सिमरनजीत सिंह, नई दिल्ली
राजधानी दिल्ली की हवा इतनी खराब हो चुकी है कि इसे दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में गिना जाने लगा है। कहने को सरकार की ओर से प्रदूषण कम करने के लिए कई तरह के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन फिलहाल सभी फेल होते दिखाई दे रहे हैं। साल में ऐसे बेहद कम दिन होते हैं जब दिल्ली की हवा को शुद्ध और स्वच्छता मानकों पर गुड समझा जाता है। 2018 की बात करें तो दिल्ली में मात्र तीन दिन ऐसे थे, जब हवा का स्तर 'गुड' रहा और सबसे ज्यादा 119 दिन ऐसे रहे जब स्तर पूअर यानी खराब रहा। इस रिपोर्ट में हम बताने जा रहे हैं कि 2015 से 2018 तक दिल्ली की हवा किस कदर बदली.... किस कदर जहर घुला है और इससे इंसानी जीवन पर क्या असर पड़ा है।
58 प्रतिशत दिन बेहद खराब
प्रजा फाउंडेशन की ओर से जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक 2015 से 2018 में 58 प्रतिशत दिन ऐसे रहे जब दिल्ली में एयर क्वॉलिटी खराब और बहुत खराब मानकों पर दर्ज की गई। सरकार और पलूशन कंट्रोल बोर्ड की ओर से कई कोशिशें तो की गईं, लेकिन सफल साबित नहीं हुई। कई लोगों को अस्पताल पहुंचना पड़ा और इनमें ज्यादा संख्या अस्थमा के पेशंट्स की थी।
सबसे गंदे महीने
नवंबर, दिसंबर और जनवरी, तीन ऐसे महीने हैं जब दिल्ली में हवा का स्तर 'बेहद खराब' श्रेणी में होता है। इनमें ही लोगों को सबसे ज्यादा परेशानी होती है। जून से लेकर सितंबर तक हवा के मामले में संतोषजनक होते है। बाकी सभी महीने हवा का स्तर सामान्य से खराब रहे।
हर साल इतने लोगों की जाती है जान
चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक एयर पलूशन के चलते हर साल करीबन 65 लाख लोगों की जान जाती है। इतना ही नहीं एचआईवी-एड्स, टीबी और मलेरिया के कारण होने वाली मौतों की तुलना में एयर पलूशन 3 गुना अधिक लोगों को मारता है। इसके बावजूद इसे लेकर सभी देश गंभीर नहीं हैं जिसका परिणाम यह है कि साल दर साल पलूशन और इससे मरने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है।
ये भी हैं एयर पलूशन के कारण
चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन की रिपोर्ट के मुताबिक अक्सर लोग मच्छर मारने के लिए जिन कॉयल का इस्तेमाल करते हैं, वह एयर पलूशन और खासकर उनके स्वास्थ्य के लिए सबसे ज्यादा हानिकारक है। यह इंडोर पलूशन में आंका जाता है। रिसर्च के मुताबिक दुनिया में दो बिलियन से ज्यादा लोग इसका इस्तेमाल करते हैं जिनमें से अधिकतर उष्टणकटिबंधिय देश के लोग हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि एक मच्छर कॉयल उतना पलूशन पैदा करता है, जितना 100 सिगरेट जलाने से पैदा होता है। ऐसे में आप जान सकते हैं कि इस वक्त एयर पलूशन की क्या स्थिति है और लोगों के स्वास्थ्य पर इसका क्या असर पड़ रहा है।
इन रोगों के लिए ज्यादातर मरीज जाते हैं डॉक्टर के पास
देश के 880 शहरों/नगरों में दो महीने से 107 वर्ष के लोगों पर किए गए सर्वे के मुताबिक सबसे ज्यादा लोग सांस से जुड़ी समस्याओं को लेकर अस्पताल पहुंचते हैं। यह है आंकड़ा-
बीमारी इतने प्रतिशत लोग पहुंचे डॉक्टर के पास
श्वसन 50.6
डाइजेस्टिव 25
सर्कुलेटरी 12.5
स्कीन 9
अंत: स्रावी 6.6
एक्यूआई एक्यूआई रेंज ये पड़ सकता है प्रभाव
गुड 0-50 न्यूनतम प्रभाव
संतोषजनक 51-100 सेंसिटिव लोगों को सांस लेने में थोड़ी परेशानी हो सकती है
मीडियम 101-200 फेफड़ों के पेशंट, बच्चों, बुजुर्गों को सांस लेने में परेशानी
खराब 201-300 हार्ट पेशंट और लंबे समय से सांस की बीमारी के पेशंट को परेशानी
बेहद खराब 301-400 ज्यादा देर ऐसी हवा में रहने से सांस संबंधी बीमारी हो सकती है
गंभीर 400 से ज्यादा स्वस्थ लोगों में भी सांस संबंधी बीमारी, जिन लोगों को पहले यह बीमारी है वह गंभीर हो सकती है
