नई दिल्ली
दिल्ली हिंसा में 42 लोगों की जान गई है और सैकड़ों करोड़ की संपत्ति खाक हुई है। पुलिस पर दंगा रोकने के लिए तुरंत ऐक्शन नहीं लेने का आरोप है। जब हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया ने पुलिस अधिकारियों से बात की तो कई नई बातें सामने आईं। कुछ अधिकारियों ने बताया कि 22 फरवरी को रात करीब 10 बजे दिल्ली हिंसा के बीज बोए गए। करीब 600 महिलाएं जाफराबाद की संकरी गलियों से होते हुए दिल्ली मेट्रो स्टेशन की तरफ बढ़ रही थीं। हालांकि, पुलिस ने उस वक्त कोई दखलअंदाजी नहीं की। स्थानीय लोगों के अनुसार पुलिस मान रही थी कि वह महिलाएं वहां जा रही हैं, जहां पहले से ही प्रोटेस्ट हो रहा है, लेकिन वह मेट्रो स्टेशन पर ही प्रोटेस्ट करने लगीं, जो पहले वाली जगह से करीब 500 मीटर दूर था।
कम थी पुलिस बल की तैनाती
उस वक्त बहुत ही कम महिला पुलिस बल मौजूद था, जो महिलाओं की भीड़ से निपट सके और पुलिस उन्हें तितर-बितर करने के लिए बल का प्रयोग भी नहीं कर सकती थी। उन्हें ऊपर से भी कोई आदेश नहीं मिला, क्योंकि ये नहीं पता था कि इस पर कोर्ट कैसा रुख अपनाएगा। देखते ही देखते महिलाओं के साथ करीब 400 पुरुष भी प्रोटेस्ट में शामिल हो गए। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अनुसार शुरुआत में प्रोटेस्ट करने वाले लोग स्थानीय नहीं थे। रविवार सुबह तक प्रदर्शनकारियों की संख्या बढ़कतर 3000 हो गई। उन्होंने बताया कि उन्हें बल का प्रयोग कर के नहीं हटा सकते थे, ऐसे में उन्हें कोई भी टेंट लगाने या डायस या स्टेज लगाने से रोक दिया।
पढ़ें- दिल्ली हिंसा: 42 साल की महिला ने छतों के जरिए बचाए 40 लोग, पेट्रोल बम वाली भीड़ भी कुछ बिगाड़ नहीं सकी
हिंदू समूहों ने भी ब्लॉक कर दी सड़क
रविवार दोपहर को स्थिति बिगड़ना शुरू हो गई। हिंदू समूहों ने तय किया कि वह भी पूरी सड़क ब्लॉक करेंगे। उनका तर्क था कि अगर एक समुदाय को सड़क पर बैठकर प्रोटेस्ट रखने की इजाजत है तो हिंदू समूहों को भी इसकी अनुमति होनी चाहिए। पुलिस अधिकारी ने बताया कि उन्होंने प्रदर्शन पर बैठे लोगों से बात भी करने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माने। देखते ही देखते दो समूहों ने एक दूसरे पर पत्थरबाजी शुरू कर दी। हालांकि, देर शाम तक पुलिस ने स्थिति को काबू करने में सफलता पा ली।
पुलिस का अंदाजा गलत निकला
पुलिस को लगा था कि ये प्रदर्शन भी शाहीन बाग की तरह शांतिपूर्ण रहेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा- हमने 24 फरवरी के लिए पर्याप्त इंतजाम किए थे, जब अमेरिकी राष्ट्रपति दिल्ली पहुंचे, हालांकि पूर्वी रेंज के अधिकारियों को छूट दी गई थी। फोर्स को लाने में कुछ समय लगा, लेकिन हमारे पास पर्याप्त पुलिस फोर्स थी। 24 फवरी को ही सुबह 9 बजे तक दंगे शुरू हो गए। जो पत्थरबाजी से शुरू हुआ था, वह धीरे-धीरे तोड़फोड़ और आगजनी में बदल गया। कुछ ही देर में दोनों समूहों के बीच देसी कट्टों से गोलीबारी शुरू हो गई। एक सूत्र के मुताबिक, 'गुस्साए समूह ना सिर्फ एक दूसरे पर हमले कर रहे थे, बल्कि पुलिस को भी निशाना बना रहे थे। कुछ जगहों पर तो भीड़ ने पुलिस को ही घेर लिया, तो कहीं पर तीन तरफ से पुलिस पर हमले हुए। '
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पुलिस पर टूटा प्रदर्शनकारियों का कहर
शाहदरा के डीसीपी अमित शर्मा और उनकी टीम समेत तीन कंपनियों पर सुबह करीब 11 बजे चांद बाग में एक मस्जिद के सामने हमला बोल दिया गया। अमित शर्मा और एसीपी अनुज कुमार को दंगाइयों ने बुरी तरह पीटा और हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की गोली मारकर हत्या कर दी गई। एक अन्य अधिकारी ने बताया कि ऐसी स्थिति में चुनौती ये हो गई थी कि चांद बाग में फिर से सेना कैसे भेजी जाए। एक ज्वाइंट कमिश्नर से कहा गया कि वह कुछ सहायता लेकर घटनास्थल पर पहुंचें।
