नई दिल्ली
राष्ट्रीय राजधानी को हिला कर रखे देने वाली दिसंबर 2012 की गैंगरेप की घटना के आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट से भी मौत की सजा सुनाई जा चुकी है। साढ़े चार साल बाद पीड़िता को न्याय मिला और उन्हें न्याय दिलाने उनके परिवार की अहम भूमिका रही है। निर्भया की मां आशा देवी कहती हैं कि उनके परिवार ने एक जंग जीत ली है, लेकिन अभी उन्हें ऐसी कई और जंग जीतनी है।
आशा कहती हैं कि वह 'निर्भया ज्योति ट्रस्ट' के जरिए हजारों पीड़ित बेटियों को न्याय दिलाने के लिए अपनी जंग जारी रखेंगी। सुप्रीम कोर्ट ने जब ऐतिहासिक फैसला सुनाया, तब आशा देवी कोर्ट रूम में मौजूद थीं। उन्होंने कहा, 'यह साढ़े चार वर्षों का सफर कैसा रहा, मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती। इस दौरान कई उतार-चढ़ाव आए। हमने बहुत कुछ झेला और आखिर में हमारा संघर्ष रंग लाया। संघर्ष यहीं खत्म नहीं हुआ है। अभी सिर्फ एक जंग जीती है, ऐसी कई लड़ाइयां लड़नी बाकी हैं।'
निर्भया के माता-पिता ने साल 2013 में एक ट्रस्ट शुरू किया था, जिसका काम उन पीड़िताओं को इंसाफ दिलाने में मदद करना है जो इस तरह की दरिंदगी का शिकार हुई हैं। आशा देवी कहती हैं, 'हमने 2013 में निर्भया ज्योति ट्रस्ट की शुरुआत की थी। यह ट्रस्ट उन तमाम पीड़िताओं की मदद करने के लिए बनाया गया है, जो इस तरह की दरिंदगी का शिकार हुई हैं। हालांकि, हम अभी इन पीड़ितों की किसी तरह की आर्थिक मदद नहीं कर रहे, क्योंकि हमारे पास फंड की कमी है। हम पैसे जुटाने में लगे हैं, ताकि पीड़िताओं की आर्थिक रूप से भी मदद कर सकें।'
यह ट्रस्ट किस तरह से काम कर रहा है? इसके जवाब में वह कहती हैं, 'हम स्कूलों और कॉलेजों में जाकर इस तरह के अपराधों के बारे में जागरूकता फैला रहे हैं। हर साल 16 दिसंबर को निर्भया की याद में कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। हमारा जोर स्त्री सशक्तीकरण पर है। हम अन्य संस्थाओं को भी इस पहल से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।'
आशा देवी और उनके पति बद्रीनाथ द्वारका स्थित अपने घर से ही इस ट्रस्ट का संचालन कर रहे हैं। आर्थिक मदद मिलने के बारे में पूछने पर वह बताती हैं, 'फिलहाल, हमें किसी एनजीओ, कंपनी या सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली है। हां, कुछ लोग स्वेच्छा से रकम देकर हमारी मदद को सामने आए हैं।'
निर्भया के परिजन उस 5वें दोषी को भी फांसी के फंदे पर झूलते देखना चाहते हैं, जो नाबालिग होने का सबूत देकर उम्र की आड़ में सजा पाने से बच निकला। उसके बारे में आशा देवी कहती हैं, 'इस पूरे प्रकरण में वह नाबालिग सबसे बड़ा गुनहगार था,लेकिन कानून ने उसे बचा लिया। वह आज एक नई पहचान के साथ जी रहा है, मगर इसकी क्या गारंटी है कि वह दोबारा इस तरह का अपराध नहीं करेगा? अपराध देखकर सजा मिलनी चाहिए, न कि उम्र देखकर।'
वह आगे कहती हैं, ‘‘हालांकि, इस मामले में एक बात अच्छी यह हुई है कि कानून में बदलाव लाकर इस तरह के मामलों में नाबालिग माने जाने की उम्र घटाकर 18 से 16 कर दी गई है और उन पर बालिगों की तरह मुकदमा चलाना तय किया गया है। इस पूरे मामले में मीडिया की भूमिका अहम रही है।'
