें। आज मुस्लिम भाई आए भंडारा करने। अच्छा लग रहा है। ऐसे ही प्रेम बांटें।' पुजारी की बातचीत का विडियो सोशल मीडिया पर भी शेयर हो रहा है।
जैद अहमद कहते हैं कि नफरतों को खत्म करने के लिए हमें इस तरह करीब और करीब आना होगा, ताकि एक दूसरे के बारे में जो लोग अफवाह फैला कर माहौल खराब करते हैं उसे ऐसी ही कोशिशों से रोका जा सकता है। दीपक मेहता कहते हैं, सबके धर्म सबके अपने-अपने लिए हैं। मगर हमें इसी तरह से मिलकर रहना चाहिए। चाहें सीएए हो या फिर कोई और मसला। इसपर बहस हो सकती हैं, मगर धर्म तो सबको मिलकर रहने का ही सन्देश देते हैं। इसलिए हमारी कोशिश रहेगी हम सब ऐसे ही एक रहें। एकजुट रहें। ये ही भारत की संस्कृति है।
मुफ्ती सालिम कहते हैं, हम इस तरह और कोशिशें करेंगे। इस तरह भंडारा करेंगे। गरीब लोगों की मदद करेंगे। इस काम में उनके साथ खालिद सैफी भी साथ रहे। भंडारा करते ये लोग अमन और इंसानियत का पैग़ाम तो दे ही रहे थे, मगर ये तस्वीर ऐसी थी, जैसे किसी ने हिंदुस्तान का नक्शा सामने उकेर दिया हो। जैसे ईद और दिवाली का मिलन हो रहा हो।
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