नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए सोमवार को साफ किया है कि डीडीए की जमीन पर चल रहे प्राइवेट स्कूल, बिना सरकार की मंजूरी के फीस नहीं बढ़ा सकते। प्राइवेट स्कूलों ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला दिया।
इससे पहले स्कूलों ने HC के इस फैसले को गैरकानूनी बताते हुए कहा था कि दिल्ली स्कूल एजुकेशन ऐक्ट ऐंड रुल्स 1973 (डीएसईएआर) भी कहता है कि स्कूलों को अपनी फीस बढ़ाने का हक है। गौरतलब है कि राजधानी में 400 से अधिक स्कूल डीडीए की जमीन पर चल रहे हैं।
क्या थी स्कूलों की दलील
ऐक्शन कमिटी, अनऐडेड रिकॉग्नाइज्ड प्राइवेट स्कूल्स के प्रेजिडेंट एस. के. भट्टाचार्य का कहना था कि इस फैसले में बहुत कमियां हैं। डीएसईएआर 1973 के आर्टिकल 17 सी के मुताबिक, स्कूलों को अपनी फीस तय करने का अधिकार है। इसके लिए उसे शिक्षा निदेशालय से इजाजत लेने की जरूरत नहीं। यह एक पार्लियामेंट ऐक्ट है और इसमें बिना बदलाव किए यह ऑर्डर कैसे दिया जा सकता है।
भट्टाचार्य कहते हैं, इसके अलावा डीडीए लैंड पर चल रहे स्कूल पहले से ही 25% सीटें ईडब्ल्यूएस कैंडिडेट्स को फ्री में दे रहे हैं। दिल्ली स्टेट पब्लिक स्कूल मैनेजमेंट असोसिएशन के प्रेजिडेंट आर. सी. जैन कहते हैं, दिल्ली में चलने वाले सभी स्कूलों की मैनेजमेंट कमिटी होती है। इसमें दो सरकार के नॉमिनी होते हैं, जो शिक्षा निदेशालय की ओर से होते हैं।
इनके अलावा, दिल्ली स्कूल एडवाइजरी बोर्ड के दो मेंबर्स, पैरंट्स टीचर्स असोसिएशन का एक नॉमिनी और बाकी एजुकेशन कमिटी के मेंबर होते हैं। मैनेजमेंट कमिटी की मीटिंग में ही फीस स्ट्रक्चर और फीस बढ़ाए जाने पर फैसला लिया जाता है और इसे शिक्षा निदेशालय अप्रूवल देता है। फीस में बढ़ोतरी निदेशालय की इजाजत से ही होती है, ऐसे में इस फैसले में कोई नई बात नहीं है, क्योंकि डीडीए लैंड पर चल रहे स्कूल या जो खुद की जमीन पर चल रहे हैं, वे इस रूल को फॉलो कर रहे हैं। वहीं फीस को लेकर स्कूलों का कहना है कि इस सेशन के लिए उनका फीस स्ट्रक्चर तय ही नहीं हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए सोमवार को साफ किया है कि डीडीए की जमीन पर चल रहे प्राइवेट स्कूल, बिना सरकार की मंजूरी के फीस नहीं बढ़ा सकते। प्राइवेट स्कूलों ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला दिया।
इससे पहले स्कूलों ने HC के इस फैसले को गैरकानूनी बताते हुए कहा था कि दिल्ली स्कूल एजुकेशन ऐक्ट ऐंड रुल्स 1973 (डीएसईएआर) भी कहता है कि स्कूलों को अपनी फीस बढ़ाने का हक है। गौरतलब है कि राजधानी में 400 से अधिक स्कूल डीडीए की जमीन पर चल रहे हैं।
क्या थी स्कूलों की दलील
ऐक्शन कमिटी, अनऐडेड रिकॉग्नाइज्ड प्राइवेट स्कूल्स के प्रेजिडेंट एस. के. भट्टाचार्य का कहना था कि इस फैसले में बहुत कमियां हैं। डीएसईएआर 1973 के आर्टिकल 17 सी के मुताबिक, स्कूलों को अपनी फीस तय करने का अधिकार है। इसके लिए उसे शिक्षा निदेशालय से इजाजत लेने की जरूरत नहीं। यह एक पार्लियामेंट ऐक्ट है और इसमें बिना बदलाव किए यह ऑर्डर कैसे दिया जा सकता है।
भट्टाचार्य कहते हैं, इसके अलावा डीडीए लैंड पर चल रहे स्कूल पहले से ही 25% सीटें ईडब्ल्यूएस कैंडिडेट्स को फ्री में दे रहे हैं। दिल्ली स्टेट पब्लिक स्कूल मैनेजमेंट असोसिएशन के प्रेजिडेंट आर. सी. जैन कहते हैं, दिल्ली में चलने वाले सभी स्कूलों की मैनेजमेंट कमिटी होती है। इसमें दो सरकार के नॉमिनी होते हैं, जो शिक्षा निदेशालय की ओर से होते हैं।
इनके अलावा, दिल्ली स्कूल एडवाइजरी बोर्ड के दो मेंबर्स, पैरंट्स टीचर्स असोसिएशन का एक नॉमिनी और बाकी एजुकेशन कमिटी के मेंबर होते हैं। मैनेजमेंट कमिटी की मीटिंग में ही फीस स्ट्रक्चर और फीस बढ़ाए जाने पर फैसला लिया जाता है और इसे शिक्षा निदेशालय अप्रूवल देता है। फीस में बढ़ोतरी निदेशालय की इजाजत से ही होती है, ऐसे में इस फैसले में कोई नई बात नहीं है, क्योंकि डीडीए लैंड पर चल रहे स्कूल या जो खुद की जमीन पर चल रहे हैं, वे इस रूल को फॉलो कर रहे हैं। वहीं फीस को लेकर स्कूलों का कहना है कि इस सेशन के लिए उनका फीस स्ट्रक्चर तय ही नहीं हुआ है।
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