राजधानी दिल्ली की हवा इतनी खराब हो चुकी है कि इसे दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में गिना जाने लगा है। कहने को सरकार की ओर से प्रदूषण कम करने के लिए कई तरह के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन फिलहाल सभी फेल होते दिखाई दे रहे हैं। साल में ऐसे बेहद कम दिन होते हैं जब दिल्ली की हवा को शुद्ध और स्वच्छता मानकों पर गुड समझा जाता है। 2018 की बात करें तो दिल्ली में मात्र तीन दिन ऐसे थे, जब हवा का स्तर 'गुड' रहा और सबसे ज्यादा 119 दिन ऐसे रहे जब स्तर पूअर यानी खराब रहा। इस रिपोर्ट में हम बताने जा रहे हैं कि 2015 से 2018 तक दिल्ली की हवा किस कदर बदली.... किस कदर जहर घुला है और इससे इंसानी जीवन पर क्या असर पड़ा है।
58 प्रतिशत दिन बेहद खराब
प्रजा फाउंडेशन की ओर से जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक 2015 से 2018 में 58 प्रतिशत दिन ऐसे रहे जब दिल्ली में एयर क्वॉलिटी खराब और बहुत खराब मानकों पर दर्ज की गई। सरकार और पलूशन कंट्रोल बोर्ड की ओर से कई कोशिशें तो की गईं, लेकिन सफल साबित नहीं हुई। कई लोगों को अस्पताल पहुंचना पड़ा और इनमें ज्यादा संख्या अस्थमा के पेशंट्स की थी।
सबसे गंदे महीने
नवंबर, दिसंबर और जनवरी, तीन ऐसे महीने हैं जब दिल्ली में हवा का स्तर 'बेहद खराब' श्रेणी में होता है। इनमें ही लोगों को सबसे ज्यादा परेशानी होती है। जून से लेकर सितंबर तक हवा के मामले में संतोषजनक होते है। बाकी सभी महीने हवा का स्तर सामान्य से खराब रहे।
हर साल इतने लोगों की जाती है जान
चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक एयर पलूशन के चलते हर साल करीबन 65 लाख लोगों की जान जाती है। इतना ही नहीं एचआईवी-एड्स, टीबी और मलेरिया के कारण होने वाली मौतों की तुलना में एयर पलूशन 3 गुना अधिक लोगों को मारता है। इसके बावजूद इसे लेकर सभी देश गंभीर नहीं हैं जिसका परिणाम यह है कि साल दर साल पलूशन और इससे मरने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है।
ये भी हैं एयर पलूशन के कारण
चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन की रिपोर्ट के मुताबिक अक्सर लोग मच्छर मारने के लिए जिन कॉयल का इस्तेमाल करते हैं, वह एयर पलूशन और खासकर उनके स्वास्थ्य के लिए सबसे ज्यादा हानिकारक है। यह इंडोर पलूशन में आंका जाता है। रिसर्च के मुताबिक दुनिया में दो बिलियन से ज्यादा लोग इसका इस्तेमाल करते हैं जिनमें से अधिकतर उष्टणकटिबंधिय देश के लोग हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि एक मच्छर कॉयल उतना पलूशन पैदा करता है, जितना 100 सिगरेट जलाने से पैदा होता है। ऐसे में आप जान सकते हैं कि इस वक्त एयर पलूशन की क्या स्थिति है और लोगों के स्वास्थ्य पर इसका क्या असर पड़ रहा है।
इन रोगों के लिए ज्यादातर मरीज जाते हैं डॉक्टर के पास
देश के 880 शहरों/नगरों में दो महीने से 107 वर्ष के लोगों पर किए गए सर्वे के मुताबिक सबसे ज्यादा लोग सांस से जुड़ी समस्याओं को लेकर अस्पताल पहुंचते हैं। यह है आंकड़ा-
बीमारी इतने प्रतिशत लोग पहुंचे डॉक्टर के पास
श्वसन 50.6
डाइजेस्टिव 25
सर्कुलेटरी 12.5
स्कीन 9
अंत: स्रावी 6.6
एक्यूआई एक्यूआई रेंज ये पड़ सकता है प्रभाव
गुड 0-50 न्यूनतम प्रभाव
संतोषजनक 51-100 सेंसिटिव लोगों को सांस लेने में थोड़ी परेशानी हो सकती है
मीडियम 101-200 फेफड़ों के पेशंट, बच्चों, बुजुर्गों को सांस लेने में परेशानी
खराब 201-300 हार्ट पेशंट और लंबे समय से सांस की बीमारी के पेशंट को परेशानी
बेहद खराब 301-400 ज्यादा देर ऐसी हवा में रहने से सांस संबंधी बीमारी हो सकती है
गंभीर 400 से ज्यादा स्वस्थ लोगों में भी सांस संबंधी बीमारी, जिन लोगों को पहले यह बीमारी है वह गंभीर हो सकती है
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