रिची वर्मा, नई दिल्ली
सैकड़ों बरसों ने इसने भूकंप, तूफान और अन्य कई मुसीबतों का सामना किया। इतना ही नहीं दुश्मन सेनाओं के सामने भी यह डटकर खड़ा रहा। लेकिन दिल्ली का यह कुतुब मीनार को पंछियों के शौच से खतरा है।
भारतीय पुरातत्व विभाग ने 50 साल में पहली बार चार बालकनी के टूटे हुए दरवाजों और खिड़कियों को जालियों और लोहे की ग्रिल से बदला है। इस प्रॉजेक्ट में कुल 8 लाख रुपये खर्च हुए हैं।
समय के साथ दरवाजों और खिड़कियों में दरारें आ गई थीं। इससे पंछियों ने मीनार के अंदर घर बना लिए थे। शुरुआत में पंछियों और चमगादड़ों को छोटी सी समस्या समझा गया। लेकिन जल्द ही यह समस्या काफी बड़ी हो गई। एएसआई (दिल्ली सर्किल) के सूपरिटेंडेंट आर्किओलॉजिस्ट एनके पाठक ने कहा, 'शौच से न सिर्फ मीनार अंदर से संक्रमण और बदबू फैल रही थी बल्कि इससे कीमती पत्थर को भी नुकसान हो रहा था।'
उन्होंने कहा कि सावधानी से माप लेने के बाद नए फ्रेम लगाए गए। उन्होंने कहा, 'यह काम करीब तीन महीने से चल रहा है। नए फ्रेम कुतुब कॉम्प्लेक्स में ही बनाए गए हैं।'
इतिहासकारों का कहना है कि मीनार के हर ओर दरवाजा है, लेकिन असली दरवाजे कैसे थे इसकी जानकारी नहीं है। लेकिन ये दरवाजे सुविधानुसार खोले या बंद किए जा सकते हैं। मीनार के अंदर हवा और रोशनी बनाए रखने के लिए कई छोटी-बड़ी खिड़कियां हैं। 1950 के दशक में एएसआई ने नए दरवाजे लगाए थे, जिनकी मियाद पूरी हो चुकी है। अब जो दरवाजे लगाए गए हैं वे फिक्स्ड हैं और ज्यादातर समय वे बंद ही रहेंगे।
पंछियों के शौच से इस ऐतिहासिक इमारत के लिए खतरा है चूंकि इसमें एसिड होता है। जानकारों का कहना है, 'इससे ऐतिहासिक धरोहर की इमारतों को काफी नुकसान पहुंचता है। इससे इमारत में दरारें आती हैं और साथ ही उनके रूप के लिए भी यह अच्छा नहीं है।'
सैकड़ों बरसों ने इसने भूकंप, तूफान और अन्य कई मुसीबतों का सामना किया। इतना ही नहीं दुश्मन सेनाओं के सामने भी यह डटकर खड़ा रहा। लेकिन दिल्ली का यह कुतुब मीनार को पंछियों के शौच से खतरा है।
भारतीय पुरातत्व विभाग ने 50 साल में पहली बार चार बालकनी के टूटे हुए दरवाजों और खिड़कियों को जालियों और लोहे की ग्रिल से बदला है। इस प्रॉजेक्ट में कुल 8 लाख रुपये खर्च हुए हैं।
समय के साथ दरवाजों और खिड़कियों में दरारें आ गई थीं। इससे पंछियों ने मीनार के अंदर घर बना लिए थे। शुरुआत में पंछियों और चमगादड़ों को छोटी सी समस्या समझा गया। लेकिन जल्द ही यह समस्या काफी बड़ी हो गई। एएसआई (दिल्ली सर्किल) के सूपरिटेंडेंट आर्किओलॉजिस्ट एनके पाठक ने कहा, 'शौच से न सिर्फ मीनार अंदर से संक्रमण और बदबू फैल रही थी बल्कि इससे कीमती पत्थर को भी नुकसान हो रहा था।'
उन्होंने कहा कि सावधानी से माप लेने के बाद नए फ्रेम लगाए गए। उन्होंने कहा, 'यह काम करीब तीन महीने से चल रहा है। नए फ्रेम कुतुब कॉम्प्लेक्स में ही बनाए गए हैं।'
इतिहासकारों का कहना है कि मीनार के हर ओर दरवाजा है, लेकिन असली दरवाजे कैसे थे इसकी जानकारी नहीं है। लेकिन ये दरवाजे सुविधानुसार खोले या बंद किए जा सकते हैं। मीनार के अंदर हवा और रोशनी बनाए रखने के लिए कई छोटी-बड़ी खिड़कियां हैं। 1950 के दशक में एएसआई ने नए दरवाजे लगाए थे, जिनकी मियाद पूरी हो चुकी है। अब जो दरवाजे लगाए गए हैं वे फिक्स्ड हैं और ज्यादातर समय वे बंद ही रहेंगे।
पंछियों के शौच से इस ऐतिहासिक इमारत के लिए खतरा है चूंकि इसमें एसिड होता है। जानकारों का कहना है, 'इससे ऐतिहासिक धरोहर की इमारतों को काफी नुकसान पहुंचता है। इससे इमारत में दरारें आती हैं और साथ ही उनके रूप के लिए भी यह अच्छा नहीं है।'
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