नई दिल्ली
1984 के दंगा पीड़ितों को 1998 में सरदार कॉलोनी में 12-12 गज के कुल 234 प्लॉट अलॉट किए गए थे। लेकिन काफी समय से यहां के शौचालय जर्जर पड़े हैं। नालियों से गंदा पानी सड़कों और गलियों में बह रहा है। लोगों का कहना है कि रख-रखाव के अभाव में अब यहां सिर्फ बदहाली है। सार्वजनिक शौचालय की हालत देख लोग यहां के घर में रिश्ता तक करना नहीं चाहते हैं। 1998 में यहां महिलाओं और पुरुषों के लिए 15-15 सीटर टॉइलट बनाए गए थे। लेकिन अब इनके गेट टूट चुके हैं।
इस कॉलोनी का बुरा हाल है। दीवारों से प्लास्टर छूट रहे हैं। बारिश के दिनों में छत से पानी टपकता है। पानी की व्यवस्था भी नहीं है। अधिकतर लोग इन शौचालयों में ही जाते हैं, जबकि कुछ लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं। लोगों का कहना है कि आज तक यहां की गलियों की मरम्मत नहीं हुई है। गलियां जर्जर हो चुकी हैं। पैदल निकलना मुश्किल है। बच्चे गिरकर चोटिल हो जाते हैं। इस पर कार्रवाई को लेकर कई बार मांग कर चुके हैं, लेकिन ऐक्शन नहीं हो रहा है। यहां रहने वाले गुरमेल सिंह ने कहा, 'कॉलोनी की हालत के वजह से लड़कों की शादी करना मुश्किल हो रहा है। लड़की वाले टॉइलट देखकर वापस चले जाते हैं।'
एक के एक और निवासी अशोक सिंह ने कहा, 'गलियों में गंदे पानी से बीमारी का खतरा सता रहा है। गंदगी और बदबू के कारण यहां रहना मुश्किल हो गया है।' सरदार कॉलोनी में समय बीतने के साथ-साथ आबादी भी बढ़ती चली गई। आज के समय में यहां की आबादी एक हजार से भी अधिक है। यहीं रहने वाली कविता ने बताया, 'छोटी जगह में समस्याओं का अंबार है। पीने का पानी कई दिनों बाद मिलता है। लंबे अरसे बाद भी लोगों के घरों तक पाइपलाइन नहीं बिछाई गई है। आसपास लगे नल से ही पानी भरते हैं।'
1984 के दंगा पीड़ितों को 1998 में सरदार कॉलोनी में 12-12 गज के कुल 234 प्लॉट अलॉट किए गए थे। लेकिन काफी समय से यहां के शौचालय जर्जर पड़े हैं। नालियों से गंदा पानी सड़कों और गलियों में बह रहा है। लोगों का कहना है कि रख-रखाव के अभाव में अब यहां सिर्फ बदहाली है। सार्वजनिक शौचालय की हालत देख लोग यहां के घर में रिश्ता तक करना नहीं चाहते हैं। 1998 में यहां महिलाओं और पुरुषों के लिए 15-15 सीटर टॉइलट बनाए गए थे। लेकिन अब इनके गेट टूट चुके हैं।
इस कॉलोनी का बुरा हाल है। दीवारों से प्लास्टर छूट रहे हैं। बारिश के दिनों में छत से पानी टपकता है। पानी की व्यवस्था भी नहीं है। अधिकतर लोग इन शौचालयों में ही जाते हैं, जबकि कुछ लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं। लोगों का कहना है कि आज तक यहां की गलियों की मरम्मत नहीं हुई है। गलियां जर्जर हो चुकी हैं। पैदल निकलना मुश्किल है। बच्चे गिरकर चोटिल हो जाते हैं। इस पर कार्रवाई को लेकर कई बार मांग कर चुके हैं, लेकिन ऐक्शन नहीं हो रहा है। यहां रहने वाले गुरमेल सिंह ने कहा, 'कॉलोनी की हालत के वजह से लड़कों की शादी करना मुश्किल हो रहा है। लड़की वाले टॉइलट देखकर वापस चले जाते हैं।'
एक के एक और निवासी अशोक सिंह ने कहा, 'गलियों में गंदे पानी से बीमारी का खतरा सता रहा है। गंदगी और बदबू के कारण यहां रहना मुश्किल हो गया है।' सरदार कॉलोनी में समय बीतने के साथ-साथ आबादी भी बढ़ती चली गई। आज के समय में यहां की आबादी एक हजार से भी अधिक है। यहीं रहने वाली कविता ने बताया, 'छोटी जगह में समस्याओं का अंबार है। पीने का पानी कई दिनों बाद मिलता है। लंबे अरसे बाद भी लोगों के घरों तक पाइपलाइन नहीं बिछाई गई है। आसपास लगे नल से ही पानी भरते हैं।'
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