शंकर सिंह, नई दिल्ली
नीतू सोलंकी हत्याकांड के आरोपी का आठ साल तक पीछा करने वाले इंस्पेक्टर को मिली तो सिर्फ उसकी लाश। आरोपी राजू ने नीतू की हत्या कर बैग में शव डालकर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया था। उसके बाद वह रोहन दहिया के नाम से रहने लगा और एक कंपनी में जॉब भी कर रहा था। पुलिस ने राजू के परिवार को इसकी जानकारी दी तो परिजन पहले पहचान से इनकार करने लगे। आखिरकार उसके चाचा रण सिंह गहलोत, जो दिल्ली पुलिस से रिटायर्ड एसीपी हैं, ने उसकी पहचान कर ली।
राजू और नीतू का एक था गोत्र, इसलिए 'गायब' हो गए थे दोनों
नवादा का राजू गहलोत और मटियाला की नीतू सोलंकी करीब आए। दोनों के गोत्र एक थे, इसलिए शादी के लिए परिजनों की इजाजत नहीं मिलने का डर उन्हें सता रहा था। लॉ ग्रैजुएट होने के बावजूद कॉल सेंटर में काम करने वाली नीतू ने मार्च 2010 में परिजनों से सिंगापुर में जॉब लगने की बात कही और गायब हो गई। राजू ने भी अप्रैल 2010 में एयर इंडिया से जॉब छोड़ दी। ये दोनों मुंबई, गोवा और बेंगलुरू में रहते रहे।
पैसों को लेकर दरार बनी हत्या की वजह
जब पैसे खर्च हो गए तो फिर दोनों ने दिल्ली में अपना आशियाना बना लिया लेकिन दोनों के बीच पैसों को लेकर दरार बढ़ने लगी तो राजू ने नीतू का मर्डर कर दिया।
रिश्तेदार ने बताया था, राजू ने की थी हत्या
इस केस में 2 मार्च 2011 को राजू के बुआ के लड़के नवीन शौकीन को गिरफ्तार किया गया। उसने बताया कि राजू और नीतू में झगड़ा होता था। गुस्से में आकर उसने नीतू की हत्या कर दी। लाश को चलती ट्रेन में रखने के इरादे से वह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचा था, लेकिन वहां स्कैनर लगा देख लाश वहीं छोड़ दी और फरार हो गया।
क्राइम ब्रांच और राजू के बीच चला चूहे-बिल्ली का खेल
आठ साल तक क्राइम ब्रांच और राजू के बीच चूहे-बिल्ली का खेल चला, जो 25 जून को तब खत्म हुआ जब गुड़गांव के अस्पताल में लीवर की बीमारी से उसकी मौत हो गई। क्राइम ब्रांच के मुताबिक, 11 फरवरी 2011 को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर बैग में लाश मिली थी। कमर पर मोर पंख का टैटू था। 15 दिन बाद लाश की पहचान नीतू के तौर पर हुई थी। इसके बाद काफी ढूंढने के बाद भी राजू गहलोत नहीं मिला।
लगातार देता रहा पुलिस को चकमा
क्राइम ब्रांच के एक अफसर ने बताया कि इंस्पेक्टर रितेश कुमार ने इस केस में काफी काम किया। दिल्ली पुलिस की 10 मोस्ट वॉन्टेड की लिस्ट में शुमार रहे राजू गहलोत के कई बार करीब पहुंचे, लेकिन दबोचने से रह गए। राजू के गोवा में होने की लीड मिली तो क्राइम ब्रांच की टीम ने मई-जून में डेढ़ महीने तक वहां डेरा डाला। कसीनो से लेकर होटलों में उसकी खोज की, लेकिन वह आगे चलता रहा और टीम उसके पीछे।
राजू के करीबियों को पुलिस ने भरोसे में लिया
क्राइम ब्रांच की टीम ने दिल्ली आकर राजू के परिवार के करीबियों को अपने भरोसे में लिया। एक परिजन ने बताया कि कोई बाहर से लेटर आया है। इंस्पेक्टर रितेश कुमार घर पहुंचे और कड़ी पूछताछ की तो लेटर में सिम मिला। इसमें अपने भाई को लिखा था कि नया फोन लो और इस सिम कॉो डालो, फिर बात करो। जांच करने पर यह सिम मुंबई के परेल के अड्रेस पर लिया था, वहां छापा मारा तो स्टेशन के बाहर छाते पर सिम बेचने वाले के नाम पर लिया गया था।
मुबंई के कॉल सेंटर से आया कॉल
अगस्त 2011 में मुंबई के कल्याण से एक लैंडलाइन से कॉल आई, जांच करने पर सामने आया कि वहां के थाने के कॉल सेंटर से यह फोन आया है। जांच अफसरों ने यहां बगैर डॉक्यूमेंट के इंटरव्यू दिया और सिलेक्ट हो गए। ऐसा करने पर उन्होंने कॉल सेंटर के अफसरों को खंगाला तो कुछ नहीं मिला क्योंकि खबर लगने पर आरोपी यहां से भी फरार हो चुका था।
आखिर खत्म हुआ केस
25 जून 2019 को गुड़गांव के हॉस्पिटल से जब राजू ने अपने घर कॉल किया तो उसके एक रिलेटिव ने इंस्पेक्टर रितेश को इसकी जानकारी दी, जो अपनी टीम को लेकर गुड़गांव पहुंचे तो राजू की मौत हो चुकी थी।
