आमिर खान, नई दिल्ली
एक मरीज का स्वाइन फ्लू टेस्ट न किया जाना अस्पताल पर भारी पड़ा है और दिल्ली की राज्य के उपभोक्ता आयोग ने 25 लाख रुपये का फाइन लगाया है। अस्पताल यह राशि स्वाइन फ्लू से मरने वाले युवक के पिता को सौंपेगा। 10 साल पुराने इस मामले में आयोग ने अस्पताल को स्वाइन फ्लू का टेस्ट न करने का दोषी माना, जबकि उस दौर में शहर में स्वाइन फ्लू बुखार का कहर था। आयोग ने कहा कि 24 वर्षीय पीड़ित की स्थिति इसलिए खराब हुई क्योंकि उसका H1N1 टेस्ट करने में देरी हुई और अस्पताल में उसके इलाज के लिए उपकरणों की कमी थी।
आयोग के सदस्य अनिल श्रीवास्तव ने कहा, 'मेडिकल के नियमों के मुताबिक किसी भी डॉक्टर या अस्पताल से उम्मीद होती है कि वह तत्काल मरीज को जरूरी इलाज उपलब्ध कराए।' आयोग का यह फैसला राजधानी के अन्य अस्पतालों के लिए भी नजीर साबित हो सकता है। आयोग ने कहा कि यदि अस्पताल किसी बीमारी के जरूरी इलाज में सक्षम नहीं है तो उसे केस को ट्रांसफर करना चाहिए या फिर सभी व्यवस्थाएं जुटानी चाहिए।
आयोग ने कहा कि अस्पताल की यह गलती है कि उसके पास टेस्ट के लिए लैब तक नहीं थी। 9 दिसंबर, 2009 को कैलाश खंडेलवाल अपने बेटे उमेश को लेकर द्वारका के आयुष्मान अस्पताल लेकर पहुंचे थे। उमेश को तेज बुखार था, खांसी की समस्या थी और सांस लेने में भी प्रॉब्लम हो रही थी। औपचारिकताएं पूरी करने के बाद अस्पताल ने उमेश को ऐडमिट कर लिया था। हालांकि कुछ वक्त बाद स्थिति खराब हो गई। खंडेलवाल ने बेटे के टेस्ट की बात कही, लेकिन अस्पताल ने कहा कि हमारे पास लैबोरेट्री है।
एक मरीज का स्वाइन फ्लू टेस्ट न किया जाना अस्पताल पर भारी पड़ा है और दिल्ली की राज्य के उपभोक्ता आयोग ने 25 लाख रुपये का फाइन लगाया है। अस्पताल यह राशि स्वाइन फ्लू से मरने वाले युवक के पिता को सौंपेगा। 10 साल पुराने इस मामले में आयोग ने अस्पताल को स्वाइन फ्लू का टेस्ट न करने का दोषी माना, जबकि उस दौर में शहर में स्वाइन फ्लू बुखार का कहर था। आयोग ने कहा कि 24 वर्षीय पीड़ित की स्थिति इसलिए खराब हुई क्योंकि उसका H1N1 टेस्ट करने में देरी हुई और अस्पताल में उसके इलाज के लिए उपकरणों की कमी थी।
आयोग के सदस्य अनिल श्रीवास्तव ने कहा, 'मेडिकल के नियमों के मुताबिक किसी भी डॉक्टर या अस्पताल से उम्मीद होती है कि वह तत्काल मरीज को जरूरी इलाज उपलब्ध कराए।' आयोग का यह फैसला राजधानी के अन्य अस्पतालों के लिए भी नजीर साबित हो सकता है। आयोग ने कहा कि यदि अस्पताल किसी बीमारी के जरूरी इलाज में सक्षम नहीं है तो उसे केस को ट्रांसफर करना चाहिए या फिर सभी व्यवस्थाएं जुटानी चाहिए।
आयोग ने कहा कि अस्पताल की यह गलती है कि उसके पास टेस्ट के लिए लैब तक नहीं थी। 9 दिसंबर, 2009 को कैलाश खंडेलवाल अपने बेटे उमेश को लेकर द्वारका के आयुष्मान अस्पताल लेकर पहुंचे थे। उमेश को तेज बुखार था, खांसी की समस्या थी और सांस लेने में भी प्रॉब्लम हो रही थी। औपचारिकताएं पूरी करने के बाद अस्पताल ने उमेश को ऐडमिट कर लिया था। हालांकि कुछ वक्त बाद स्थिति खराब हो गई। खंडेलवाल ने बेटे के टेस्ट की बात कही, लेकिन अस्पताल ने कहा कि हमारे पास लैबोरेट्री है।
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