अफवाहों ने दंगों को हवा दी
अफवाहें इतनी फैल गई थीं कि 20 स्थानीय इलाकों में गलियों में बहुत सारे लोग जमा हो गए, जिसकी वजह से ज्वाइंट कमिश्नर को आगे जाने का रास्ता ही नहीं मिला। मौजपुर के पास एक डीसीपी फंस गए इसलिए क्राइम ब्रांच से एक अन्य डीसीपी और एक ज्वाइंट कमिश्रर को बुलाया गया। उस्मानपुर-पुस्ता रूट से वह चांद बाग पहुंचे और 4 बजे तक वजीराबाज और 66 फुट की रोड पर पुलिस ने काबू पा लिया। हालांकि, ये तब मुमकिन हो सका जब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और स्पेशल पुलिस कमिश्रर एनएन श्रीवास्तव ने मोर्चा संभाला।
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सबसे घनी आबादी वाला इलाका है जाफराबाद
जब एक पुलिस अधिकारी से ये पूछा गया कि दंगाइयों के खिलाफ अधिक फोर्स भेजकर उन पर काबू क्यों नहीं किया गया तो वह बोले कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में प्रति वर्ग किलोमीटर में करीब 80 हजार लोग रहते हैं, जो इसे देश का सबसे घना इलाका बनाता है। ये समूह बड़ी आसानी से चंद मिनट में करीब 25 हजार लोगों को जाफराबाद से कर्दमपुरी ले जाने में सफल हो गए। पिछले साल 22 दिसंबर को जाफराबाद रोड पर करीब 40 हजार लोग जमा हो गए थे, लेकिन फिर भी सब कुछ शांतिपूर्ण तरीके से निपट गया। उन्होंने ये भी कहा कि हर कदम उठाने से पहले सोचना जरूरी था। अगर पुलिस ने अच्छे से अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई होती तो मरने वालों की संख्या काफी अधिक होती।
दिल्ली हिंसा में 42 लोगों की जान गई है और सैकड़ों करोड़ की संपत्ति खाक हुई है। पुलिस पर दंगा रोकने के लिए तुरंत ऐक्शन नहीं लेने का आरोप है। जब हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया ने पुलिस अधिकारियों से बात की तो कई नई बातें सामने आईं। कुछ अधिकारियों ने बताया कि 22 फरवरी को रात करीब 10 बजे दिल्ली हिंसा के बीज बोए गए। करीब 600 महिलाएं जाफराबाद की संकरी गलियों से होते हुए दिल्ली मेट्रो स्टेशन की तरफ बढ़ रही थीं। हालांकि, पुलिस ने उस वक्त कोई दखलअंदाजी नहीं की। स्थानीय लोगों के अनुसार पुलिस मान रही थी कि वह महिलाएं वहां जा रही हैं, जहां पहले से ही प्रोटेस्ट हो रहा है, लेकिन वह मेट्रो स्टेशन पर ही प्रोटेस्ट करने लगीं, जो पहले वाली जगह से करीब 500 मीटर दूर था।
कम थी पुलिस बल की तैनाती
उस वक्त बहुत ही कम महिला पुलिस बल मौजूद था, जो महिलाओं की भीड़ से निपट सके और पुलिस उन्हें तितर-बितर करने के लिए बल का प्रयोग भी नहीं कर सकती थी। उन्हें ऊपर से भी कोई आदेश नहीं मिला, क्योंकि ये नहीं पता था कि इस पर कोर्ट कैसा रुख अपनाएगा। देखते ही देखते महिलाओं के साथ करीब 400 पुरुष भी प्रोटेस्ट में शामिल हो गए। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अनुसार शुरुआत में प्रोटेस्ट करने वाले लोग स्थानीय नहीं थे। रविवार सुबह तक प्रदर्शनकारियों की संख्या बढ़कतर 3000 हो गई। उन्होंने बताया कि उन्हें बल का प्रयोग कर के नहीं हटा सकते थे, ऐसे में उन्हें कोई भी टेंट लगाने या डायस या स्टेज लगाने से रोक दिया।
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हिंदू समूहों ने भी ब्लॉक कर दी सड़क
