नई दिल्ली
मुंबई में मेट्रो शेड के निर्माण के लिए आरे जंगल में पेड़ों की कटाई का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। जब तक सुप्रीम कोर्ट इस मामले में दखल देता, आरे में पहले से ही 2141 पेड़ काटे जा चुके थे। कभी दिल्ली मेट्रो को भी इसी तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। बावजूद इसके 337 किमी लंबे दिल्ली मेट्रो नेटवर्क ने अपने पहले विस्तार के दौरान सूझ-बूझ से 13 हजार पेड़ों की कटाई को टाला था।
फेज-3 के निर्माण तक दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (डीएमआरसी) ने न सिर्फ अधिक पेड़ों की कटाई टाली बल्कि फेज 1 के दौरान डिपो के निर्माण के लिए प्रमुख स्मारकों और क्लोज्ड लैंडफिल साइट को टूटने से बचाया। फेज 1 से फेज 3 तक डीएमआरसी को 56,307 पेड़ों को काटने की अनुमति मिली थी लेकिन फिर भी इस दौरान कुशलतापूर्वक 12,580 पेड़ों को कटने से बचा लिया। बाकी 43,727 पेड़ जो काटे गए उनके लिए कहा गया कि इन्हें रोका नहीं जा सकता था।
प्रॉजेक्ट के लिए पर्यावरण आकलन जरूरी
मेट्रो के प्रवक्ता ने बताया, 'प्रत्येक प्रॉजेक्ट के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन जरूरी है। जब हम विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) के अनुसार काम शुरू करते हैं, तो हम जमीन पर कुछ अडजेस्टमेंट कर सकते हैं। अगर हमें लगता है कि ट्रैक में थोड़ा संशोधन करके अगर एक भी पेड़ बच सकता है तो हम ऐसा करने की पूरी कोशिश करते हैं। जिन मामलों में ऐसा संभव नहीं हो पाता है तो पेड़ तो काटना ही पड़ता है।'
पेड़ों के ट्रांसप्लांटेशन का भी विकल्प रखा गया
डीएमआरसी का कहना है कि उन्होंने ट्री ट्रांसप्लांटेशन का एक्सपेरिमेंट भी किया है जो अभी भी कुछ जगहों पर किया जा रहा है। डीएमआरसी के प्रवक्ता अनुज दयाल ने बताया, 'एक पेड़ को 5 किमी के दायरे में ही ट्रांस्प्लांट किया जा सकता है ताकि इसके जिंदा बनने की संभावना बनी रहे। हालांकि पूरी तरह सर्वाइवल रेट कम होता है।' बता दें कि ट्रांसप्लांटेशन में पेड़ों को जड़ सहित एक स्थान से दूसरे स्थान में शिफ्ट किया जाता है।
एक पेड़ के बदले 10 पौधरोपण कर की गई भरपाई
हर बार जब एक पेड़ काटा जाता है तो डीएमआरसी को दिल्ली वन विभाग को एक मुआवजा भरना पड़ता है। इस मुआवजे के जरिए 10:1 के अनुपात पर क्षतिपूरक वनीकरण किया जाता है। यानी एक पेड़ काटने पर 10 पौधरोपण किया जाता है। डीएमआरसी के डेटा के अनुसार, अब तक वन विभाग के जरिए कुल 5,35,150 पौधरोपण किया जा चुका है जिनकी देखरेख डीएमआरसी द्वारा ही की जाती है।
सघन बस्ती में मेट्रो के निर्माण में आई चुनौती
घनी आबादी और स्मारकों वाले क्षेत्र में मेट्रो के निर्माण के दौरान भी कई चुनौतियां सामने आईं। फेज-1 के निर्माण के दौरान मेट्रो को खैबर पास इलाके के पास अंडरग्राउंड कॉरिडोर के लिए डिपो का निर्माण करना था। इसके लिए इलाके को सपाट करके, लैंडफिल वेस्ट को हटाकर और इसे ताजी मिट्टी से रिप्लेस किया गया था।
इसी तरह जंतर-मंतर, अगरसेन की बाउली, खूनी दरवाजा, दिल्ली गेट, फिरोज शाह कोटला, शाही सुनहरी मस्जिद और लाल किला से गुजरने वाली हेरिटेज लाइन के सुंरग निर्माण के लिए ट्रैक को शिफ्ट किया गया था।
