Thursday, January 5, 2017

डेयरियों के गोबर से बनाई जाएगी बिजली


विशेष संवाददाता, नई दिल्ली

गंदगी के सही निस्तारण और राजधानी को प्रदूषण से बचाने के लिए नॉर्थ एमसीडी ने अपने इलाके की दो डेयरियों में आधुनिक बायोमिथेनेशन प्लांट लगाने का निर्णय लिया है। इन प्लांटों के जरिए बिजली पैदा की जाएगी, जिसका शुरुआती इस्तेमाल डेयरियों को जगमगाने के लिए किया जाएगा। इसके लिए जल्द ही कंसलटेंट की नियुक्ति की जा रही है।

नॉर्थ एमसीडी के सिविल लाइंस जोन में भलस्वा और झड़ौदा नाम की दो बड़ी डेयरियां हैं। इन दोनों डेयरियों को इमरजेंसी के दौरान बसाया गया था। इन दोनों डेयरियों में सैकड़ों भैंसों का पालन किया जाता है। समस्या यह है कि डेयरियों में भैंसों के गोबर के निस्तारण का कोई सिस्टम नहीं है और उसे सीवर लाइनों में ही बहा दिया जाता है। इसके लिए डेयरी में तो गंदगी रहती है, साथ ही सीवर लाइनों में उठने वाली बदबू के चलते आसपास की आबादी को परेशानी झेलनी पड़ती है। अब इस परेशानी से निजात दिलाने के लिए दोनों डेयरियों में बायोमिथेनेशन प्लांट लगाने का निर्णय लिया है।

नॉर्थ एमसीडी की स्थायी समिति के अध्यक्ष प्रवेश वाही के अनुसार उनके अफसरों ने पिछले दिनों पुणे शहर का दौरा किया था। वहां गोबर व अन्य अपशिष्ट पदार्थों को खपाने के लिए इस तरह के प्लांट लगाए गए हैं। वहां से पैदा होने वाली बिजली को आसपास की रिहायशी आबादी को दी जाती है, जिससे उनके घर जगमगाते हैं। उन्होंने कहा कि इन दोनों डेयरियों में आधुनिक प्लांट लगाए जाएंगे। इनसे गोबर से बिजली तो बनाई जाएगी ही साथ ही एक लाभ यह भी होगा कि जिन इलाकों से भी बिजली बनाने लायक अपशिष्ट निकलेगा, उसका भी इन प्लांट में प्रयोग किया जा सकेगा। शुरू में तो इन प्लांट से पैदा होने वाली बिजली का प्रयोग डेयरियों के लिए होगा। जब आगामी दिनों में बिजली का उत्पादन बढ़ जाएगा तो उसे आसपास की आबादी में सप्लाई किया जाएगा। इससे एमसीडी की आय में इजाफा भी होगा। उन्होंने कहा कि इस बाबत जल्द ही कंसलटेंट की नियुक्ति की जा रही है। उनसे मिली रिपोर्ट के आधार पर जल्द प्लांट का निर्माण शुरू कर दिया जाएगा।

क्या है बायोमिथेनेशन प्लांट

असल में यह प्लांट गोबर गैस प्लांट का ही बड़ा और आधुनिक रूप है। नए प्लांट में बड़ी मात्रा में गोबर को खपाया जाता है और बिना किसी बदबू व अन्य समस्या के बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। इन आधुनिक प्लांट की एक विशेषता यह भी होती है कि इनमें उस कचरे को भी खपाया जा सकता है, जिससे बिजली बनाई जा सकती है। बिजली बनने के बाद जो अपशिष्ट बचेगा, उसे खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

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