नई दिल्ली
बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल दिल्ली में मिलकर विधानसभा का चुनाव लड़ते आ रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ चुनावों से सीट शेयरिंग को लेकर दोनों में तकरार की स्थिति पैदा होती रही है। जानकारों का कहना है कि अकाली दल लंबे समय से दिल्ली में ज्यादा सीटें देने की मांग करता रहा है। हरि नगर, राजौरी गार्डन, शाहदरा और कालकाजी जैसी परंपरागत सीटों के अलावा इस बार अकाली दल ने तिलक नगर, रोहताश नगर, राजेंद्र नगर, मोती नगर जैसी कुछ अन्य सीटों पर भी अपना दावा पेश किया था।
अपने सिंबल पर चुनाव लड़ने को लेकर तकरार
सूत्रों का कहना है कि इस बार सीट शेयरिंग से एक कदम और आगे बढ़ते हुए अकाली नेतृत्व का ज्यादा जोर इस बात पर था कि उसके उम्मीदवार बीजेपी के सिंबल पर चुनाव लड़ने के बजाय अपनी ही पार्टी के सिंबल यानी तराजू पर चुनाव लड़ें। बीजेपी इसके लिए राजी नहीं थी। माना जा रहा है कि अपने सिंबल पर चुनाव लड़ने के पीछे अकालियों की मुख्य रणनीति पंजाब में अपने दबदबे को फिर से कायम करने की थी, लेकिन बीजेपी भी पीछे हटने के लिए तैयार नहीं थी।
सीएए-एनआरसी को लेकर आई दरार
शिरोमणि अकाली दल के प्रवक्ता मनजिंदर सिंह सिरसा का कहना है कि सीटों के बंटवारे या सिंबल को लेकर बीजेपी के साथ किसी तरह का कोई विवाद था ही नहीं और सारा मसला केवल सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर ही फंसा हुआ था। बीजेपी की तरफ से अकाली दल पर अपने स्टैंड से पीछे हटने का दबाव बनाया जा रहा था। सिरसा के मुताबिक, केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के साथ अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल की तीन बार मीटिंग हुई। तीनों बार बीजेपी की तरफ से यही कहा गया कि हम सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर बीजेपी के पक्ष का समर्थन करें। अकाली दल का इस बारे में शुरू से ही स्पष्ट मत रहा है कि हम धर्म के आधार पर किसी को नागरिकता देने या न देने के फैसले के खिलाफ हैं।
पढ़ें: दिल्ली चुनाव की सभी खबरें एक साथ यहां
पार्टी प्रमुख की अब तक बीजेपी अध्यक्ष से नहीं हुई मुलाकात
सिरसा का कहना था कि इस बारे में जेपी नड्डा या अमित शाह के साथ सुखबीर बादल की कोई मीटिंग नहीं हुई। पार्टी प्रवक्ता का कहना है कि प्रकाश जावड़ेकर ने जिस तरह सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर अकाली दल पर दबाव बनाने की कोशिश की, उससे यह समझना मुश्किल नहीं है कि उन्हें अपनी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से ही ऐसा करने का निर्देश मिला होगा। सिरसा ने कहा कि अकाली दल का यह स्पष्ट मत है कि मुस्लिमों समेत उन सभी अल्पसंख्यकों को, चाहे वो हिंदू हों, सिख हों, ईसाई हों, जैन हों, पारसी हों या बुद्धिस्ट, भारत की नागरिकता दी जानी चाहिए, जिन्हें पाकिस्तान, अफगानिस्तान या बांग्लादेश में प्रताड़ना झेलनी पड़ रही है। मुस्लिम समुदाय को नागरिकता कानून से बाहर रखना शिरोमणि अकाली दल और सिख संगत के सभी को साथ लेकर चलने के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ होगा। इसी को देखते हुए हमने दिल्ली चुनावों से खुद को अलग करने का फैसला किया है।
पढ़ें : केजरी के खिलाफ BJP-कांग्रेस ने खोले पत्ते, जानें कौन हैं दोनों
दिल्ली में गठबंधन टूटा, केंद्र को लेकर फैसला नहीं
