नई दिल्ली
इस समय स्वच्छता अभियान पर जोर है। दिल्ली में कई जगह नए टॉयलेट बनाए जा रहे हैं, लेकिन डीडीए के पार्कों में लगाए गए बायो टॉयलेट अब बेकार हो चुके हैं। इन टॉयलेट पर डीडीए ने लाखों का बजट खर्च किया, लेकिन मेंटिनेंस की कमी से यह अब सिर्फ पैसों की बर्बादी बनकर रह चुके हैं।
डीडीए ने अपने सभी 5 एकड़ से बड़े पार्क में यह बायो टॉयलेट लगाए थे। जानकारी के अनुसार ऐसे करीब 300 टॉयलेट दिल्ली के विभिन्न पार्को में लगाए गए थे। स्मार्ट सब सिटी द्वारका के पार्कों में ही इस तरह के 70 टॉयलेट लगे थे। एक सिंगल सीटर टॉयलेट की कीमत करीब एक लाख रुपये थी। लेकिन अब यह पार्कों में टूटे पड़े हैं, जबकि कुछ पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं। इन टॉयलेट को हटाने के लिए अब रेजिडेंट्स मांग कर रहे हैं।
द्वारका के रेजिडेंट एम. वार्ष्णेय ने बताया कि इस फंड का इस्तेमाल ठीक तरह से नहीं किया गया। डीडीए ने यह बायो टॉयलेट लगाने के बाद इनकी देखभाल नहीं की। यह एक काफी अच्छा प्रॉजेक्ट था, जो डीडीए की लापरवाही की वजह से फेल हुआ। वहीं एक अपार्टमेंट के इन्वाइरनमेंट एक्सपर्ट प्रखर गांधी ने बताया कि यह टॉयलेट अच्छी पहल थी लेकिन इन्हें टेक्निकल सुपरविजन की जरूरत थी।
गांधी ने बताया कि इस टॉयलेट की खास बात यह थी कि इनमें पानी की काफी कम जरूरत होती है। इसमें वेस्ट इको फ्रेंडली तरीके से डिस्पोज होता था। इसमें एक खास लिक्विड का इस्तेमाल होता था जो बैक्टिरिया की मदद से वेस्ट को डिस्पोज करता था। लेकिन यह लिक्विड ही डीडीए की मुसीबत बना और इसकी व्यवस्था नहीं हो पाई। वहीं ज्यादा पानी होने की वजह से भी बैक्टिरिया खत्म होते गए। इनके लिए डीडीए को अपने कर्मियों को टेक्निकल ट्रेनिंग देने की जरूरत थी।
डीडीए द्वारका जोन के चीफ इंजीनियर एस.एन. सिंह ने बताया कि यह प्रॉजेक्ट डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च ऐंड डिवेलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन) ने तैयार किया था। इसे डीडीए ने अपनाया। इसके लिक्विड के लिए डीआरडीओ से बात भी की गई। लेकिन वह उपलब्ध नहीं हो सका। अब इन बायो टॉयलेट के रिवाइवल की कोशिश की जा रही है।
इस समय स्वच्छता अभियान पर जोर है। दिल्ली में कई जगह नए टॉयलेट बनाए जा रहे हैं, लेकिन डीडीए के पार्कों में लगाए गए बायो टॉयलेट अब बेकार हो चुके हैं। इन टॉयलेट पर डीडीए ने लाखों का बजट खर्च किया, लेकिन मेंटिनेंस की कमी से यह अब सिर्फ पैसों की बर्बादी बनकर रह चुके हैं।
डीडीए ने अपने सभी 5 एकड़ से बड़े पार्क में यह बायो टॉयलेट लगाए थे। जानकारी के अनुसार ऐसे करीब 300 टॉयलेट दिल्ली के विभिन्न पार्को में लगाए गए थे। स्मार्ट सब सिटी द्वारका के पार्कों में ही इस तरह के 70 टॉयलेट लगे थे। एक सिंगल सीटर टॉयलेट की कीमत करीब एक लाख रुपये थी। लेकिन अब यह पार्कों में टूटे पड़े हैं, जबकि कुछ पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं। इन टॉयलेट को हटाने के लिए अब रेजिडेंट्स मांग कर रहे हैं।
द्वारका के रेजिडेंट एम. वार्ष्णेय ने बताया कि इस फंड का इस्तेमाल ठीक तरह से नहीं किया गया। डीडीए ने यह बायो टॉयलेट लगाने के बाद इनकी देखभाल नहीं की। यह एक काफी अच्छा प्रॉजेक्ट था, जो डीडीए की लापरवाही की वजह से फेल हुआ। वहीं एक अपार्टमेंट के इन्वाइरनमेंट एक्सपर्ट प्रखर गांधी ने बताया कि यह टॉयलेट अच्छी पहल थी लेकिन इन्हें टेक्निकल सुपरविजन की जरूरत थी।
गांधी ने बताया कि इस टॉयलेट की खास बात यह थी कि इनमें पानी की काफी कम जरूरत होती है। इसमें वेस्ट इको फ्रेंडली तरीके से डिस्पोज होता था। इसमें एक खास लिक्विड का इस्तेमाल होता था जो बैक्टिरिया की मदद से वेस्ट को डिस्पोज करता था। लेकिन यह लिक्विड ही डीडीए की मुसीबत बना और इसकी व्यवस्था नहीं हो पाई। वहीं ज्यादा पानी होने की वजह से भी बैक्टिरिया खत्म होते गए। इनके लिए डीडीए को अपने कर्मियों को टेक्निकल ट्रेनिंग देने की जरूरत थी।
डीडीए द्वारका जोन के चीफ इंजीनियर एस.एन. सिंह ने बताया कि यह प्रॉजेक्ट डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च ऐंड डिवेलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन) ने तैयार किया था। इसे डीडीए ने अपनाया। इसके लिक्विड के लिए डीआरडीओ से बात भी की गई। लेकिन वह उपलब्ध नहीं हो सका। अब इन बायो टॉयलेट के रिवाइवल की कोशिश की जा रही है।
मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।
Read more: डीडीए के बायो टॉयलेट हो गए फ्लॉप