Sunday, January 1, 2017

मरीजों के लिए डेंटिस्ट ने सीखी साइन लैंग्वेज़

दुर्गेश नंदन झा, नई दिल्ली
एक तरफ जहां ओरल हाइजीन को लेकर हमारी सोसायटी में जागरूकता का स्तर बहुत कम है, वहीं एक युवा डॉक्टर सुनने में अक्षम बच्चों के बीच ओरल हाइजीन के लिए अवेयरनेस बढ़ा रही है। दिल्ली के मौलाना आज़ाद इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल हेल्थ सायेंस (MAIDS) से पब्लिक हेल्थ डेंटिस्ट्री में पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टर सुमबुल हाशमी इन स्पेशली एबल्ड बच्चों को इनकी भाषा में सेहत का नया पाठ पढ़ा रही हैं।

इन बच्चों को अपनी बात सही तरीके से पहुंचाने में सुमबुल को सबसे अधिक दिक्कत भाषा की थी, क्योंकि ये बच्चे सुन नहीं पाते। ऐसे में इस 27 वर्षीय डॉक्टर ने साइन लैंग्वेज़ सीखी। अब डेंटिस्ट सुमबुल बच्चों से आराम से कम्यूनिकेट कर पाती हैं। वह कहती हैं 'साइन लैंग्वेज सीखने से पहले तक मैं बच्चों को अपने तरीके से समझाने की कोशिश करती थी। तब मुझे अहसास हुआ कि उनकी दिक्कत को सही तरीके से समझने और सही ट्रीटमेंट देने के लिए बातचीत की एक समान भाषा की जरूरत है। इसलिए मैंने साइन लैंग्वेज़ सीखी।' साइन लैंग्वेज़ के जरिए सुनने में असर्मथ व्यक्ति को जेस्चर, हैंड मूवमेंट और फेशल एक्स्प्रेशन के जरिए अपनी बात समझाई जाती है।

हॉस्पिटल में डॉक्टर हाशमी का 2 से ज्यादा स्पेशल बच्चों से इंटरेक्शन नहीं हो पाता था। इसका कारण है कि ऐसे बच्चे अस्पताल तक कम ही आते हैं। ऐसे में इन्होंने एनजीओ और स्पेशल बच्चों को एजुकेट करने वाले स्कूल्स में विजिट करना शुरु कर दिया। एनजीओ और स्कूल के अपने अनुभव के बारे में डॉक्टर सुमबुल कहती हैं 'स्पेशल नीड्स वाले बच्चे बहुत शार्प होते हैं। तुरंत फीडबैक देते हैं। बस जरूरत इस बात की है कि उनसे सुविधाजनक तरीके से कम्यूनिकेट किया जाए।'

वह बताती हैं, 12 साल की पूजा को जन्म के वक्त से होंठ में छेद है। जिस कारण वह बोल नहीं पाती साथ ही उसे सुनने में भी दिक्कत है। उसे कई तरह कि डेंटल और ओरल हेल्थ से जुड़ी दिक्कतें थी, लेकिन वह डॉक्टर के पास जाने में कतराती थी। पूजा के पिता राजपाल का कहना है, अपनी बात सही तरीके से समझा पाने में असर्मथ पूजा हमेशा डॉक्टर्स से दूर भागती थी, लेकिन डॉक्टर हाशमी से मिलकर वह बहुत खुश है और सही तरीके से ट्रीटमेंट भी ले रही है क्योंकि डॉक्टर हाशमी उसकी बात समझ पाती हैं और अपनी बात उसे बता भी पाती हैं।

आंकड़ों की बात करें तो भारत में 1065.40 मिलियन बच्चों में से 0.4 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जो सुनने में पूरी तरह असमर्थ हैं या बमुश्किल थोड़ा-बहुत सुन पाते हैं। विशेषज्ञों की राय में हमारे देश में स्पेशली स्किल्ड डॉक्टर्स की बड़ी संख्या में जरूरत है। साथ ही स्पेशली एबल बच्चों और वयस्कों के बीच ओरल हेल्थ को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए अलग इंस्टिट्यूशन की जरूरत है।

MAIDS के डायरेक्टर एंड प्रिंसिपल डॉक्टर महेश वर्मा के अनुसार, आने वाले समय में हॉस्पिटल स्पेशल बच्चों की जरूरतों का ध्यान रखते हुए एक अलग ब्लॉक बनाने की प्लानिंग कर रहा है।

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