गठबंधन टूटने के सवाल पर सिरसा का कहना था कि हमारा गठबंधन जिन सिद्धांतों पर आधारित है, उनसे हम कोई समझौता नहीं कर सकते। बीजेपी के साथ हमारा गठबंधन दिल्ली और पंजाब समेत पूरे देश में एकता, भाईचारे और सद्भावना और शांति के सिद्धांत पर केंद्रित था, लेकिन सीएए और एनआरसी उन सिद्धांतों के खिलाफ है। दिल्ली में चुनाव नहीं लड़ने और बीजेपी का साथ छोड़ने के बाद क्या अब केंद्र की सरकार में भी शिरोमणि अकाली दल बीजेपी से नाता तोड़ेगा? इसपर सिरसा का कहना था कि उनकी पार्टी के लीडर इस बारे में फैसला करेंगे कि आगे क्या करना है।
3-4 सीटों पर बीजेपी-अकाली दल साथ में लड़ते रहे हैं चुनाव
आमतौर पर दिल्ली में बीजेपी और अकाली दल सालों से 3 से 4 सीटों पर साथ मिलकर विधानसभा का चुनाव लड़ते रहे हैं। बीजेपी ने अभी 67 सीटों पर ही उम्मीदवारों का ऐलान किया है। कालकाजी, शाहदरा, राजौरी गार्डन और हरि नगर ऐसी सीटें रही हैं, जिन पर अकाली और बीजेपी मिलकर चुनाव लड़ने वाले थे, लेकिन अब बीजेपी के लिए इन सीटों पर मुश्किलें और बढ़ गई है।
पढ़ें : बीजेपी ने जारी की 10 उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट, बग्गा को टिकट
सिख वोट मिल सकते हैं आम आदमी पार्टी को
बीजेपी के सामने पहली चुनौती तो उन चार सीटों पर ऐसे उम्मीदवार उतारने होंगे, जो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों को टक्कर दे सके। इसके अलावा अकालियों की मदद से मिलने वाले सिख वोट को कांग्रेस या आम आदमी पार्टी के खाते में जाने से रोकने की भी एक बड़ी चुनौती होगी। हालांकि इस बार बीजेपी दिल्ली में कुछ नए सहयोगियों के साथ चुनाव लड़ने जा रही है, लेकिन उसे भी पता है कि अकाली दल का साथ उसके लिए कितना जरूरी है। यही वजह है कि दिल्ली चुनाव से खुद को अलग करने के अकाली दल के फैसले की जानकारी मिलने के बाद भी सोमवार को देर रात तक बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता अकालियों को मनाने के लिए उनसे बातचीत करने में लगे हुए थे।
बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल दिल्ली में मिलकर विधानसभा का चुनाव लड़ते आ रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ चुनावों से सीट शेयरिंग को लेकर दोनों में तकरार की स्थिति पैदा होती रही है। जानकारों का कहना है कि अकाली दल लंबे समय से दिल्ली में ज्यादा सीटें देने की मांग करता रहा है। हरि नगर, राजौरी गार्डन, शाहदरा और कालकाजी जैसी परंपरागत सीटों के अलावा इस बार अकाली दल ने तिलक नगर, रोहताश नगर, राजेंद्र नगर, मोती नगर जैसी कुछ अन्य सीटों पर भी अपना दावा पेश किया था।
अपने सिंबल पर चुनाव लड़ने को लेकर तकरार
सूत्रों का कहना है कि इस बार सीट शेयरिंग से एक कदम और आगे बढ़ते हुए अकाली नेतृत्व का ज्यादा जोर इस बात पर था कि उसके उम्मीदवार बीजेपी के सिंबल पर चुनाव लड़ने के बजाय अपनी ही पार्टी के सिंबल यानी तराजू पर चुनाव लड़ें। बीजेपी इसके लिए राजी नहीं थी। माना जा रहा है कि अपने सिंबल पर चुनाव लड़ने के पीछे अकालियों की मुख्य रणनीति पंजाब में अपने दबदबे को फिर से कायम करने की थी, लेकिन बीजेपी भी पीछे हटने के लिए तैयार नहीं थी।
सीएए-एनआरसी को लेकर आई दरार
शिरोमणि अकाली दल के प्रवक्ता मनजिंदर सिंह सिरसा का कहना है कि सीटों के बंटवारे या सिंबल को लेकर बीजेपी के साथ किसी तरह का कोई विवाद था ही नहीं और सारा मसला केवल सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर ही फंसा हुआ था। बीजेपी की तरफ से अकाली दल पर अपने स्टैंड से पीछे हटने का दबाव बनाया जा रहा था। सिरसा के मुताबिक, केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के साथ अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल की तीन बार मीटिंग हुई। तीनों बार बीजेपी की तरफ से यही कहा गया कि हम सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर बीजेपी के पक्ष का समर्थन करें। अकाली दल का इस बारे में शुरू से ही स्पष्ट मत रहा है कि हम धर्म के आधार पर किसी को नागरिकता देने या न देने के फैसले के खिलाफ हैं।
