नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार ने दलील दी है कि वह पूर्ण राज्य की मांग नहीं कर रहे हैं लेकिन लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को काम करने से नहीं रोका जा सकता। संविधान में संशोधन कर दिल्ली के लिए स्पेशल प्रावधान किया गया है लेकिन जो स्थिति है उसके तहत अगर दिल्ली सरकार और लेफ्टिनेट गर्वनर में किसी मुद्दे पर मतभेद है तो मामले को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है और राष्ट्रपति केंद्र सरकार के कैबिनेट की सलाह से काम करते हैं और इस तरह दिल्ली सरकार को केंद्र सरकार सुपरवाइज करता है और यह पूरी तरह से संवैधानिक अमेंडमेंट का मजाक है।
एलजी को वीटो पावर
दिल्ली सरकार ने कहा कि एलजी को राज्यपाल से कहीं ज्यादा पावर है। हाईकोर्ट द्वारा एलजी को एडमिनेस्ट्रेटिव हेड बताना सही नहीं है। हाई कोर्ट का कहना कि एलजी कैबिनेट की सलाह मानने को बाध्य नहीं है यह गलत है। दिल्ली में एक हिसाब से एलजी को वीटो पावर दे दिया गया है। अगर आखिरी फैसला एलजी ही लेंगे तो फिर विधानसभा का मतलब क्या रह जाएगा और कैबिनेट का औचित्य और मतलब क्या रह जाएगा।
हाई कोर्ट ने कहा था एलजी हैं एडमिनिस्ट्रेटर
दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दिल्ली सरकार ने छह अपील की हुई है दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले को दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है जिसमें दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली केंद्रीय शासित प्रदेश है और यहां एलजी एडमिनिस्ट्रेटर हैं। दिल्ली हाई कोर्ट ने 4 अगस्त को दिए फैसले में कहा था कि राजधानी दिल्ली अभी भी यूनियन टेरिटेरी है और संविधान के अनुच्छेद-239 एए के तहत स्पेशल प्रावधान किया गया है और इस तरह से राजधानी दिल्ली में एलजी एडमिनिस्ट्रेटर हैं।
विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार
दिल्ली सरकार की ओर से सीनियर ऐडवोकेट गोपाल सुब्रह्मयम ने दलील दी कि दिल्ली सरकार पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मांग रहा है लेकिन हाई कोर्ट का आदेश सही नहीं है जिसमें हाई कोर्ट ने कहा था कि एलजी दिल्ली के काउंसिल ऑफ मिनिस्टर की सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं है। 1992 में संविधान संशोधन किया गया था इसके तहत दिल्ली के लिए अनुच्छेद-239 एए के तहत स्पेशल प्रावधान किया गया था। इसके तहत दिल्ली स्टेट असेंबली को अधिकार दिया गया था कि वह कानून बना सकता है। वैसे यूनियन टेरिटेरी और यूनियन के लिए केंद्र को कानून बनाने का अधिकार है लेकिन दिल्ली के लिए असेंबली को अधिकार दिया गया है। लॉ ऐंड ऑर्डर, पुलिस और जमीनन केंद्र के पास है। गोपाल सुब्रह्मण्यम ने कहा कि वह राज्य की मांग नहीं कर रहे हैं लेकिन सेल्फ गवर्नमेंट की बात कर रहे है जो संविधान की गारंटी देता है। यहां कैबिनेट फॉर्म ऑफ गवर्नमेंट है और कानून बनाने का अधिकार है। संविधान ने स्पेशल स्टेटस दिया है ऐसे में पूर्ण राज्य की मांग नहीं है लेकिन संविधान सेल्फ गवर्नेंस की गारंटी देता है।
चुनी हुई सरकार पर केंद्र का नियंत्रण
मौजूदा जो स्थिति है उसके तहत जब भी दिल्ली सरकार और एलजी के बीच किसी मुद्दे को लेकर मतभेद हो तो मामले को राष्ट्रपति के पास एलजी भेजते हैं और राष्ट्रपति केंद्र सरकार की सलाह पर काम करते हैं। ऐसे में दिल्ली में चुनी हुई सरकार पर केंद्र का नियंत्रण है। अगर दिल्ली सरकार फैसला नहीं ले सकती तो फिर चुनी हुई सरकार बेमतलब हो जाएगी। जो स्थिति है उसके तहत अगर दिल्ली सरकार और एलजी में किसी मुद्दे पर मतभेद है तो मामले को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है और राष्ट्रपति केंद्र सरकार के कैबिनेट की सलाह से काम करते हैं और इस तरह दिल्ली सरकार को केंद्र सरकार सुपरवाइज करता है और ये पूरी तरह से संवैधानिक अमेंडमेंट का मजाक है। सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में देखना है कि जो संवैधानिक प्रावधान है उसका उद्देश्य क्या है। दिल्ली को स्पेशल दर्जा दिया गया है और यहां चुनी हुई सरकार है। सरकार को जनता की सेवा करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। मामले की सुनवाई जारी है और अगली सुनवाई 2 फरवरी की तारीख तय कर दी है।
सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार ने दलील दी है कि वह पूर्ण राज्य की मांग नहीं कर रहे हैं लेकिन लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को काम करने से नहीं रोका जा सकता। संविधान में संशोधन कर दिल्ली के लिए स्पेशल प्रावधान किया गया है लेकिन जो स्थिति है उसके तहत अगर दिल्ली सरकार और लेफ्टिनेट गर्वनर में किसी मुद्दे पर मतभेद है तो मामले को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है और राष्ट्रपति केंद्र सरकार के कैबिनेट की सलाह से काम करते हैं और इस तरह दिल्ली सरकार को केंद्र सरकार सुपरवाइज करता है और यह पूरी तरह से संवैधानिक अमेंडमेंट का मजाक है।
एलजी को वीटो पावर
दिल्ली सरकार ने कहा कि एलजी को राज्यपाल से कहीं ज्यादा पावर है। हाईकोर्ट द्वारा एलजी को एडमिनेस्ट्रेटिव हेड बताना सही नहीं है। हाई कोर्ट का कहना कि एलजी कैबिनेट की सलाह मानने को बाध्य नहीं है यह गलत है। दिल्ली में एक हिसाब से एलजी को वीटो पावर दे दिया गया है। अगर आखिरी फैसला एलजी ही लेंगे तो फिर विधानसभा का मतलब क्या रह जाएगा और कैबिनेट का औचित्य और मतलब क्या रह जाएगा।
हाई कोर्ट ने कहा था एलजी हैं एडमिनिस्ट्रेटर
दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दिल्ली सरकार ने छह अपील की हुई है दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले को दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है जिसमें दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली केंद्रीय शासित प्रदेश है और यहां एलजी एडमिनिस्ट्रेटर हैं। दिल्ली हाई कोर्ट ने 4 अगस्त को दिए फैसले में कहा था कि राजधानी दिल्ली अभी भी यूनियन टेरिटेरी है और संविधान के अनुच्छेद-239 एए के तहत स्पेशल प्रावधान किया गया है और इस तरह से राजधानी दिल्ली में एलजी एडमिनिस्ट्रेटर हैं।
विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार
दिल्ली सरकार की ओर से सीनियर ऐडवोकेट गोपाल सुब्रह्मयम ने दलील दी कि दिल्ली सरकार पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मांग रहा है लेकिन हाई कोर्ट का आदेश सही नहीं है जिसमें हाई कोर्ट ने कहा था कि एलजी दिल्ली के काउंसिल ऑफ मिनिस्टर की सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं है। 1992 में संविधान संशोधन किया गया था इसके तहत दिल्ली के लिए अनुच्छेद-239 एए के तहत स्पेशल प्रावधान किया गया था। इसके तहत दिल्ली स्टेट असेंबली को अधिकार दिया गया था कि वह कानून बना सकता है। वैसे यूनियन टेरिटेरी और यूनियन के लिए केंद्र को कानून बनाने का अधिकार है लेकिन दिल्ली के लिए असेंबली को अधिकार दिया गया है। लॉ ऐंड ऑर्डर, पुलिस और जमीनन केंद्र के पास है। गोपाल सुब्रह्मण्यम ने कहा कि वह राज्य की मांग नहीं कर रहे हैं लेकिन सेल्फ गवर्नमेंट की बात कर रहे है जो संविधान की गारंटी देता है। यहां कैबिनेट फॉर्म ऑफ गवर्नमेंट है और कानून बनाने का अधिकार है। संविधान ने स्पेशल स्टेटस दिया है ऐसे में पूर्ण राज्य की मांग नहीं है लेकिन संविधान सेल्फ गवर्नेंस की गारंटी देता है।
चुनी हुई सरकार पर केंद्र का नियंत्रण
मौजूदा जो स्थिति है उसके तहत जब भी दिल्ली सरकार और एलजी के बीच किसी मुद्दे को लेकर मतभेद हो तो मामले को राष्ट्रपति के पास एलजी भेजते हैं और राष्ट्रपति केंद्र सरकार की सलाह पर काम करते हैं। ऐसे में दिल्ली में चुनी हुई सरकार पर केंद्र का नियंत्रण है। अगर दिल्ली सरकार फैसला नहीं ले सकती तो फिर चुनी हुई सरकार बेमतलब हो जाएगी। जो स्थिति है उसके तहत अगर दिल्ली सरकार और एलजी में किसी मुद्दे पर मतभेद है तो मामले को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है और राष्ट्रपति केंद्र सरकार के कैबिनेट की सलाह से काम करते हैं और इस तरह दिल्ली सरकार को केंद्र सरकार सुपरवाइज करता है और ये पूरी तरह से संवैधानिक अमेंडमेंट का मजाक है। सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में देखना है कि जो संवैधानिक प्रावधान है उसका उद्देश्य क्या है। दिल्ली को स्पेशल दर्जा दिया गया है और यहां चुनी हुई सरकार है। सरकार को जनता की सेवा करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। मामले की सुनवाई जारी है और अगली सुनवाई 2 फरवरी की तारीख तय कर दी है।
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