भरत सिंह रावत आखिरी सांस तक जज्बे के साथ लड़े। सीने में कई गोलियां समा चुकी थीं, असहनीय पीड़ा थी, फिर भी बंदूक से गोलियों की बौछार करते हुए आगे बढ़ते गए।
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