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पार्टी प्रमुख की अब तक बीजेपी अध्यक्ष से नहीं हुई मुलाकात
सिरसा का कहना था कि इस बारे में जेपी नड्डा या अमित शाह के साथ सुखबीर बादल की कोई मीटिंग नहीं हुई। पार्टी प्रवक्ता का कहना है कि प्रकाश जावड़ेकर ने जिस तरह सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर अकाली दल पर दबाव बनाने की कोशिश की, उससे यह समझना मुश्किल नहीं है कि उन्हें अपनी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से ही ऐसा करने का निर्देश मिला होगा। सिरसा ने कहा कि अकाली दल का यह स्पष्ट मत है कि मुस्लिमों समेत उन सभी अल्पसंख्यकों को, चाहे वो हिंदू हों, सिख हों, ईसाई हों, जैन हों, पारसी हों या बुद्धिस्ट, भारत की नागरिकता दी जानी चाहिए, जिन्हें पाकिस्तान, अफगानिस्तान या बांग्लादेश में प्रताड़ना झेलनी पड़ रही है। मुस्लिम समुदाय को नागरिकता कानून से बाहर रखना शिरोमणि अकाली दल और सिख संगत के सभी को साथ लेकर चलने के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ होगा। इसी को देखते हुए हमने दिल्ली चुनावों से खुद को अलग करने का फैसला किया है।
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दिल्ली में गठबंधन टूटा, केंद्र को लेकर फैसला नहीं
गठबंधन टूटने के सवाल पर सिरसा का कहना था कि हमारा गठबंधन जिन सिद्धांतों पर आधारित है, उनसे हम कोई समझौता नहीं कर सकते। बीजेपी के साथ हमारा गठबंधन दिल्ली और पंजाब समेत पूरे देश में एकता, भाईचारे और सद्भावना और शांति के सिद्धांत पर केंद्रित था, लेकिन सीएए और एनआरसी उन सिद्धांतों के खिलाफ है। दिल्ली में चुनाव नहीं लड़ने और बीजेपी का साथ छोड़ने के बाद क्या अब केंद्र की सरकार में भी शिरोमणि अकाली दल बीजेपी से नाता तोड़ेगा? इसपर सिरसा का कहना था कि उनकी पार्टी के लीडर इस बारे में फैसला करेंगे कि आगे क्या करना है।
3-4 सीटों पर बीजेपी-अकाली दल साथ में लड़ते रहे हैं चुनाव
आमतौर पर दिल्ली में बीजेपी और अकाली दल सालों से 3 से 4 सीटों पर साथ मिलकर विधानसभा का चुनाव लड़ते रहे हैं। बीजेपी ने अभी 67 सीटों पर ही उम्मीदवारों का ऐलान किया है। कालकाजी, शाहदरा, राजौरी गार्डन और हरि नगर ऐसी सीटें रही हैं, जिन पर अकाली और बीजेपी मिलकर चुनाव लड़ने वाले थे, लेकिन अब बीजेपी के लिए इन सीटों पर मुश्किलें और बढ़ गई है।
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सिख वोट मिल सकते हैं आम आदमी पार्टी को
बीजेपी के सामने पहली चुनौती तो उन चार सीटों पर ऐसे उम्मीदवार उतारने होंगे, जो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों को टक्कर दे सके। इसके अलावा अकालियों की मदद से मिलने वाले सिख वोट को कांग्रेस या आम आदमी पार्टी के खाते में जाने से रोकने की भी एक बड़ी चुनौती होगी। हालांकि इस बार बीजेपी दिल्ली में कुछ नए सहयोगियों के साथ चुनाव लड़ने जा रही है, लेकिन उसे भी पता है कि अकाली दल का साथ उसके लिए कितना जरूरी है। यही वजह है कि दिल्ली चुनाव से खुद को अलग करने के अकाली दल के फैसले की जानकारी मिलने के बाद भी सोमवार को देर रात तक बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता अकालियों को मनाने के लिए उनसे बातचीत करने में लगे हुए थे।
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