नई दिल्ली
दिल्ली पुलिस में अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही मॉर्निंग डायरी की परंपरा खत्म करने पर विचार किया जा रहा है। इस परंपरा को निभाते जाने की वजह से कई पुलिस वाले सड़क हादसों में जान गवां चुके हैं।
पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक ने एनबीटी को बताया कि मॉर्निंग डायरी की परंपरा खत्म करने पर विचार किया जा रहा है। इस बारे में जल्द ही फैसला लिया जा सकता है। दरअसल मॉर्निंग डायरी की रवायत अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही है, जिसे आज के इंटरनेट युग में अप्रासंगिक माना जा रहा है।
उस जमाने में न तो मोबाइल फोन थे और ना ही ईमेल जाती थी। इसलिए सीनियर अफसरों को उनके इलाकों के थानों में 24 घंटे में हुई हर अहम घटना की जानकारी देने के लिए एफआईआर की कॉपी और दूसरे अहम कागजात हर सुबह उनके घरों में सूरज निकलने से पहले पहुंचाए जाते थे। इसके लिए हर थाने से एक पुलिस वाला घोड़े पर सवार होकर अफसरों के घरों तक जाता था। इसे मॉर्निंग डायरी कहा जाता था।
आजादी मिलने के बाद भी यह रवायत जारी रही, जो आज तक जारी है। दिल्ली पुलिस की हर सब-डिवीजन के हर थाने में 24 घंटों में हुई एफआईआर और दूसरी अहम घटनाओं के दस्तावेजों की फोटोस्टेट देर रात तक कराई जाती है। हर थाने से हर रात 22 से 24 कागज मॉर्निंग डायरी के लिए फोटोस्टेट कराए जाते हैं। थानों की जेरॉक्स मशीनें अकसर खराब रहती हैं। इसलिए पुलिस वाले आधी रात फोटोस्टेट की दुकानें खुलवाते हैं। इसमें न सिर्फ मैनपावर लगती है, बल्कि स्टेशनरी और वक्त भी जाया होता है। हर सब डिवीजन से एक पुलिस वाला यानी राइडर सरकारी मोटरसाइकल पर सवार होकर जिले के अडिशनल डीसीपी, डीसीपी और जॉइंट कमिश्नर के घर पर हर सुबह पौ फटने से पहले पहुंच जाता है। वह सब कागजात उनके घर डिलिवर करता है। यह सब काम रात 12 बजे से सुबह छह बजे तक चलता रहता है। सर्दियों में कई बार पुलिस वाले अलसुबह जाने की वजह से, कोहरे में और नींद में आंख लग जाने की वजह से रोड एक्सिडेंट में जान भी गवां चुके हैं।
खुद पुलिस अफसर बताते हैं कि इतनी मेहनत से घर तक लाए गए दस्तावेजों को पढ़ने की ना तो उन्हें जरूरत होती है और ना ही उनके पास इन्हें देखने के लिए वक्त होता है। दरअसल पुराने जमाने के विपरीत अब हर छोटी-बड़ी घटना की जानकारी अफसरों को तुरंत मोबाइल फोन पर मिल जाती है। वास्तव में कोई भी अहम केस जिले के डीसीपी की मौखिक मंजूरी के बगैर एसएचओ दर्ज ही नहीं कर सकते, इसलिए डीसीपी को हर थाने की अहम घटना की जानकारी पहले से ही होती है। जरूरी होने पर हर डॉक्यूमेंट ईमेल पर मंगाया जा सकता है, लेकिन मॉर्निंग डायरी को कुछ अफसर अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ कर भी देखते हैं।
मौजूदा पुलिस अफसर पूरी तरह से हाई-टेक हैं और इनमें से ज्यादातर ट्विटर पर एक्टिव हैं। इसलिए मॉर्निंग डायरी को वह खुद भी गैर-जरूरी मान रहे हैं, लेकिन कोई भी इस सिस्टम को खत्म करने का सुझाव खुद नहीं देना चाहता। सही मायनों में दिल्ली पुलिस में आधुनिकीकरण की शुरुआत के के पॉल के कार्यकाल से हुई थी, जब एफआईआर को हाथ से लिखने की परंपरा को खत्म कर उसे कम्यूटराइज्ड किया गया था। इसके बाद दिल्ली पुलिस मोबाइल ऐप तक पहुंच गई है, लेकिन अभी तक किसी कमिश्नर ने मैनपावर, पेट्रोल, स्टेशनरी और समय को जाया करने की वजह मानी जा रही गैर-जरूरी मॉर्निंग डायरी की परंपरा को खत्म करने की पहल नहीं की है। मौजूदा पुलिस कमिश्नर इस बारे में विचार कर रहे हैं।
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