Thursday, September 27, 2018

पार्क में करंट लगने से हुई थी मौत, चार साल बाद 27 लाख मुआवजा

नई दिल्ली
लगभग चार पहले एमसीडी के एक पार्क में करंट लगने से अपने 14 साल के बेटे अक्षत को खो देने वाले राजीव सिंघल का संघर्ष अब जाकर अपने अंजाम तक पहुंचा। दिल्ली हाई कोर्ट ने माना कि उनके बेटे की मौत ईस्ट एमसीडी और बीएसईएस की लापरवाही की वजह से हुई और इसीलिए कोर्ट ने इस क्षति की भरपाई के लिए उन्हें 27 लाख से ज्यादा का मुआवजा दिलाने का फैसला सुनाया है।

चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन की अगुवाई वाली बेंच ने कहा, 'हमें यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि केस के तथ्यों और परिस्थितियों से साफ है कि दोनों प्रतिवादी(ईस्ट एमसीडी और बीएसईएस) कानून के तहत अपनी सार्वजनिक जिम्मेदारी को पूरा करने में नाकाम रहे और जब हमने यह मान लिया तो उनकी इस लापरवाही की वजह से पीड़ितों को पहुंचे कष्ट के लिए मुआवजा दिलाने से मना करने की कोई वजह नजर नहीं आ रही है।' कोर्ट ने संबंधित निगम और बिजली कंपनी को आदेश दिया कि वह मृतक बच्चे के माता-पिता को मुआवजे के तौर पर 27,38,607.81 रुपये का भुगतान करें। साथ में मूल रकम पर सालाना 9 फीसदी का ब्याज अलग से। दोनों प्रतिवादियों पर मुआवजे की कुल रकम की आधी-आधी देनदारी तय करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि वे बाद में इस विवाद का निपटारा कर सकते हैं कि किस के ऊपर कितनी देनदारी बनती है।

पीड़ित पक्ष की ओर से ऐडवोकेट उदय गुप्ता ने दो जजों की बेंच के सामने यह याचिका दायर की थी, जिसमें संबंधित मामले में सिंगल बेंच के फैसले को चुनौती दी गई। गुप्ता ने बताया कि सिंगल जज ने हादसे को लेकर उनके प्रति पूरी संवेदना तो दिखाई लेकिन सिविक एजेंसियों के जिम्मेदारी लेने से मना करने के आधार पर मुआवजा तय करने से इनकार कर दिया था। याचिकाकर्ता ने 45 लाख रुपये का मुआवजा दिलाए जाने की मांग की थी।

'हमने पार्क जाना ही छोड़ दिया है'

मृतक के पिता कहते हैं, ‘बेटी के बाद जब बेटा पैदा हुआ तो हमें अपना परिवार पूरा लगने लगा। लाइफ में सब कुछ सेटल सा लगने लगा था लेकिन अब सब कुछ खत्म हो गया है।' यह कहते हुए लड़खड़ा रही एक पिता की जुबां बताने के लिए काफी थी कि मुआवजा संतान को खोने के दर्द के नुकसान की भरपाई नहीं कर सकता। राजीव सिंघल बताते हैं कि उन्होंने अपने 14 साल के बेटे की मौत के लिए मुआवजा दिलाए जाने की मांग इसीलिए की, जिससे उन लोगों को अपनी जिम्मेदारी का अहसास कराया जा सके, जो आम जनता के पैसों से बने दफ्तरों को अपनी आरामगाह बनाकर बैठे रहते हैं। एनबीटी से बातचीत में उन्होंने बताया कि वह गांधी नगर होलसेल मार्केट में रेडीमेड गार्मेंट्स की एक दुकान चलाते हैं। पत्नी घर से ही अकाउंटिंग का काम कर लेती है। 21 साल की बेटी है जो कॉलेज में पढ़ती है। वह बताते हैं, ‘उस घटना के बाद से ही हमने पार्क जाना छोड़ दिया। यही नहीं हम किसी पार्क में नहीं जाते। बेटे को याद कर आज भी दिल भर आता है कि वह आज मेरे बराबर हो चुका होता। मेरे काम में हाथ बंटाने लगता लेकिन हमारी सारी खुशियां छिन गईं।’

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