नई दिल्ली
बेटे के शव को पाकिस्तान से भारत लाने की मांग लिए कश्मीरी मां-बाप एक महीने से दिल्ली में भटक रहे हैं। वे पीएम मोदी और विदेश मंत्री से भी गुहार लगा चुके हैं। दरअसल राजौरी जिले के सलीम गैस टैंकर लेकर दो लोगों के साथ लेह निकले थे। बीती 7 जून को उनका टैंकर करगिल के पास सिंध नदी में गिर गया और तेज बहाव में पाक पहुंच गया। टैंकर पर लिखे नंबर पर POK से आई कॉल से पिता कबीर को बेटे सलीम के मरने की जानकारी मिली। भारतीय होने के कारण सलीम के शव को वहां रेत में गाड़ दिया गया है। घरवाले उसे भारत लाकर दफन करना चाहते हैं।
यह हादसा राजौरी जिले के सलीम, शौकत, जब्बार तीनों के साथ हुआ। भारत पाकिस्तान के दरम्यां बहती ‘दरियां ए सिंध’ (सिंधू) नदी की उफनती लहरें 7 जून को एक हादसे में तीनों को बहाकर सरहद पार ले गईं। मगर मौत के बाद तीनों शव दो मुल्कों की सरहद में अटककर रह गए। हिंदुस्तानी होने की वजह से वहां न कांधे मिले और ना कब्र।
शौकत और जब्बार के शव पाकिस्तान में कहां फंसे, यह किसी को नहीं पता। मगर सलीम का शव पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगित-बाल्टिस्तान में रखा है। बेटे के शव को वतन वापस लाने के लिए कश्मीर से आए मां-बाप पिछले एक महीने से दिल्ली में दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। जिद है कि बेटे को वतन की मिट्टी में ही दफनाएंगे। हाथ में फाइलें हैं। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मदद की गुहार है। उनकी कोठी के बाहर दिन गुजार देते हैं। शाम ढलते ही मायूस होकर भूखे प्यासे पुरानी दिल्ली की गलियों में लौट आते हैं। ऐसे भी दिन देखे, जब जेब में पैसे नहीं बचे। जामा मस्जिद के बाहर बैठकर जो मिला खा लिया।
‘न पैसे हैं न पासपोर्ट, कैसे लाएं बेटे का शव’
बेटे के लिए बेबस पिता कबीर भट्ट व मां गुलनाज परवीन ने एनबीटी से दर्द साझा किया। उन्होंने बताया कि वे जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले में नेरोजाल गांव के रहने वाले हैं। ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं। न पैसे हैं न पासपोर्ट। इस वजह से बस, रेल या प्लेन से पाकिस्तान जा नहीं सकते। कबीर कुछ साल पहले तक खुद एक ट्रक ड्राइवर थे। घर में बेहद तंगहाली है। चार बेटे हैं। सभी मजदूरी करते हैं जिनमें सबसे छोटा बेटा 18 वर्षीय सलीम चार महीने पहले दिल्ली के ट्रांसपोर्ट नगर में हेल्पर था। वह गांव वापस चला गया। फिर से काम दिलाने के लिए कबीर 3 जून को सलीम को लेकर जम्मू गए जहां कारोबारी चमन के यहां गैस टैंकर पर हेल्पर रखवाया। गैस टैंकर लेह में चल रहे प्रॉजेक्ट के लिए चलते हैं।
गैस टैंकर नदी में बहकर पहुंचा पीओके
4 जून को गैस टैंकर लेह के लिए चला। राजौरी जिले के ही ड्राइवर शौकत, जब्बार व हेल्पर के तौर पर बेटा सलीम उस गैस टैंकर पर था। 7 जून को करगिल के हरदास ब्रिज से गैस टैंकर खाई में खिसक कर ‘दरियां ए सिंध’ नदी के तेज बहाव में बह गया। वहां से गुजरे राहगीरों ने हादसे को देखा। आर्मी को इत्तला दी। 2 दिन तक आर्मी ने ढूंढा लेकिन कुछ भी पता नहीं चला। फिर पुलिस में गुमशुदगी दर्ज कराई।