नीतू सोलंकी हत्याकांड के आरोपी का आठ साल तक पीछा करने वाले इंस्पेक्टर को मिली तो सिर्फ उसकी लाश। आरोपी राजू ने नीतू की हत्या कर बैग में शव डालकर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया था। उसके बाद वह रोहन दहिया के नाम से रहने लगा और एक कंपनी में जॉब भी कर रहा था। पुलिस ने राजू के परिवार को इसकी जानकारी दी तो परिजन पहले पहचान से इनकार करने लगे। आखिरकार उसके चाचा रण सिंह गहलोत, जो दिल्ली पुलिस से रिटायर्ड एसीपी हैं, ने उसकी पहचान कर ली।
राजू और नीतू का एक था गोत्र, इसलिए 'गायब' हो गए थे दोनों
नवादा का राजू गहलोत और मटियाला की नीतू सोलंकी करीब आए। दोनों के गोत्र एक थे, इसलिए शादी के लिए परिजनों की इजाजत नहीं मिलने का डर उन्हें सता रहा था। लॉ ग्रैजुएट होने के बावजूद कॉल सेंटर में काम करने वाली नीतू ने मार्च 2010 में परिजनों से सिंगापुर में जॉब लगने की बात कही और गायब हो गई। राजू ने भी अप्रैल 2010 में एयर इंडिया से जॉब छोड़ दी। ये दोनों मुंबई, गोवा और बेंगलुरू में रहते रहे।
पैसों को लेकर दरार बनी हत्या की वजह
जब पैसे खर्च हो गए तो फिर दोनों ने दिल्ली में अपना आशियाना बना लिया लेकिन दोनों के बीच पैसों को लेकर दरार बढ़ने लगी तो राजू ने नीतू का मर्डर कर दिया।
रिश्तेदार ने बताया था, राजू ने की थी हत्या
इस केस में 2 मार्च 2011 को राजू के बुआ के लड़के नवीन शौकीन को गिरफ्तार किया गया। उसने बताया कि राजू और नीतू में झगड़ा होता था। गुस्से में आकर उसने नीतू की हत्या कर दी। लाश को चलती ट्रेन में रखने के इरादे से वह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचा था, लेकिन वहां स्कैनर लगा देख लाश वहीं छोड़ दी और फरार हो गया।
क्राइम ब्रांच और राजू के बीच चला चूहे-बिल्ली का खेल
आठ साल तक क्राइम ब्रांच और राजू के बीच चूहे-बिल्ली का खेल चला, जो 25 जून को तब खत्म हुआ जब गुड़गांव के अस्पताल में लीवर की बीमारी से उसकी मौत हो गई। क्राइम ब्रांच के मुताबिक, 11 फरवरी 2011 को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर बैग में लाश मिली थी। कमर पर मोर पंख का टैटू था। 15 दिन बाद लाश की पहचान नीतू के तौर पर हुई थी। इसके बाद काफी ढूंढने के बाद भी राजू गहलोत नहीं मिला।
लगातार देता रहा पुलिस को चकमा
क्राइम ब्रांच के एक अफसर ने बताया कि इंस्पेक्टर रितेश कुमार ने इस केस में काफी काम किया। दिल्ली पुलिस की 10 मोस्ट वॉन्टेड की लिस्ट में शुमार रहे राजू गहलोत के कई बार करीब पहुंचे, लेकिन दबोचने से रह गए। राजू के गोवा में होने की लीड मिली तो क्राइम ब्रांच की टीम ने मई-जून में डेढ़ महीने तक वहां डेरा डाला। कसीनो से लेकर होटलों में उसकी खोज की, लेकिन वह आगे चलता रहा और टीम उसके पीछे।
राजू के करीबियों को पुलिस ने भरोसे में लिया
क्राइम ब्रांच की टीम ने दिल्ली आकर राजू के परिवार के करीबियों को अपने भरोसे में लिया। एक परिजन ने बताया कि कोई बाहर से लेटर आया है। इंस्पेक्टर रितेश कुमार घर पहुंचे और कड़ी पूछताछ की तो लेटर में सिम मिला। इसमें अपने भाई को लिखा था कि नया फोन लो और इस सिम कॉो डालो, फिर बात करो। जांच करने पर यह सिम मुंबई के परेल के अड्रेस पर लिया था, वहां छापा मारा तो स्टेशन के बाहर छाते पर सिम बेचने वाले के नाम पर लिया गया था।
मुबंई के कॉल सेंटर से आया कॉल
अगस्त 2011 में मुंबई के कल्याण से एक लैंडलाइन से कॉल आई, जांच करने पर सामने आया कि वहां के थाने के कॉल सेंटर से यह फोन आया है। जांच अफसरों ने यहां बगैर डॉक्यूमेंट के इंटरव्यू दिया और सिलेक्ट हो गए। ऐसा करने पर उन्होंने कॉल सेंटर के अफसरों को खंगाला तो कुछ नहीं मिला क्योंकि खबर लगने पर आरोपी यहां से भी फरार हो चुका था।
आखिर खत्म हुआ केस
25 जून 2019 को गुड़गांव के हॉस्पिटल से जब राजू ने अपने घर कॉल किया तो उसके एक रिलेटिव ने इंस्पेक्टर रितेश को इसकी जानकारी दी, जो अपनी टीम को लेकर गुड़गांव पहुंचे तो राजू की मौत हो चुकी थी।
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