इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि केंद्र की सत्ता की राह दिल्ली के चुनावी रण से होकर गुजरती है। अबतक हुए चुनावों में से तीन को अपवाद मान लें तो अन्य सभी चुनावों में दिल्ली फतह करने वाली पार्टी या गठबंधन को देश पर शासन करने का मौका मिला है। अमूमन यहां के मतदाता स्पष्ट जनादेश सुनाते हुए किसी एक पक्ष में खड़े होते हैं। कांग्रेस व भाजपा के बीच सीधी चुनावी लड़ाई के साथ ही त्रिकोणीय मुकाबले में भी मतदाताओं का रुझान कुछ इसी तरह का रहा है। अब एक बार फिर से चुनावी रण सजने लगे हैं और यहां के लोगों को सियासी सूूरमाओं के सामने आने का इंतजार है। 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में दिल्ली की चार में से तीन सीटों पर और 1957 में चारों सीटों पर जीत हासिल करने वाली कांग्रेस की केंद्र में भी सरकार बनी थी। कुछ 1962 में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। कांग्रेस ने दिल्ली की पांचों सीटें जीतने के साथ ही केंद्र में तीसरी बार सरकार बनाने में सफल रही थी।
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