Monday, October 21, 2019

बस 2 ग्रीन पटाखे, सबसे पुराने बाजार में कारोबारी बेच रहे फूल और झालर

नई दिल्ली
पटाखों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश और पुलिस कार्रवाही का डर दिल्ली के सबसे पुराने पटाखा कारोबारियों पर भारी पड़ रहा है। दरीबां कलां में लगने वाले इस बाजार में पटाखे बेचने वाले कारोबारी दिवाली के दिन घर सजाने के लिए फूल-झालर-दीये-मोमबत्ती बेच रहे हैं। मुगलों के समय से चले आ रहे इस बाजार में ऐसा शायद पहली बार है कि पटाखा दुकानदार पटाखे के बजाय ये सामान बेचने को मजबूर हैं। वहां मात्र दो दुकानदारों के पास ग्रीन पटाखे हैं, बाकी या तो दुकानें बंद किए बैठें हैं या उन्होंने धंधा ही बदल लिया है। यहां लगने वाले अस्थाई पटाखा बाजार को लाइसेंस नही मिला है, इसलिए यह सूना पड़ा है।

दरीबां बाजार मोड़ से जो सड़क जामा मस्जिद की ओर जाती है, वहां ही दिल्ली का सबसे पुराना पटाखा बाजार है। कहा जाता है कि मुगलकाल से यहां के दुकानदार पटाखा बेच रहे हैं। इनके पास आतिशबाजी बेचने का स्थाई लाइसेंस है, इसलिए इन्हें कोई समस्या नहीं आ रही। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश हैं कि ग्रीन पटाखों के अलावा कुछ नहीं बेचा जाएगा। अब पुलिस कार्रवाही के डर के चलते मंजर अलग नजर आ रहा है। दशहरे के बाद से गुलजार रहने वाले इस बाजार के करीब 50 दुकानदारों को पटाखे बेचने के लिए अस्थाई लाइसेंस मिल जाता था। लेकिन अस्थाई दुकानदारों को भी लाइसेंस न मिलने के चलते यहां चहल-पहल नदारद है।


मार्केट में दस दुकानदारों के पास पटाखे बेचने का स्थाई लाइसेंस है। इनमें से दो दुकानदार ही ग्रीन पटाखे बेच रहे हैं। कुछ सरकारी नीतियों से खफा होकर दुकान बंद किए बैठे हैं तो बाकी झालर, मोमबत्ती, दीए आदि बेच रहे हैं। पुराने दुकानदार महेश्वर दयाल इतने गुस्से से भरे हुए थे कि उन्होंने बात करने से ही इनकार कर दिया। समझाने के बाद माने तो कहा कि पटाखे तो बेच रहे हैं लेकिन उनकी (ग्रीन) वैरायटी न के बराबर है। सिर्फ अनार और फुलझड़ियां हैं। इनकी कीमत 200 रुपये और 300 रुपये प्रति डिब्बा है। पीछे से सप्लाइ नहीं है। जो ग्रीन पटाखे हैं, बस वही बेचे जा रहे हैं।

पटाखा ग्रीन पटाखा सामान्य पटाखा
फुलझड़ी 350-400 रुपये 200-250 रुपये
चकरी 500-550 रुपये 200-250 रुपये

पटाखों के बजाय फूल-झालर बेच रहे राजीव कुमार का कहना है कि पटाखा बेचना बड़ा झंझट का काम है। जब-जब शासन के लोग तहकीकात करने आ जाते हैं। दुकानदार सवाल-जवाब करते हैं, इसलिए हमने पटाखे बेचना ही छोड़ दिया। घर चलाना है, इसलिए दूसरे आइटम बेच रहे हैं। बाजार में अस्थाई लाइसेंस लेकर पटाखों की फड़ लगाने वाले अश्विनी का कहना था कि 50 लोगों को अस्थायी लाइसेंस मिल जाता था, लेकिन इस बार अधिकतर ने अप्लाई ही नहीं किया। एक तो लाइसेंस की शर्तें इतनी सख्त हैं कि कोई उनका पालन नहीं कर सकता, दूसरे ग्रीन पटाखों की सप्लाई ही नहीं हो रही। मार्जन भी बहुत कम है। सालों बाद ऐसा पहली बार है कि पटाखों की फड़ नहीं लग रही है। वैसे लोग कहते हैं कि दिवाली के आखिरी दिनों में शासन की मिलीभगत से यहां पटाखे बिकते हुए दिख जाएं, तो बड़ी बात नहीं होगी।

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