दुर्गेशनंदन झा, दिल्ली
बिहार के मुजफ्फरपुर में रहस्यमय तरीके से फैली मष्तिष्क संबंधी बीमारी का कारण अब पता लग गया है। इस बीमारी के कारण 2014 तक हर साल 100 लोग मौत के शिकार बनते थे। अमेरिका और भारत के कुछ वैज्ञानिकों ने एक शोध के बाद यह पता लगाया कि इस बीमारी का कारण लीची नाम का फल है। वैज्ञानिकों का कहना है कि खाली पेट लीची खाने से ये बीमारी हुई। बता दें कि मुजफ्फरपुर लीची की पैदावार के लिए प्रसिद्ध है।
इस बीमारी के मौसमी प्रकोप ने मुजफ्फरपुर को लगभग 2 दशकों तक परेशान किया। ठीक ऐसे ही कुछ मामले पश्चिम बंगाल के मालदा में देखने को मिले। रिसर्चर्स का कहना है कि शाम का खाना न खान से रात को हाइपोग्लाइसीमिया या लो-ब्लड शुगर की समस्या हो जाती है। खासकर कि उन बच्चों के साथ जिनके लिवर और मसल्स में ग्लाइकोजन-ग्लूकोज की स्टोरेज बहुत कम होती है। इससे फैटी ऐसिड्स जो शरीर में एनर्जी पैदा करते हैं और ग्लूकोज बनाते हैं, का ऑक्सीकरण हो जाता है। लीची में प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाले विषाक्त पदार्थ जिन्हें hypoglycin A और methylenecyclopropylglycine (MPCG) कहा जाता है , शरीर में फैटी ऐसिड मेटाबॉलिज़म बनने में रुकावट पैदा करते हैं। इसकी वजह से ही ब्लड- शुगर लो लेवल में चला जाता है और मस्तिष्क संबंधी दिक्कतें शुरू हो जाती हैं और दौरे पड़ने लगते हैं।
रिसर्चस की यह खोज 'द लैनसेट' नाम की मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुई है। 2013 में नैशनल सेंटर ऑफ डिज़ीज़ कंट्रोल (NCDC) और यूएस सेंटर ऑफ डिज़ीज़ कंट्रोल ने इस मामले में एक साझा शोध किया।
मुज्जफरफुर के श्री कृष्णा मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल और कृष्णादेवी देवीप्रसाद केजरीवाल मैटरनिटी हॉस्पिटल में 15 साल से कम के 350 बच्चे मस्तिष्क संबंधी बीमारियों की वजह से भर्ती कराए गए थे, जिनमें से 122 बच्चों की मौत हो गई।
इनमें से 204 बच्चों का ब्लड-ग्लूकोज लेवल कम था। इनमें से ज्यादातर बच्चों ने लीची खाई थी और उनके माता-पिता ने बताया था कि उन्होंने रात में खाना नहीं खाया था। जिन गांवों में यह बीमारी तेजी से असर दिखा रही थी वहां के लोगों ने बताया कि बच्चे मई और जून के महीनों में बगीचों में चले जाते हैं और सारा दिन लीची खाते हैं। वे शाम को घर लौटते हैं और खाना खाए बिना ही सो जाते हैं।
बिहार के मुजफ्फरपुर में रहस्यमय तरीके से फैली मष्तिष्क संबंधी बीमारी का कारण अब पता लग गया है। इस बीमारी के कारण 2014 तक हर साल 100 लोग मौत के शिकार बनते थे। अमेरिका और भारत के कुछ वैज्ञानिकों ने एक शोध के बाद यह पता लगाया कि इस बीमारी का कारण लीची नाम का फल है। वैज्ञानिकों का कहना है कि खाली पेट लीची खाने से ये बीमारी हुई। बता दें कि मुजफ्फरपुर लीची की पैदावार के लिए प्रसिद्ध है।
इस बीमारी के मौसमी प्रकोप ने मुजफ्फरपुर को लगभग 2 दशकों तक परेशान किया। ठीक ऐसे ही कुछ मामले पश्चिम बंगाल के मालदा में देखने को मिले। रिसर्चर्स का कहना है कि शाम का खाना न खान से रात को हाइपोग्लाइसीमिया या लो-ब्लड शुगर की समस्या हो जाती है। खासकर कि उन बच्चों के साथ जिनके लिवर और मसल्स में ग्लाइकोजन-ग्लूकोज की स्टोरेज बहुत कम होती है। इससे फैटी ऐसिड्स जो शरीर में एनर्जी पैदा करते हैं और ग्लूकोज बनाते हैं, का ऑक्सीकरण हो जाता है। लीची में प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाले विषाक्त पदार्थ जिन्हें hypoglycin A और methylenecyclopropylglycine (MPCG) कहा जाता है , शरीर में फैटी ऐसिड मेटाबॉलिज़म बनने में रुकावट पैदा करते हैं। इसकी वजह से ही ब्लड- शुगर लो लेवल में चला जाता है और मस्तिष्क संबंधी दिक्कतें शुरू हो जाती हैं और दौरे पड़ने लगते हैं।
रिसर्चस की यह खोज 'द लैनसेट' नाम की मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुई है। 2013 में नैशनल सेंटर ऑफ डिज़ीज़ कंट्रोल (NCDC) और यूएस सेंटर ऑफ डिज़ीज़ कंट्रोल ने इस मामले में एक साझा शोध किया।
मुज्जफरफुर के श्री कृष्णा मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल और कृष्णादेवी देवीप्रसाद केजरीवाल मैटरनिटी हॉस्पिटल में 15 साल से कम के 350 बच्चे मस्तिष्क संबंधी बीमारियों की वजह से भर्ती कराए गए थे, जिनमें से 122 बच्चों की मौत हो गई।
इनमें से 204 बच्चों का ब्लड-ग्लूकोज लेवल कम था। इनमें से ज्यादातर बच्चों ने लीची खाई थी और उनके माता-पिता ने बताया था कि उन्होंने रात में खाना नहीं खाया था। जिन गांवों में यह बीमारी तेजी से असर दिखा रही थी वहां के लोगों ने बताया कि बच्चे मई और जून के महीनों में बगीचों में चले जाते हैं और सारा दिन लीची खाते हैं। वे शाम को घर लौटते हैं और खाना खाए बिना ही सो जाते हैं।
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