अनूप पाण्डेय, नई दिल्ली
जिंदगी की चमक कैसे फीकी पड़ती है और उसका असर कितनी जानों को अंधेरे में ले जाता है, इसका सच मंडावली पहुंचने पर पता चलता है। कथित तौर पर भूख से मरने वाली 3 बच्चियां ऐसे परिवार में जन्मी थीं, जिनके मुखिया एक समय अपनी जेब से कई भूखों को खाना खिलाते थे।
मंगल पहले साकेत ब्लॉक की गली नंबर-14 में चाय और परांठे का ढाबा चलाते थे। वहां रहने वाले इमरान ने बताया कि मंगल की दुकान अच्छी चलती थी। मंडावली में रहने वाले बैचलर्स और कई दूसरे लोग परांठे खाने के लिए पहुंचते थे। मंगल की एक खूबी यह थी कि वह किसी कस्टमर से पैसे के लिए नहीं पूछते थे। रिक्शा-ठेले वाले जिनके पास कई बार पैसे नहीं होते थे, उन्हें मुफ्त में खाना खिलाते थे। उनकी दुकान पर अकसर बड़ी संख्या में भिखारी आते थे। वह उनसे पैसे नहीं लेते थे। जो खाना बच जाता था उसे बांट भी देते थे।
इमरान ने बताया कि मंगल की शराब पीने की आदत थी। मगर, इस स्थिति में भी उन्होंने कभी किसी से बदसलूकी नहीं की। कोई झगड़ा नहीं हुआ। कर्ज और ठगी के कारण उनका ढाबा चल नहीं पाया। इसके बाद मंगल रिक्शा चलाने लगे।
10 कदम दूर आंगनबाड़ी केंद्र
पंडित चौक के पास जिस मकान में 3 बच्चियों की मौत हुई, वहां से ठीक 10 कदम की दूरी पर आंगनबाड़ी केंद्र है। यहां रोज लगभग 40 बच्चे खाना खाते हैं। आंगनबाड़ी केंद्र की सेविका ने बताया कि 20 बच्चे रजिस्टर्ड हैं, लेकिन 40 बच्चों का खाना आता है। उनका कहना है कि तीनों बच्चियां आंगनबाड़ी केंद्र पर कभी नहीं आईं। वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि अगर तीनों बच्चियां और उनकी मां कमरे में बंद नहीं होतीं तो उन्हें आंगनबाड़ी केंद्र से खाना मिल जाता।
जिंदगी की चमक कैसे फीकी पड़ती है और उसका असर कितनी जानों को अंधेरे में ले जाता है, इसका सच मंडावली पहुंचने पर पता चलता है। कथित तौर पर भूख से मरने वाली 3 बच्चियां ऐसे परिवार में जन्मी थीं, जिनके मुखिया एक समय अपनी जेब से कई भूखों को खाना खिलाते थे।
मंगल पहले साकेत ब्लॉक की गली नंबर-14 में चाय और परांठे का ढाबा चलाते थे। वहां रहने वाले इमरान ने बताया कि मंगल की दुकान अच्छी चलती थी। मंडावली में रहने वाले बैचलर्स और कई दूसरे लोग परांठे खाने के लिए पहुंचते थे। मंगल की एक खूबी यह थी कि वह किसी कस्टमर से पैसे के लिए नहीं पूछते थे। रिक्शा-ठेले वाले जिनके पास कई बार पैसे नहीं होते थे, उन्हें मुफ्त में खाना खिलाते थे। उनकी दुकान पर अकसर बड़ी संख्या में भिखारी आते थे। वह उनसे पैसे नहीं लेते थे। जो खाना बच जाता था उसे बांट भी देते थे।
इमरान ने बताया कि मंगल की शराब पीने की आदत थी। मगर, इस स्थिति में भी उन्होंने कभी किसी से बदसलूकी नहीं की। कोई झगड़ा नहीं हुआ। कर्ज और ठगी के कारण उनका ढाबा चल नहीं पाया। इसके बाद मंगल रिक्शा चलाने लगे।
10 कदम दूर आंगनबाड़ी केंद्र
पंडित चौक के पास जिस मकान में 3 बच्चियों की मौत हुई, वहां से ठीक 10 कदम की दूरी पर आंगनबाड़ी केंद्र है। यहां रोज लगभग 40 बच्चे खाना खाते हैं। आंगनबाड़ी केंद्र की सेविका ने बताया कि 20 बच्चे रजिस्टर्ड हैं, लेकिन 40 बच्चों का खाना आता है। उनका कहना है कि तीनों बच्चियां आंगनबाड़ी केंद्र पर कभी नहीं आईं। वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि अगर तीनों बच्चियां और उनकी मां कमरे में बंद नहीं होतीं तो उन्हें आंगनबाड़ी केंद्र से खाना मिल जाता।
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