टैंकर पर लिखे नंबर पर पाकिस्तानी ने की कॉल
एक महीने बाद जम्मू में चमन के मोबाइल पर अचानक पाक अधिकृत कश्मीर के स्कर्दू जिला से आशिक हुसैन नाम के शख्स की कॉल आई। बताया कि गिलगिट के खैरमंग में नदी किनारे गैस टैंकर आधा डूबा हुआ मिला है। टैंकर पर मोबाइल नंबर लिखा था, इसलिए कॉल किया है। तभी चमन ने सलीम के पिता कबीर को इस हादसे की इत्तला दी। कॉलर आशिक हुसैन का नंबर भी दिया। घर में कोहराम मच गया। कबीर ने आशिक हुसैन से बात की। बताया कि गिलगित की पुलिस ने टैंकर से एक शव बरामद किया है। आशिक हुसैन ने वहां के हालात व शव की वॉट्सऐप पर काफी फोटो कबीर को भेजीं। कबीर ने शव देखकर बेटे सलीम को पहचान लिया।
हिंदुस्तानी होने की वजह से कब्रिस्तान में नहीं दफनाया
पाक नागरिक आशिक हुसैन ने यह भी बताया कि उनके मुल्क की पुलिस व मौलवी को जैसे ही पता चला कि शव हिंदुस्तानी है, उन्होंने कब्रिस्तान में दफनाने के बजाय जनाजा पढ़कर रेत में गाड़ दिया। तब से आशिक हुसैन उस मुल्क से इंसानी फर्ज अदा कर रहे हैं। उन्होंने ही अपने मुल्क में शव को वापस भेजने के कानून का पता किया। फिर बताया कि अगर शव छह महीने के भीतर क्लेम नहीं किया तो वापस नहीं मिलेगा। इस 7 अक्टूबर को पूरे चार महीने होने को हैं। बेटे के शव को वतन वापस लाने की छटपटाहट शुरू हुई। जम्मू कश्मीर में 100 से अधिक प्रशासनिक विभाग में चक्कर काटे। राज्य के होम कमिश्नर, सांसद, एमएलए ने लेटर लिखा। जेएंडके राज्य की तरफ से इसी 14 सितंबर को एक फाइल विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को भेजी गई।
पीएम और विदेश मंत्री से मदद की गुहार
परिवार मदद की आस में दिल्ली आ गया। एक महीने से तुर्कमान गेट में हैं। दास्तां सुनकर दिल्ली के ही जलालुदीन व अन्य लोग मदद को आगे आए। कबीर के मुताबिक फाइलें, फोटो लेकर विदेश मंत्री की कोठी पर जाते हैं। वहां से बैंरग लौटा दिए जाते हैं। अब कहा गया है कि विदेश मंत्री अमेरिका में हैं, लौटेंगी तभी आना। कबीर को पीएम मोदी व विदेश मंत्री से मदद की उम्मीद है। अगर शव नहीं आया तो जान दे देंगे, कहते हुए रो पड़ते हैं, ‘साहब! पाकिस्तान के कब्जे से जल्द मेरे बेटे की बॉडी मिल जाए। हम अपने हिंदुस्तान की मिट्टी में दफन करेंगे। चाहे दिल्ली में ही दफना दो। पाकिस्तानियों ने मेरे बेटे का शव नदी से निकालकर कब्रिस्तान में भी नही दफनाया, बल्कि नाले के पास रेत में गाढ़ दिया क्योंकि हम हिंदुस्तानी हैं।’
कबीर के मुताबिक, उनकी सेहत ठीक नहीं रहती। पिछले 18 साल में 9 ऑपरेशन दिल्ली व जम्मू के अस्पतालों में हो चुके हैं। बेटे के हादसे से एक महीने पहले दिल्ली स्थित दीनदयाल में ऑपरेशन करा चुके हैं। सलीम की मां दिन-रात रोती रहती है। टकटकी लगाए देखती है शायद सलीम आया होगा।
