Friday, September 29, 2017

मेट्रो के पैसेंजरों के लिए तैयार नहीं डीटीसी!

नई दिल्ली
अगर 10 अक्टूबर से दिल्ली मेट्रो के किराये में फिर से बढ़ोतरी हो जाती है तो इस बात की पूरी-पूरी संभावना है कि छोटी दूरी का सफर करने वाले काफी यात्री मेट्रो से बसों की ओर शिफ्ट होंगे। मेट्रो में छोटी दूरी के किराये में भी काफी बढ़ोतरी होने जा रही है। लेकिन सवाल यह है कि क्या डीटीसी इसके लिए तैयार है? आंकड़ों के हिसाब से देखें तो अभी दिल्ली में बसों की काफी कमी है।

दिल्ली में 11 हजार से ज्यादा बसों की जरूरत है लेकिन डीटीसी व क्लस्टर स्कीम की बसों को मिलाकर अभी 5500 बसें हैं और इनमें से भी काफी बसें रोजाना खराब भी होती हैं। पुरानी स्टैंडर्ड फ्लोर की अभी 163 बसें हैं, जो अगले कुछ महीनों में सड़कों से बाहर हो जाएंगी। दिल्ली सरकार ने दो हजार नॉन एसी स्टैंडर्ड फ्लोर बसों की खरीद को तो मंजूरी दे दी है लेकिन जब तक नई बसें नहीं आतीं, तब तक मेट्रो से शिफ्ट होने वाले यात्रियों का मैनेज करना डीटीसी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा।

ट्रांसपोर्ट व ट्रैफिक सेक्टर में रिसर्च करने वाले एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर मेट्रो का किराया बढ़ता है तो इससे सड़कों पर वाहनों का दबाव भी बढ़ेगा। अगर बसों की कमी दूर नहीं हुई तो फिर दुपहिया वाहनों की संख्या में बहुत इजाफा हो जाएगा। कारों की संख्या भी बढ़ेगी और इससे दिल्ली में ट्रैफिक जाम व प्रदूषण की गंभीर समस्या होगी। एक्सपर्ट अनिल छिकारा का कहना है कि दुनिया भर में देखें तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट को लेकर एक फॉर्म्युला यह है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट से सफर करने वालों का खर्चा दुपहिया वाहन से कम होना चाहिए।

उस स्थिति में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की ओर लोगों का रुझान बढ़ता है और सड़कों पर भीड़ भी कम होती है। दिल्ली में पहले ही सड़कों की हालत यह है कि यहां पर अब और ट्रैफिक का बोझ नहीं डाला जा सकता। लोग मेट्रो का यूज कर रहे हैं और किराये में बढ़ोतरी से सड़कों पर वाहनों की संख्या बढ़ जाएगी। उनका कहना है कि रिसर्च में सामने आया है कि 1-7 किमी की दूरी का सफर करने वालों की संख्या 50 पर्सेंट से ज्यादा होती है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट का किराया ऑपरेशनल चार्जेज के लिए होता है न कि लोन चुकाने के लिए। ऐसे में अगर मेट्रो का किराया बढ़ता है तो कम दूरी का सफर करने वाले बसों, वैन व ट्रांसपोर्ट के दूसरे सिस्टम की तरफ शिफ्ट होंगे। मौजूदा समय में बसों की कमी है। आखिरी बार 2013 में बसों को खरीदा गया था।

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