नई दिल्ली
अक्सर हम घर में पड़े अपने फट चुके, पुराने हो चुके या साइज में छोटे हो चुके फालतू या अनुपयोगी कपड़ों को मेड सर्वेंट, ड्राइवर, रिक्शा चालक, सिक्यॉरिटी गार्ड, झुग्गी-झोपड़ी वालों, मजदूरों या किसी और जरूरतमंद लोगों को दे देते हैं। कई बार लोग ऐसे कपड़ों के बदले में बर्तन भी ले लेते हैं, तो कई लोग इस उधेड़बुन में रहते हैं कि आखिर ऐसे कपड़ों का करें, तो क्या करें। एनडीएमसी ने इसी को ध्यान में रखते हुए एक नई पहल शुरू की है, जिससे न केवल ऐसे कपड़ों का बेहतर इस्तेमाल किया जा सकेगा, बल्कि इससे प्लास्टिक के इस्तेमाल में भी कमी आएगी।
वैसे तो औपचारिक तौर पर यह मुहिम 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती के मौके पर शुरू होगी, लेकिन अभी लोगों का रिस्पॉन्स देखने और नए आइडियाज लेने के मकसद से एनडीएमसी ने पायलट प्रॉजेक्ट के तौर पर दो जगहों पर यह मुहिम शुरू भी कर दी है, जिसका काफी अच्छा रिस्पॉन्स देखने को मिल रहा है।
एनडीएमसी की सेक्रेट्री डॉ. रश्मि सिंह ने बताया कि सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए एनडीएमसी क्षेत्र के बाजारों में जागरूकता अभियान चलाने के दौरान यह बात सामने आई कि कई लोग प्लास्टिक की थैलियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहते, मगर इसके बदले उन्हें कोई दूसरा विकल्प नहीं मिल पा रहा है। इसी को देखते हुए एक ऐसी पहल शुरू करने का विचार आया, जिससे लोगों को सस्ते दामों पर कपड़े या जूट के बैग भी मिल सकें। इसके लिए एनडीएमसी के समाज शिक्षा विभाग की उन महिलाओं को साथ जोड़ा गया, जो एनडीएमसी के तकरीबन 50 सेंटरों पर सिलाई-कढ़ाई की ट्रेनिंग देती हैं या वहां से ट्रेनिंग ले चुकी हैं। ऐसी महिलाओं की संख्या करीब डेढ़-दो हजार हैं।
एनडीएमसी ने पिछले दिनों कनॉट प्लेस और सरोजिनी नगर में कुल 4 जगहों पर अस्थाई स्टॉल लगाकर बैग मुहैया कराने का काम पायलट प्रॉजेक्ट के तौर पर शुरू किया। इसके लिए लोगों से अपील भी की गई थी कि वे पुराने कपड़े लेकर आएं और उसके बदले में बैग सिलवाकर ले जाएं। इस पहल को अच्छा रिस्पॉन्स मिला और लोग कपड़े और जूट के तरह-तरह के बैग इन स्टॉल्स से सिलवाकर ले गए। बैग की सिलाई के लिए 10-20 रुपये का नॉमिनल शुल्क लिया जाएगा और इकट्ठा हुए पैसे उन महिलाओं को ही दे दिए जाएंगे, जो इस काम में जुटेंगी। 2 अक्टूबर से एनडीएमसी क्षेत्र के सभी प्रमुख बाजारों और भीड़भाड़ वाली जगहों पर ऐसे स्टॉल्स लगाए जाएंगे।
अक्सर हम घर में पड़े अपने फट चुके, पुराने हो चुके या साइज में छोटे हो चुके फालतू या अनुपयोगी कपड़ों को मेड सर्वेंट, ड्राइवर, रिक्शा चालक, सिक्यॉरिटी गार्ड, झुग्गी-झोपड़ी वालों, मजदूरों या किसी और जरूरतमंद लोगों को दे देते हैं। कई बार लोग ऐसे कपड़ों के बदले में बर्तन भी ले लेते हैं, तो कई लोग इस उधेड़बुन में रहते हैं कि आखिर ऐसे कपड़ों का करें, तो क्या करें। एनडीएमसी ने इसी को ध्यान में रखते हुए एक नई पहल शुरू की है, जिससे न केवल ऐसे कपड़ों का बेहतर इस्तेमाल किया जा सकेगा, बल्कि इससे प्लास्टिक के इस्तेमाल में भी कमी आएगी।
वैसे तो औपचारिक तौर पर यह मुहिम 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती के मौके पर शुरू होगी, लेकिन अभी लोगों का रिस्पॉन्स देखने और नए आइडियाज लेने के मकसद से एनडीएमसी ने पायलट प्रॉजेक्ट के तौर पर दो जगहों पर यह मुहिम शुरू भी कर दी है, जिसका काफी अच्छा रिस्पॉन्स देखने को मिल रहा है।
एनडीएमसी की सेक्रेट्री डॉ. रश्मि सिंह ने बताया कि सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए एनडीएमसी क्षेत्र के बाजारों में जागरूकता अभियान चलाने के दौरान यह बात सामने आई कि कई लोग प्लास्टिक की थैलियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहते, मगर इसके बदले उन्हें कोई दूसरा विकल्प नहीं मिल पा रहा है। इसी को देखते हुए एक ऐसी पहल शुरू करने का विचार आया, जिससे लोगों को सस्ते दामों पर कपड़े या जूट के बैग भी मिल सकें। इसके लिए एनडीएमसी के समाज शिक्षा विभाग की उन महिलाओं को साथ जोड़ा गया, जो एनडीएमसी के तकरीबन 50 सेंटरों पर सिलाई-कढ़ाई की ट्रेनिंग देती हैं या वहां से ट्रेनिंग ले चुकी हैं। ऐसी महिलाओं की संख्या करीब डेढ़-दो हजार हैं।
एनडीएमसी ने पिछले दिनों कनॉट प्लेस और सरोजिनी नगर में कुल 4 जगहों पर अस्थाई स्टॉल लगाकर बैग मुहैया कराने का काम पायलट प्रॉजेक्ट के तौर पर शुरू किया। इसके लिए लोगों से अपील भी की गई थी कि वे पुराने कपड़े लेकर आएं और उसके बदले में बैग सिलवाकर ले जाएं। इस पहल को अच्छा रिस्पॉन्स मिला और लोग कपड़े और जूट के तरह-तरह के बैग इन स्टॉल्स से सिलवाकर ले गए। बैग की सिलाई के लिए 10-20 रुपये का नॉमिनल शुल्क लिया जाएगा और इकट्ठा हुए पैसे उन महिलाओं को ही दे दिए जाएंगे, जो इस काम में जुटेंगी। 2 अक्टूबर से एनडीएमसी क्षेत्र के सभी प्रमुख बाजारों और भीड़भाड़ वाली जगहों पर ऐसे स्टॉल्स लगाए जाएंगे।
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