राष्ट्रीय राजधानी को हिला कर रखे देने वाली दिसंबर 2012 की गैंगरेप की घटना के आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट से भी मौत की सजा सुनाई जा चुकी है। साढ़े चार साल बाद पीड़िता को न्याय मिला और उन्हें न्याय दिलाने उनके परिवार की अहम भूमिका रही है। निर्भया की मां आशा देवी कहती हैं कि उनके परिवार ने एक जंग जीत ली है, लेकिन अभी उन्हें ऐसी कई और जंग जीतनी है।
आशा कहती हैं कि वह 'निर्भया ज्योति ट्रस्ट' के जरिए हजारों पीड़ित बेटियों को न्याय दिलाने के लिए अपनी जंग जारी रखेंगी। सुप्रीम कोर्ट ने जब ऐतिहासिक फैसला सुनाया, तब आशा देवी कोर्ट रूम में मौजूद थीं। उन्होंने कहा, 'यह साढ़े चार वर्षों का सफर कैसा रहा, मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती। इस दौरान कई उतार-चढ़ाव आए। हमने बहुत कुछ झेला और आखिर में हमारा संघर्ष रंग लाया। संघर्ष यहीं खत्म नहीं हुआ है। अभी सिर्फ एक जंग जीती है, ऐसी कई लड़ाइयां लड़नी बाकी हैं।'
निर्भया के माता-पिता ने साल 2013 में एक ट्रस्ट शुरू किया था, जिसका काम उन पीड़िताओं को इंसाफ दिलाने में मदद करना है जो इस तरह की दरिंदगी का शिकार हुई हैं। आशा देवी कहती हैं, 'हमने 2013 में निर्भया ज्योति ट्रस्ट की शुरुआत की थी। यह ट्रस्ट उन तमाम पीड़िताओं की मदद करने के लिए बनाया गया है, जो इस तरह की दरिंदगी का शिकार हुई हैं। हालांकि, हम अभी इन पीड़ितों की किसी तरह की आर्थिक मदद नहीं कर रहे, क्योंकि हमारे पास फंड की कमी है। हम पैसे जुटाने में लगे हैं, ताकि पीड़िताओं की आर्थिक रूप से भी मदद कर सकें।'
यह ट्रस्ट किस तरह से काम कर रहा है? इसके जवाब में वह कहती हैं, 'हम स्कूलों और कॉलेजों में जाकर इस तरह के अपराधों के बारे में जागरूकता फैला रहे हैं। हर साल 16 दिसंबर को निर्भया की याद में कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। हमारा जोर स्त्री सशक्तीकरण पर है। हम अन्य संस्थाओं को भी इस पहल से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।'
आशा देवी और उनके पति बद्रीनाथ द्वारका स्थित अपने घर से ही इस ट्रस्ट का संचालन कर रहे हैं। आर्थिक मदद मिलने के बारे में पूछने पर वह बताती हैं, 'फिलहाल, हमें किसी एनजीओ, कंपनी या सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली है। हां, कुछ लोग स्वेच्छा से रकम देकर हमारी मदद को सामने आए हैं।'
निर्भया के परिजन उस 5वें दोषी को भी फांसी के फंदे पर झूलते देखना चाहते हैं, जो नाबालिग होने का सबूत देकर उम्र की आड़ में सजा पाने से बच निकला। उसके बारे में आशा देवी कहती हैं, 'इस पूरे प्रकरण में वह नाबालिग सबसे बड़ा गुनहगार था,लेकिन कानून ने उसे बचा लिया। वह आज एक नई पहचान के साथ जी रहा है, मगर इसकी क्या गारंटी है कि वह दोबारा इस तरह का अपराध नहीं करेगा? अपराध देखकर सजा मिलनी चाहिए, न कि उम्र देखकर।'
वह आगे कहती हैं, ‘‘हालांकि, इस मामले में एक बात अच्छी यह हुई है कि कानून में बदलाव लाकर इस तरह के मामलों में नाबालिग माने जाने की उम्र घटाकर 18 से 16 कर दी गई है और उन पर बालिगों की तरह मुकदमा चलाना तय किया गया है। इस पूरे मामले में मीडिया की भूमिका अहम रही है।'
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