नई दिल्ली
राजधानी दिल्ली और आसपास के इलाके में प्रदूषण की वजह से आपातकाल वाले हालात हैं। लोगों का घर से निकलना मुश्किल हो रहा है, सांस लेने में सभी को दिक्कत है। इसपर सुप्रीम कोर्ट ने भी शुक्रवार को चिंता जताई। अब कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि दिल्ली में स्मॉग टावर लगाने की क्या संभावनाएं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी तकनीक को तलाशा जाए जो ज्यादा रेंज तक हवा साफ करती हो। सरकार कम समय में उपकरण लगाने के मामले को स्टडी करे।
क्या है स्मॉग टावर
आसान शब्दों में कहें तो स्मॉग टॉवर एक बहुत बड़ा एयर प्यूरीफायर है। यह अपने आसपास से प्रदूषित हवा या उसके कणों को सोख लेता है। फिर वापस पर्यावरण में साफ हवा छोड़ता है। घर पर लगनेवाले आम प्यूरीफायर की तरह यह बिजली से चलते हैं। इनमें से कुछ को सोलर पावर से भी चलाया जा सकता है।
कितना हवा साफ करता है
यह स्मॉग टावर की कपैसिटी पर निर्भर होता है। साल 2016 में चीन में जो एयर प्यूरीफायर लगाया गया था वह सात मीटर लंबा था। यह एक घंटे में 29,000 m3 हवा साफ करता है। इसके बाद चीन में ही 100 मीटर का स्मॉग टावर लगाया गया था। दावा किया जाता है कि यह 16 मिलियन m3 हवा (गर्मियों में) प्रतिदिन साफ करता है। वहीं सर्दियों में यह आंकड़ा 8 मिलियन m3 होता है। पिछले साल दिल्ली के एक स्टार्टअप ने 40 फीट ऊंचा एयर प्यूरीफायर बनाया था। दावा किया गया था कि यह दिनभर में 32 मिलियन m3 हवा साफ करता है।
फायदा होगा?
दिल्ली-एनसीआर में हेल्थ इमर्जेंसी लगी हुई है। पलूशन का स्तर 700 पार तक चला गया था। ऐसी स्थिति में सिर्फ एक टावर तो काफी नहीं होगा। लेकिन इन्हें बड़ी संख्या में लगाना इतना आसान भी नहीं है। इस एक टॉवर की लागत करीब 14 करोड़ रुपये आती है।
बड़ा वायू भी फेल, अब 5 गुना बड़ा प्यूरीफायर
2018 में दिल्ली के आईटीओ चौक पर वायू नाम से एयर प्यूरीफायर लगाए गए थे जो फेल हो गए, उसके बाद इसका बड़ा वर्जन लगाया गया वो भी फेल हो गया। अब सीपीसीबी का कहना है कि चौराहों पर साफ हवा के लिए इनसे 5 गुना बड़े प्यूरीफायर लगाने होंगे। वायू के बड़ा वर्जन 10 हजार स्क्वॉयर मीटर तक की हवा को साफ करने में सक्षम है।
आईटीओ जैसे व्यस्त चौराहे पर इसे पायलट प्रॉजेक्ट के तौर पर लगाया गया था। जबकि वायू के छोटे वर्जन का ट्रायल 25 अक्टूबर से शुरू हुआ था। मुंबई में यह डिवाइस पहले ही फेल हो चुका है। इन दोनों डिवाइस को सीएसआईआर-नीरी ने डिजाइन किया था। वायू का बड़ा वर्जन 10 घंटे काम करने के दौरान करीब एक यूनिट बिजली खर्च करता है। मेनटेनेंस कॉस्ट भी 1500 रुपये महीना है। बड़े डिवाइस को चौराहों के साथ बस स्टॉप पर लगाने की योजना थी, लेकिन अब यह फेल हो गया है। दिल्ली के हिसाब से छोटे होने की वजह वायू उस तरह का रिजल्ट नहीं दे सका जिसकी उम्मीद थी। इसके फिल्टर महज 4 से 6 दिन में दम तोड़ रहे थे, जिसके बाद उसे बदलना पड़ रहा था।
