शमसे आलम, नई दिल्ली
उम्र 57 साल, शरीर स्लिप डिस्क के दर्द से परेशान लेकिन बेजुबानों के लिए यह कमलेश का प्यार ही है जो पिछले 17 सालों से लगातार उनकी सेवा में लगी हैं। कमलेश चौधरी अब तक दो हजार से ज्यादा पशु-पक्षियों का इलाज करा चुकी हैं। यही नहीं, वह रोजाना इन्हें खाने से लेकर दवाइयां तक अपने हाथों से खिलाती हैं। इनके जुनून और जज्बे को हर कोई सलाम करता है।
बचपन से पशु और पक्षियों को पालने का शौक रखने वाली कमलेश चौधरी (57) अपने परिवार के साथ मॉडल टाऊन स्थित गुजरावालां टाउन-2 में रहती हैं। पति ऋषिपाल चौधरी दिल्ली जलबोर्ड के डायरेक्टर पद से रिटायर्ड हैं। परिवार में बेटा वरुण, बेटी पूजा के अलावा बहू शामभवी हैं। कमलेश बताती हैं कि बेटा, बेटी और बहू तीनों डॉक्टर हैं। घर में भगवान का दिया सबकुछ है। बचपन से पशु और पक्षियों का शौक कब जुनून में बदल गया पता ही नहीं चला। कमलेश ने इसकी शुरुआत साल 2001 से पहाड़गंज स्थित आरामबाग से की थी। यहां 14 साल सेवा करने के बाद सिविल लाइन स्थित कैंप में रहने चली गईं। अब दो सालों से मॉडल टाउन इलाके में पशु-पक्षियों की सेवा में जुटी हैं।
कमलेश कहती हैं कि इन 17 सालों में बेजुबानों की सेवा कर उनकी भाषा समझ चुकी हैं। उनके दुख दर्द को समझती हैं। यही कारण है कि कमलेश मॉडल टाउन इलाके में जहां भी जाती हैं, जानवर कमलेश की आहट से पास आ जाते हैं। मॉडल टाउन इलाके में कमलेश ने 6 जगहों पर पशु और पक्षियों के लिए 50 से अधिक मिट्टी के बर्तन रखवाए हैं। सुबह और शाम यहां जानवरों और पक्षियों का सेवा करने खुद आती हैं। सुबह के समय डॉग्स को दूध, रोटी और ब्रेड खिलाती हैं। पक्षियों को दाना डालती हैं और मिट्टी के बर्तनों में पानी डालती हैं। शाम को यही काम दोहराती हैं। रोजाना 15 लीटर दूध, 2 किलो अनाज और पानी जानवरों और पक्षियों को पिलाती हैं। इस काम में कमलेश का परिवार भी हाथ बंटाता है।
कमलेश बताती हैं कि जैसे ही किसी बेजुबान जानवर की पीड़ा को लोग देखते हैं, तुरंत खबर करते हैं। इसके बाद तुरंत पशु की सेवा के लिए पहुंच जाती हैं। मरहम पट्टी से जब जानवरों की पीड़ा दूर नहीं होती तो वह ऐसे जानवरों को अस्पताल तक पहुंचाती हैं। जिन पक्षियों का इलाज घर पर करती हैं, सही होने के बाद उन्हें दोबारा पार्कों में ले जाकर छोड़ देती हैं।
गिलहरी की मौत के बाद बाहर जाना छोड़ा
कमलेश बताती हैं कि करीब 6 साल पहले पार्क से घायल गिलहरी को घर लेकर आई थीं। मरहम पट्टी के बाद परिवार के अन्य सदस्यों को इसकी जिम्मेदारी देकर शिमला चली गईं। इस दौरान पता चला कि कपड़े में दम घुटने से गिलहरी की मौत हो गई। इसके बाद से ही कमलेश ने बाहर जाना छोड़ दिया, जब तक कोई घायल बेजुबान ठीक नहीं हो जाता, वह उसे अकेला नहीं छोड़ती हैं। इस वक्त उनके पास एक पक्षी और तीन डॉग्स हैं। इनमें से एक डॉग देख नहीं सकता है।