बेटे के शव को पाकिस्तान से भारत लाने की मांग लिए कश्मीरी मां-बाप एक महीने से दिल्ली में भटक रहे हैं। वे पीएम मोदी और विदेश मंत्री से भी गुहार लगा चुके हैं। दरअसल राजौरी जिले के सलीम गैस टैंकर लेकर दो लोगों के साथ लेह निकले थे। बीती 7 जून को उनका टैंकर करगिल के पास सिंध नदी में गिर गया और तेज बहाव में पाक पहुंच गया। टैंकर पर लिखे नंबर पर POK से आई कॉल से पिता कबीर को बेटे सलीम के मरने की जानकारी मिली। भारतीय होने के कारण सलीम के शव को वहां रेत में गाड़ दिया गया है। घरवाले उसे भारत लाकर दफन करना चाहते हैं।
यह हादसा राजौरी जिले के सलीम, शौकत, जब्बार तीनों के साथ हुआ। भारत पाकिस्तान के दरम्यां बहती ‘दरियां ए सिंध’ (सिंधू) नदी की उफनती लहरें 7 जून को एक हादसे में तीनों को बहाकर सरहद पार ले गईं। मगर मौत के बाद तीनों शव दो मुल्कों की सरहद में अटककर रह गए। हिंदुस्तानी होने की वजह से वहां न कांधे मिले और ना कब्र।
शौकत और जब्बार के शव पाकिस्तान में कहां फंसे, यह किसी को नहीं पता। मगर सलीम का शव पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगित-बाल्टिस्तान में रखा है। बेटे के शव को वतन वापस लाने के लिए कश्मीर से आए मां-बाप पिछले एक महीने से दिल्ली में दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। जिद है कि बेटे को वतन की मिट्टी में ही दफनाएंगे। हाथ में फाइलें हैं। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मदद की गुहार है। उनकी कोठी के बाहर दिन गुजार देते हैं। शाम ढलते ही मायूस होकर भूखे प्यासे पुरानी दिल्ली की गलियों में लौट आते हैं। ऐसे भी दिन देखे, जब जेब में पैसे नहीं बचे। जामा मस्जिद के बाहर बैठकर जो मिला खा लिया।
‘न पैसे हैं न पासपोर्ट, कैसे लाएं बेटे का शव’
बेटे के लिए बेबस पिता कबीर भट्ट व मां गुलनाज परवीन ने एनबीटी से दर्द साझा किया। उन्होंने बताया कि वे जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले में नेरोजाल गांव के रहने वाले हैं। ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं। न पैसे हैं न पासपोर्ट। इस वजह से बस, रेल या प्लेन से पाकिस्तान जा नहीं सकते। कबीर कुछ साल पहले तक खुद एक ट्रक ड्राइवर थे। घर में बेहद तंगहाली है। चार बेटे हैं। सभी मजदूरी करते हैं जिनमें सबसे छोटा बेटा 18 वर्षीय सलीम चार महीने पहले दिल्ली के ट्रांसपोर्ट नगर में हेल्पर था। वह गांव वापस चला गया। फिर से काम दिलाने के लिए कबीर 3 जून को सलीम को लेकर जम्मू गए जहां कारोबारी चमन के यहां गैस टैंकर पर हेल्पर रखवाया। गैस टैंकर लेह में चल रहे प्रॉजेक्ट के लिए चलते हैं।
गैस टैंकर नदी में बहकर पहुंचा पीओके
4 जून को गैस टैंकर लेह के लिए चला। राजौरी जिले के ही ड्राइवर शौकत, जब्बार व हेल्पर के तौर पर बेटा सलीम उस गैस टैंकर पर था। 7 जून को करगिल के हरदास ब्रिज से गैस टैंकर खाई में खिसक कर ‘दरियां ए सिंध’ नदी के तेज बहाव में बह गया। वहां से गुजरे राहगीरों ने हादसे को देखा। आर्मी को इत्तला दी। 2 दिन तक आर्मी ने ढूंढा लेकिन कुछ भी पता नहीं चला। फिर पुलिस में गुमशुदगी दर्ज कराई।