राजधानी दिल्ली और आसपास के इलाके में प्रदूषण की वजह से आपातकाल वाले हालात हैं। लोगों का घर से निकलना मुश्किल हो रहा है, सांस लेने में सभी को दिक्कत है। इसपर सुप्रीम कोर्ट ने भी शुक्रवार को चिंता जताई। अब कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि दिल्ली में स्मॉग टावर लगाने की क्या संभावनाएं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी तकनीक को तलाशा जाए जो ज्यादा रेंज तक हवा साफ करती हो। सरकार कम समय में उपकरण लगाने के मामले को स्टडी करे।
क्या है स्मॉग टावर
आसान शब्दों में कहें तो स्मॉग टॉवर एक बहुत बड़ा एयर प्यूरीफायर है। यह अपने आसपास से प्रदूषित हवा या उसके कणों को सोख लेता है। फिर वापस पर्यावरण में साफ हवा छोड़ता है। घर पर लगनेवाले आम प्यूरीफायर की तरह यह बिजली से चलते हैं। इनमें से कुछ को सोलर पावर से भी चलाया जा सकता है।
कितना हवा साफ करता है
यह स्मॉग टावर की कपैसिटी पर निर्भर होता है। साल 2016 में चीन में जो एयर प्यूरीफायर लगाया गया था वह सात मीटर लंबा था। यह एक घंटे में 29,000 m3 हवा साफ करता है। इसके बाद चीन में ही 100 मीटर का स्मॉग टावर लगाया गया था। दावा किया जाता है कि यह 16 मिलियन m3 हवा (गर्मियों में) प्रतिदिन साफ करता है। वहीं सर्दियों में यह आंकड़ा 8 मिलियन m3 होता है। पिछले साल दिल्ली के एक स्टार्टअप ने 40 फीट ऊंचा एयर प्यूरीफायर बनाया था। दावा किया गया था कि यह दिनभर में 32 मिलियन m3 हवा साफ करता है।
फायदा होगा?
दिल्ली-एनसीआर में हेल्थ इमर्जेंसी लगी हुई है। पलूशन का स्तर 700 पार तक चला गया था। ऐसी स्थिति में सिर्फ एक टावर तो काफी नहीं होगा। लेकिन इन्हें बड़ी संख्या में लगाना इतना आसान भी नहीं है। इस एक टॉवर की लागत करीब 14 करोड़ रुपये आती है।
बड़ा वायू भी फेल, अब 5 गुना बड़ा प्यूरीफायर
2018 में दिल्ली के आईटीओ चौक पर वायू नाम से एयर प्यूरीफायर लगाए गए थे जो फेल हो गए, उसके बाद इसका बड़ा वर्जन लगाया गया वो भी फेल हो गया। अब सीपीसीबी का कहना है कि चौराहों पर साफ हवा के लिए इनसे 5 गुना बड़े प्यूरीफायर लगाने होंगे। वायू के बड़ा वर्जन 10 हजार स्क्वॉयर मीटर तक की हवा को साफ करने में सक्षम है।
आईटीओ जैसे व्यस्त चौराहे पर इसे पायलट प्रॉजेक्ट के तौर पर लगाया गया था। जबकि वायू के छोटे वर्जन का ट्रायल 25 अक्टूबर से शुरू हुआ था। मुंबई में यह डिवाइस पहले ही फेल हो चुका है। इन दोनों डिवाइस को सीएसआईआर-नीरी ने डिजाइन किया था। वायू का बड़ा वर्जन 10 घंटे काम करने के दौरान करीब एक यूनिट बिजली खर्च करता है। मेनटेनेंस कॉस्ट भी 1500 रुपये महीना है। बड़े डिवाइस को चौराहों के साथ बस स्टॉप पर लगाने की योजना थी, लेकिन अब यह फेल हो गया है। दिल्ली के हिसाब से छोटे होने की वजह वायू उस तरह का रिजल्ट नहीं दे सका जिसकी उम्मीद थी। इसके फिल्टर महज 4 से 6 दिन में दम तोड़ रहे थे, जिसके बाद उसे बदलना पड़ रहा था।
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