रविवार दोपहर को स्थिति बिगड़ना शुरू हो गई। हिंदू समूहों ने तय किया कि वह भी पूरी सड़क ब्लॉक करेंगे। उनका तर्क था कि अगर एक समुदाय को सड़क पर बैठकर प्रोटेस्ट रखने की इजाजत है तो हिंदू समूहों को भी इसकी अनुमति होनी चाहिए। पुलिस अधिकारी ने बताया कि उन्होंने प्रदर्शन पर बैठे लोगों से बात भी करने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माने। देखते ही देखते दो समूहों ने एक दूसरे पर पत्थरबाजी शुरू कर दी। हालांकि, देर शाम तक पुलिस ने स्थिति को काबू करने में सफलता पा ली।
पुलिस का अंदाजा गलत निकला
पुलिस को लगा था कि ये प्रदर्शन भी शाहीन बाग की तरह शांतिपूर्ण रहेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा- हमने 24 फरवरी के लिए पर्याप्त इंतजाम किए थे, जब अमेरिकी राष्ट्रपति दिल्ली पहुंचे, हालांकि पूर्वी रेंज के अधिकारियों को छूट दी गई थी। फोर्स को लाने में कुछ समय लगा, लेकिन हमारे पास पर्याप्त पुलिस फोर्स थी। 24 फवरी को ही सुबह 9 बजे तक दंगे शुरू हो गए। जो पत्थरबाजी से शुरू हुआ था, वह धीरे-धीरे तोड़फोड़ और आगजनी में बदल गया। कुछ ही देर में दोनों समूहों के बीच देसी कट्टों से गोलीबारी शुरू हो गई। एक सूत्र के मुताबिक, 'गुस्साए समूह ना सिर्फ एक दूसरे पर हमले कर रहे थे, बल्कि पुलिस को भी निशाना बना रहे थे। कुछ जगहों पर तो भीड़ ने पुलिस को ही घेर लिया, तो कहीं पर तीन तरफ से पुलिस पर हमले हुए। '
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पुलिस पर टूटा प्रदर्शनकारियों का कहर
शाहदरा के डीसीपी अमित शर्मा और उनकी टीम समेत तीन कंपनियों पर सुबह करीब 11 बजे चांद बाग में एक मस्जिद के सामने हमला बोल दिया गया। अमित शर्मा और एसीपी अनुज कुमार को दंगाइयों ने बुरी तरह पीटा और हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की गोली मारकर हत्या कर दी गई। एक अन्य अधिकारी ने बताया कि ऐसी स्थिति में चुनौती ये हो गई थी कि चांद बाग में फिर से सेना कैसे भेजी जाए। एक ज्वाइंट कमिश्नर से कहा गया कि वह कुछ सहायता लेकर घटनास्थल पर पहुंचें।
अफवाहों ने दंगों को हवा दी
अफवाहें इतनी फैल गई थीं कि 20 स्थानीय इलाकों में गलियों में बहुत सारे लोग जमा हो गए, जिसकी वजह से ज्वाइंट कमिश्नर को आगे जाने का रास्ता ही नहीं मिला। मौजपुर के पास एक डीसीपी फंस गए इसलिए क्राइम ब्रांच से एक अन्य डीसीपी और एक ज्वाइंट कमिश्रर को बुलाया गया। उस्मानपुर-पुस्ता रूट से वह चांद बाग पहुंचे और 4 बजे तक वजीराबाज और 66 फुट की रोड पर पुलिस ने काबू पा लिया। हालांकि, ये तब मुमकिन हो सका जब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और स्पेशल पुलिस कमिश्रर एनएन श्रीवास्तव ने मोर्चा संभाला।
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सबसे घनी आबादी वाला इलाका है जाफराबाद
जब एक पुलिस अधिकारी से ये पूछा गया कि दंगाइयों के खिलाफ अधिक फोर्स भेजकर उन पर काबू क्यों नहीं किया गया तो वह बोले कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में प्रति वर्ग किलोमीटर में करीब 80 हजार लोग रहते हैं, जो इसे देश का सबसे घना इलाका बनाता है। ये समूह बड़ी आसानी से चंद मिनट में करीब 25 हजार लोगों को जाफराबाद से कर्दमपुरी ले जाने में सफल हो गए। पिछले साल 22 दिसंबर को जाफराबाद रोड पर करीब 40 हजार लोग जमा हो गए थे, लेकिन फिर भी सब कुछ शांतिपूर्ण तरीके से निपट गया। उन्होंने ये भी कहा कि हर कदम उठाने से पहले सोचना जरूरी था। अगर पुलिस ने अच्छे से अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई होती तो मरने वालों की संख्या काफी अधिक होती।
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