टैंकर पर लिखे नंबर पर पाकिस्तानी ने की कॉल
एक महीने बाद जम्मू में चमन के मोबाइल पर अचानक पाक अधिकृत कश्मीर के स्कर्दू जिला से आशिक हुसैन नाम के शख्स की कॉल आई। बताया कि गिलगिट के खैरमंग में नदी किनारे गैस टैंकर आधा डूबा हुआ मिला है। टैंकर पर मोबाइल नंबर लिखा था, इसलिए कॉल किया है। तभी चमन ने सलीम के पिता कबीर को इस हादसे की इत्तला दी। कॉलर आशिक हुसैन का नंबर भी दिया। घर में कोहराम मच गया। कबीर ने आशिक हुसैन से बात की। बताया कि गिलगित की पुलिस ने टैंकर से एक शव बरामद किया है। आशिक हुसैन ने वहां के हालात व शव की वॉट्सऐप पर काफी फोटो कबीर को भेजीं। कबीर ने शव देखकर बेटे सलीम को पहचान लिया।
हिंदुस्तानी होने की वजह से कब्रिस्तान में नहीं दफनाया
पाक नागरिक आशिक हुसैन ने यह भी बताया कि उनके मुल्क की पुलिस व मौलवी को जैसे ही पता चला कि शव हिंदुस्तानी है, उन्होंने कब्रिस्तान में दफनाने के बजाय जनाजा पढ़कर रेत में गाड़ दिया। तब से आशिक हुसैन उस मुल्क से इंसानी फर्ज अदा कर रहे हैं। उन्होंने ही अपने मुल्क में शव को वापस भेजने के कानून का पता किया। फिर बताया कि अगर शव छह महीने के भीतर क्लेम नहीं किया तो वापस नहीं मिलेगा। इस 7 अक्टूबर को पूरे चार महीने होने को हैं। बेटे के शव को वतन वापस लाने की छटपटाहट शुरू हुई। जम्मू कश्मीर में 100 से अधिक प्रशासनिक विभाग में चक्कर काटे। राज्य के होम कमिश्नर, सांसद, एमएलए ने लेटर लिखा। जेएंडके राज्य की तरफ से इसी 14 सितंबर को एक फाइल विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को भेजी गई।
पीएम और विदेश मंत्री से मदद की गुहार
परिवार मदद की आस में दिल्ली आ गया। एक महीने से तुर्कमान गेट में हैं। दास्तां सुनकर दिल्ली के ही जलालुदीन व अन्य लोग मदद को आगे आए। कबीर के मुताबिक फाइलें, फोटो लेकर विदेश मंत्री की कोठी पर जाते हैं। वहां से बैंरग लौटा दिए जाते हैं। अब कहा गया है कि विदेश मंत्री अमेरिका में हैं, लौटेंगी तभी आना। कबीर को पीएम मोदी व विदेश मंत्री से मदद की उम्मीद है। अगर शव नहीं आया तो जान दे देंगे, कहते हुए रो पड़ते हैं, ‘साहब! पाकिस्तान के कब्जे से जल्द मेरे बेटे की बॉडी मिल जाए। हम अपने हिंदुस्तान की मिट्टी में दफन करेंगे। चाहे दिल्ली में ही दफना दो। पाकिस्तानियों ने मेरे बेटे का शव नदी से निकालकर कब्रिस्तान में भी नही दफनाया, बल्कि नाले के पास रेत में गाढ़ दिया क्योंकि हम हिंदुस्तानी हैं।’
कबीर के मुताबिक, उनकी सेहत ठीक नहीं रहती। पिछले 18 साल में 9 ऑपरेशन दिल्ली व जम्मू के अस्पतालों में हो चुके हैं। बेटे के हादसे से एक महीने पहले दिल्ली स्थित दीनदयाल में ऑपरेशन करा चुके हैं। सलीम की मां दिन-रात रोती रहती है। टकटकी लगाए देखती है शायद सलीम आया होगा।
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