उम्र 57 साल, शरीर स्लिप डिस्क के दर्द से परेशान लेकिन बेजुबानों के लिए यह कमलेश का प्यार ही है जो पिछले 17 सालों से लगातार उनकी सेवा में लगी हैं। कमलेश चौधरी अब तक दो हजार से ज्यादा पशु-पक्षियों का इलाज करा चुकी हैं। यही नहीं, वह रोजाना इन्हें खाने से लेकर दवाइयां तक अपने हाथों से खिलाती हैं। इनके जुनून और जज्बे को हर कोई सलाम करता है।
बचपन से पशु और पक्षियों को पालने का शौक रखने वाली कमलेश चौधरी (57) अपने परिवार के साथ मॉडल टाऊन स्थित गुजरावालां टाउन-2 में रहती हैं। पति ऋषिपाल चौधरी दिल्ली जलबोर्ड के डायरेक्टर पद से रिटायर्ड हैं। परिवार में बेटा वरुण, बेटी पूजा के अलावा बहू शामभवी हैं। कमलेश बताती हैं कि बेटा, बेटी और बहू तीनों डॉक्टर हैं। घर में भगवान का दिया सबकुछ है। बचपन से पशु और पक्षियों का शौक कब जुनून में बदल गया पता ही नहीं चला। कमलेश ने इसकी शुरुआत साल 2001 से पहाड़गंज स्थित आरामबाग से की थी। यहां 14 साल सेवा करने के बाद सिविल लाइन स्थित कैंप में रहने चली गईं। अब दो सालों से मॉडल टाउन इलाके में पशु-पक्षियों की सेवा में जुटी हैं।
कमलेश कहती हैं कि इन 17 सालों में बेजुबानों की सेवा कर उनकी भाषा समझ चुकी हैं। उनके दुख दर्द को समझती हैं। यही कारण है कि कमलेश मॉडल टाउन इलाके में जहां भी जाती हैं, जानवर कमलेश की आहट से पास आ जाते हैं। मॉडल टाउन इलाके में कमलेश ने 6 जगहों पर पशु और पक्षियों के लिए 50 से अधिक मिट्टी के बर्तन रखवाए हैं। सुबह और शाम यहां जानवरों और पक्षियों का सेवा करने खुद आती हैं। सुबह के समय डॉग्स को दूध, रोटी और ब्रेड खिलाती हैं। पक्षियों को दाना डालती हैं और मिट्टी के बर्तनों में पानी डालती हैं। शाम को यही काम दोहराती हैं। रोजाना 15 लीटर दूध, 2 किलो अनाज और पानी जानवरों और पक्षियों को पिलाती हैं। इस काम में कमलेश का परिवार भी हाथ बंटाता है।
कमलेश बताती हैं कि जैसे ही किसी बेजुबान जानवर की पीड़ा को लोग देखते हैं, तुरंत खबर करते हैं। इसके बाद तुरंत पशु की सेवा के लिए पहुंच जाती हैं। मरहम पट्टी से जब जानवरों की पीड़ा दूर नहीं होती तो वह ऐसे जानवरों को अस्पताल तक पहुंचाती हैं। जिन पक्षियों का इलाज घर पर करती हैं, सही होने के बाद उन्हें दोबारा पार्कों में ले जाकर छोड़ देती हैं।
गिलहरी की मौत के बाद बाहर जाना छोड़ा
कमलेश बताती हैं कि करीब 6 साल पहले पार्क से घायल गिलहरी को घर लेकर आई थीं। मरहम पट्टी के बाद परिवार के अन्य सदस्यों को इसकी जिम्मेदारी देकर शिमला चली गईं। इस दौरान पता चला कि कपड़े में दम घुटने से गिलहरी की मौत हो गई। इसके बाद से ही कमलेश ने बाहर जाना छोड़ दिया, जब तक कोई घायल बेजुबान ठीक नहीं हो जाता, वह उसे अकेला नहीं छोड़ती हैं। इस वक्त उनके पास एक पक्षी और तीन डॉग्स हैं। इनमें से एक डॉग देख नहीं सकता है।
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