Friday, June 28, 2019

हाई कोर्ट ने हटवाया प्यार से 'पहरा', पति-पत्नी को मिलवाया

नई दिल्ली
एक व्यक्ति को कानून के मुताबिक अपना जीवनसाथी चुनने और उसके साथ रहने का अधिकार संविधान ने स्थाई रूप से दे रखा है, उससे वह हक कोई नहीं ले सकता और उसे इस अधिकार का इस्तेमाल करने से पैरंट्स या रिश्तेदार भी नहीं रोक सकते।' दिल्ली हाई कोर्ट ने ये शब्द उस पिता को समझाते हुए कहे जो बेटी के गैर-धर्म के लड़के से शादी करने से खफा थे और उसे उसके प्यार से जबरन दूर करके अपने साथ ले गए।

जस्टिस जयंत नाथ और जस्टिस नजमी वजीरी की वकेशन बेंच ने मामले में दखल देते हुए एक पति को उसकी पत्नी से वापस मिलवा दिया। साथ ही अपनों से जान के खतरे से जुड़े उन दोनों के डर को दूर करने के लिए कोर्ट ने उनकी सुरक्षा के इंतजाम भी कर दिए। बेंच ने इस कपल को सुरक्षा घेरे में उनके यहां दिल्ली में मौजूद उस घर तक भिजवाया, जो बिछोह से पहले इनके प्यार का 'पनाहगाह' रहा। इलाके के थाना प्रभारी को हर हफ्ते इनकी सुरक्षा का आकलन करने, बीट कॉन्स्टेबल से दो महीने तक लगातार हर रोज इनकी सुरक्षा का जायजा लेने, एक लेडी अधिकारी समेत तीन पुलिस अधिकारियों के नंबर इस कपल को मुहैया कराए जाने के निर्देश दिए, जिससे जरा सा भी खतरा महसूस होने पर मदद के हाथ तुरंत इनके पास तक पहुंच सकें।

इस आदेश के साथ कोर्ट ने एक मुस्लिम युवक की उस याचिका का निपटारा कर दिया जिसमें पत्नी की सुरक्षा सुनिश्चित करने की गुहार लगाई थी। गैर धर्म से होने के बावजूद इन्होंने एक-दूसरे को अपना जीवनसाथी चुना। याचिकाकर्ता के मुताबिक, उसकी पत्नी के घरवालों को इनके रिश्ते से खासतौर पर आपत्ति थी, इसलिए इन्होंने अपनी जान को खतरे में पाते हुए कोर्ट से सुरक्षा लेने का फैसला लिया। इससे पहले लड़की के पिता यहां आए और उसे जबरन यहां से गोरखपुर, उत्तरप्रदेश ले गए।

लड़की से फोन पर बातचीत के अधार पर दायर रिपोर्ट में पुलिस ने उसके अपने पैरंट्स के साथ होने की बात कही लेकिन उसके पति ने उसे जबर्दस्ती घर में रोक कर रखे जाने की आशंका जताई। इस पर कोर्ट ने लड़की को ही अपने सामने बुलवा लिया। बातचीत के जरिए उसकी मर्जी जानी जो अपने पति के साथ जाने की मिली। लड़की के पिता ने भी कोर्ट के सामने इस विवाह को मंजूरी दे दी। उनकी ओर से इन दोनों की जान को कोई खतरा न होने का कोर्ट को भरोसा दिलाया।.

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