नई दिल्ली
बिल्डिंग बायलॉज के प्रावधान के तहत पार्किंग चार्ज वसूलने की मंजूरी न दी गई हो तो जनता से इसकी वसूली नहीं की जा सकती। दिल्ली हाई कोर्ट ने यह व्यवस्था वेस्ट दिल्ली के एक मॉल की याचिका खारिज करते हुए दी। मॉल ने साउथ एमसीडी के उस आदेश को यहां चुनौती दी थी, जिसके तहत उसे अपने परिसर के अंतर्गत खुले इलाके में पार्क होने वाली गाड़ियों से चार्ज वसूलने से रोक दिया गया।
जस्टिस वी कामेश्वर राव की बेंच ने सुभाष नगर मेट्रो स्टेशन के पास स्थित पैसिफिक मेट्रो मॉल (पैसिफिक डिवेलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड) की याचिका खारिज करते हुए कहा कि इसमें कोई मेरिट नहीं। उन्होंने निगम के संबधित आदेश का बरकरार रखा और कहा कि इसमें दखल देने की जरूरत नहीं। यह विवाद शुरू हुआ साउथ एमसीडी के 2015 में जारी पब्लिक नोटिस से। इसमें कहा गया कि कमर्शल, ऑफिस, मॉल्स, हॉस्पिटल्स कॉम्प्लेक्स में FAR से फ्री जो भी इलाके पार्किंग के लिए आरक्षित हैं, उन पर गाड़ी खड़ी करने के लिए फीस नहीं वसूली जाएगी। याची मॉल ने इसे मानने से मना कर दिया। इसके बाद निगम ने उसके विवादित इलाके को सील कर दिया। इसके खिलाफ मॉल कोर्ट आ गया।
कोर्ट को बताया कि उसका मॉल डीएमआरसी की जमीन पर खड़ा है जो उसे कंसेशनेयर अग्रीमेंट के तहत 30 सालों के लिए लीजहोल्ड पर मिली है। दावा किया कि इसके लिए उसने डीएमआरसी को 60 करोड़ का भुगतान किया और साल 2010 से क्वॉर्टरली बेसिस पर 2.16 करोड़ का भुगतान कर रहा है, जिसमें मौजूदा लीज के खत्म होने के बाद 20 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी जाएगी। इसके बदले उसे डीएमआरसी से संबंधित प्रोजेक्ट के तहत होने वाले सभी लाभों को लेने का अधिकार मिला। निगम के अधिकार क्षेत्र को चुनौती देते हुए याची कंपनी ने यह भी दावा किया कि प्राइवेट प्रॉपर्टीज पर पार्किंग रेगुलेट करने का उसे कोई हक नहीं।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मॉल ने जिन सुविधाओं का जिक्र किया वे खासतौर पर पार्किंग स्पेस बढ़ाकर और उचित पार्किंग पॉलिसी के जरिए पार्किंग को ज्यादा व्यवस्थित बनाने के वास्ते उठाए जाने वाले कदम हैं। ऐसा करने पर यह नियम नहीं बन जाता कि बिल्डिंग बायलॉज के तहत जरूरी पार्किंग सुविधा के लिए चार्ज वसूला जा सकता है। बिल्डिंग बायलॉज के प्रावधानों के तहत पार्किंग चार्ज वसूलने की मंजूरी न दी गई हो तो ऐसा नहीं किया जा सकती। कोर्ट ने मॉल की ओर से दिए गए इस तर्क को भी ठुकरा दिया कि उसे ऐसा करने की छूट डीएमआरसी ने दी है।
कोर्ट ने कहा कि इसका मतलब यह नहीं कि याचिकाकर्ता को ऐसा करने का अधिकार मिल गया। इसके लिए मंजूरी बिल्डिंग बायलाज के प्रावधानों पर निर्भर करती है, जो कहता है कि FAR से फ्री इलाके का इस्तेमाल कमर्शल पर्पज के लिए नहीं हो सकता। दिल्ली के 22 मॉल में पार्किंग फीस वसूलने और उसके साथ भेदभाव कर संविधान के तहत मिले समानता के अधिकार के उल्लंघन से जुड़े आरोप को भी कोर्ट ने खारिज कर दिया। कहा, 'संविधान के अनुच्छेद 14 का मतलब अवैधता को बनाए रखना नहीं है। यह अनुच्छेद सकारात्मक समानता की बात करता है, नकारात्मक समानता की नहीं। इस आधार पर याचिकाकर्ता की ओर से की गई अवैधता को जायज नहीं ठहराया जा सकता है।'
