नई दिल्ली
दिल्ली विश्वविद्यालय के लक्ष्मीबाई कॉलेज में 'फ्री पीरियड' का मतलब कुछ अलग है। अभिनेता अक्षय कुमार जब फिल्म के माध्यम से पीरियड्स की चर्चा लिविंग रूम में लेकर आए, उससे पहले इस कॉलेज की लड़कियों ने सस्ते पैड उपलब्ध कराने और महिलाओं को जागरूक करने की मुहिम शुरू की थी।
'पैडमैन' की कहानी से 3 साल पहले ही कॉलेज की लड़कियों ने आपस में और जो लोग खरीदने में सक्षम नहीं हैं उन्हें सस्ते सैनिटरी पैड्स बांटने का बीड़ा उठाया था। यह मुहिम तीन शिक्षिकाओं ने मिलकर शुरू की थी। इनके नाम राजश्री रॉय, अमृता शिल्पी और गोबिना है।
इन शिक्षिकाओं ने 10 स्टूडेंट्स के साथ मिलकर यूनिवर्सिटीी इनोवेशन फंड की मदद से सस्ते सैनिटरी पैड्स बनाने शुरू किए। 2016 में 'रेड डॉट कैंपेन' नाम से इस मुहिम की शुरुआत हुई। इसके तहत झुग्गी बस्तियों में महिलाओं को पीरियड्स को लेकर जागरूक किया जाता था और बेहतर स्वास्थ्य के लिए जरूरी जानकारी दी जाती थी।
लक्ष्मीबाई कॉलेज की प्रिंसिपल प्रत्युषा वात्सल्य ने कहा, 'जब स्टूडेंट्स ने मुझसे दोबारा प्रॉजेक्ट शुरू करने की इच्छा जाहिर की तो मैंने उन्हें गरीबों के बीच जाकर काम करने की सलाह दी। स्टूडेंट्स न केवल महिलाओं को सैनिटरी पैड्स उपलब्ध करवाती हैं बल्कि उन्हें ट्रेनिंग भी देती हैं।'
श्रुति यादव ने बताया, 'जब मैं फर्स्ट इयर में थी तो स्कूलों में सर्वे किया। इसमें पता चला कि 90 फीसदी महिलाएं पीरियड्स हाइजीन का ध्यान नहीं रख पाती हैं। फिर हमने पोस्टर्स, नुक्कड़ नाटक, किस्सागोई के माध्यम से जागरूकता फैलाने का काम शुरू किया।' स्टूडेंट्स ने महीने में 100 पैड्स बनाने का काम शुरू किया था जो अब बढ़कर 500 तक पहुंच गया है।
स्पृहा रॉय का कहना है कि पैड्स बनाने का काम बहुत आसान है। 'जब हमरा कोई फ्री पीरियड होता है तो पैड रूम में चले जाते हैं। हमने 10 वॉलंटियर्स के साथ काम शुरू किया था जिसमें अब 50 लोग सहयोग कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि 2 रुपये के हिसाब से इन पैड्स को बेचा जाए ताकि इस काम में कॉलेज की मदद न लेनी पड़े।' प्रिंसिपल कॉलेज में नैपकिन्स की वेंडिंग मशीन लगवाना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि कॉलेज में पैड्स बनाने और उनको जलाने की भी सुविधा मौजूद है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के लक्ष्मीबाई कॉलेज में 'फ्री पीरियड' का मतलब कुछ अलग है। अभिनेता अक्षय कुमार जब फिल्म के माध्यम से पीरियड्स की चर्चा लिविंग रूम में लेकर आए, उससे पहले इस कॉलेज की लड़कियों ने सस्ते पैड उपलब्ध कराने और महिलाओं को जागरूक करने की मुहिम शुरू की थी।
'पैडमैन' की कहानी से 3 साल पहले ही कॉलेज की लड़कियों ने आपस में और जो लोग खरीदने में सक्षम नहीं हैं उन्हें सस्ते सैनिटरी पैड्स बांटने का बीड़ा उठाया था। यह मुहिम तीन शिक्षिकाओं ने मिलकर शुरू की थी। इनके नाम राजश्री रॉय, अमृता शिल्पी और गोबिना है।
इन शिक्षिकाओं ने 10 स्टूडेंट्स के साथ मिलकर यूनिवर्सिटीी इनोवेशन फंड की मदद से सस्ते सैनिटरी पैड्स बनाने शुरू किए। 2016 में 'रेड डॉट कैंपेन' नाम से इस मुहिम की शुरुआत हुई। इसके तहत झुग्गी बस्तियों में महिलाओं को पीरियड्स को लेकर जागरूक किया जाता था और बेहतर स्वास्थ्य के लिए जरूरी जानकारी दी जाती थी।
लक्ष्मीबाई कॉलेज की प्रिंसिपल प्रत्युषा वात्सल्य ने कहा, 'जब स्टूडेंट्स ने मुझसे दोबारा प्रॉजेक्ट शुरू करने की इच्छा जाहिर की तो मैंने उन्हें गरीबों के बीच जाकर काम करने की सलाह दी। स्टूडेंट्स न केवल महिलाओं को सैनिटरी पैड्स उपलब्ध करवाती हैं बल्कि उन्हें ट्रेनिंग भी देती हैं।'
श्रुति यादव ने बताया, 'जब मैं फर्स्ट इयर में थी तो स्कूलों में सर्वे किया। इसमें पता चला कि 90 फीसदी महिलाएं पीरियड्स हाइजीन का ध्यान नहीं रख पाती हैं। फिर हमने पोस्टर्स, नुक्कड़ नाटक, किस्सागोई के माध्यम से जागरूकता फैलाने का काम शुरू किया।' स्टूडेंट्स ने महीने में 100 पैड्स बनाने का काम शुरू किया था जो अब बढ़कर 500 तक पहुंच गया है।
स्पृहा रॉय का कहना है कि पैड्स बनाने का काम बहुत आसान है। 'जब हमरा कोई फ्री पीरियड होता है तो पैड रूम में चले जाते हैं। हमने 10 वॉलंटियर्स के साथ काम शुरू किया था जिसमें अब 50 लोग सहयोग कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि 2 रुपये के हिसाब से इन पैड्स को बेचा जाए ताकि इस काम में कॉलेज की मदद न लेनी पड़े।' प्रिंसिपल कॉलेज में नैपकिन्स की वेंडिंग मशीन लगवाना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि कॉलेज में पैड्स बनाने और उनको जलाने की भी सुविधा मौजूद है।
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