मुंबई में मेट्रो शेड के निर्माण के लिए आरे जंगल में पेड़ों की कटाई का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। जब तक सुप्रीम कोर्ट इस मामले में दखल देता, आरे में पहले से ही 2141 पेड़ काटे जा चुके थे। कभी दिल्ली मेट्रो को भी इसी तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। बावजूद इसके 337 किमी लंबे दिल्ली मेट्रो नेटवर्क ने अपने पहले विस्तार के दौरान सूझ-बूझ से 13 हजार पेड़ों की कटाई को टाला था।
फेज-3 के निर्माण तक दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (डीएमआरसी) ने न सिर्फ अधिक पेड़ों की कटाई टाली बल्कि फेज 1 के दौरान डिपो के निर्माण के लिए प्रमुख स्मारकों और क्लोज्ड लैंडफिल साइट को टूटने से बचाया। फेज 1 से फेज 3 तक डीएमआरसी को 56,307 पेड़ों को काटने की अनुमति मिली थी लेकिन फिर भी इस दौरान कुशलतापूर्वक 12,580 पेड़ों को कटने से बचा लिया। बाकी 43,727 पेड़ जो काटे गए उनके लिए कहा गया कि इन्हें रोका नहीं जा सकता था।
प्रॉजेक्ट के लिए पर्यावरण आकलन जरूरी
मेट्रो के प्रवक्ता ने बताया, 'प्रत्येक प्रॉजेक्ट के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन जरूरी है। जब हम विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) के अनुसार काम शुरू करते हैं, तो हम जमीन पर कुछ अडजेस्टमेंट कर सकते हैं। अगर हमें लगता है कि ट्रैक में थोड़ा संशोधन करके अगर एक भी पेड़ बच सकता है तो हम ऐसा करने की पूरी कोशिश करते हैं। जिन मामलों में ऐसा संभव नहीं हो पाता है तो पेड़ तो काटना ही पड़ता है।'
पेड़ों के ट्रांसप्लांटेशन का भी विकल्प रखा गया
डीएमआरसी का कहना है कि उन्होंने ट्री ट्रांसप्लांटेशन का एक्सपेरिमेंट भी किया है जो अभी भी कुछ जगहों पर किया जा रहा है। डीएमआरसी के प्रवक्ता अनुज दयाल ने बताया, 'एक पेड़ को 5 किमी के दायरे में ही ट्रांस्प्लांट किया जा सकता है ताकि इसके जिंदा बनने की संभावना बनी रहे। हालांकि पूरी तरह सर्वाइवल रेट कम होता है।' बता दें कि ट्रांसप्लांटेशन में पेड़ों को जड़ सहित एक स्थान से दूसरे स्थान में शिफ्ट किया जाता है।
एक पेड़ के बदले 10 पौधरोपण कर की गई भरपाई
हर बार जब एक पेड़ काटा जाता है तो डीएमआरसी को दिल्ली वन विभाग को एक मुआवजा भरना पड़ता है। इस मुआवजे के जरिए 10:1 के अनुपात पर क्षतिपूरक वनीकरण किया जाता है। यानी एक पेड़ काटने पर 10 पौधरोपण किया जाता है। डीएमआरसी के डेटा के अनुसार, अब तक वन विभाग के जरिए कुल 5,35,150 पौधरोपण किया जा चुका है जिनकी देखरेख डीएमआरसी द्वारा ही की जाती है।
सघन बस्ती में मेट्रो के निर्माण में आई चुनौती
घनी आबादी और स्मारकों वाले क्षेत्र में मेट्रो के निर्माण के दौरान भी कई चुनौतियां सामने आईं। फेज-1 के निर्माण के दौरान मेट्रो को खैबर पास इलाके के पास अंडरग्राउंड कॉरिडोर के लिए डिपो का निर्माण करना था। इसके लिए इलाके को सपाट करके, लैंडफिल वेस्ट को हटाकर और इसे ताजी मिट्टी से रिप्लेस किया गया था।
इसी तरह जंतर-मंतर, अगरसेन की बाउली, खूनी दरवाजा, दिल्ली गेट, फिरोज शाह कोटला, शाही सुनहरी मस्जिद और लाल किला से गुजरने वाली हेरिटेज लाइन के सुंरग निर्माण के लिए ट्रैक को शिफ्ट किया गया था।
मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।
Read more: जब दिल्ली मेट्रो ने कटने से बचाए थे 13 हजार पेड़