बिल्डिंग बायलॉज के प्रावधान के तहत पार्किंग चार्ज वसूलने की मंजूरी न दी गई हो तो जनता से इसकी वसूली नहीं की जा सकती। दिल्ली हाई कोर्ट ने यह व्यवस्था वेस्ट दिल्ली के एक मॉल की याचिका खारिज करते हुए दी। मॉल ने साउथ एमसीडी के उस आदेश को यहां चुनौती दी थी, जिसके तहत उसे अपने परिसर के अंतर्गत खुले इलाके में पार्क होने वाली गाड़ियों से चार्ज वसूलने से रोक दिया गया।
जस्टिस वी कामेश्वर राव की बेंच ने सुभाष नगर मेट्रो स्टेशन के पास स्थित पैसिफिक मेट्रो मॉल (पैसिफिक डिवेलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड) की याचिका खारिज करते हुए कहा कि इसमें कोई मेरिट नहीं। उन्होंने निगम के संबधित आदेश का बरकरार रखा और कहा कि इसमें दखल देने की जरूरत नहीं। यह विवाद शुरू हुआ साउथ एमसीडी के 2015 में जारी पब्लिक नोटिस से। इसमें कहा गया कि कमर्शल, ऑफिस, मॉल्स, हॉस्पिटल्स कॉम्प्लेक्स में FAR से फ्री जो भी इलाके पार्किंग के लिए आरक्षित हैं, उन पर गाड़ी खड़ी करने के लिए फीस नहीं वसूली जाएगी। याची मॉल ने इसे मानने से मना कर दिया। इसके बाद निगम ने उसके विवादित इलाके को सील कर दिया। इसके खिलाफ मॉल कोर्ट आ गया।
कोर्ट को बताया कि उसका मॉल डीएमआरसी की जमीन पर खड़ा है जो उसे कंसेशनेयर अग्रीमेंट के तहत 30 सालों के लिए लीजहोल्ड पर मिली है। दावा किया कि इसके लिए उसने डीएमआरसी को 60 करोड़ का भुगतान किया और साल 2010 से क्वॉर्टरली बेसिस पर 2.16 करोड़ का भुगतान कर रहा है, जिसमें मौजूदा लीज के खत्म होने के बाद 20 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी जाएगी। इसके बदले उसे डीएमआरसी से संबंधित प्रोजेक्ट के तहत होने वाले सभी लाभों को लेने का अधिकार मिला। निगम के अधिकार क्षेत्र को चुनौती देते हुए याची कंपनी ने यह भी दावा किया कि प्राइवेट प्रॉपर्टीज पर पार्किंग रेगुलेट करने का उसे कोई हक नहीं।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मॉल ने जिन सुविधाओं का जिक्र किया वे खासतौर पर पार्किंग स्पेस बढ़ाकर और उचित पार्किंग पॉलिसी के जरिए पार्किंग को ज्यादा व्यवस्थित बनाने के वास्ते उठाए जाने वाले कदम हैं। ऐसा करने पर यह नियम नहीं बन जाता कि बिल्डिंग बायलॉज के तहत जरूरी पार्किंग सुविधा के लिए चार्ज वसूला जा सकता है। बिल्डिंग बायलॉज के प्रावधानों के तहत पार्किंग चार्ज वसूलने की मंजूरी न दी गई हो तो ऐसा नहीं किया जा सकती। कोर्ट ने मॉल की ओर से दिए गए इस तर्क को भी ठुकरा दिया कि उसे ऐसा करने की छूट डीएमआरसी ने दी है।
कोर्ट ने कहा कि इसका मतलब यह नहीं कि याचिकाकर्ता को ऐसा करने का अधिकार मिल गया। इसके लिए मंजूरी बिल्डिंग बायलाज के प्रावधानों पर निर्भर करती है, जो कहता है कि FAR से फ्री इलाके का इस्तेमाल कमर्शल पर्पज के लिए नहीं हो सकता। दिल्ली के 22 मॉल में पार्किंग फीस वसूलने और उसके साथ भेदभाव कर संविधान के तहत मिले समानता के अधिकार के उल्लंघन से जुड़े आरोप को भी कोर्ट ने खारिज कर दिया। कहा, 'संविधान के अनुच्छेद 14 का मतलब अवैधता को बनाए रखना नहीं है। यह अनुच्छेद सकारात्मक समानता की बात करता है, नकारात्मक समानता की नहीं। इस आधार पर याचिकाकर्ता की ओर से की गई अवैधता को जायज नहीं ठहराया जा सकता है।'
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