कभी मोमबत्तियों से रोशन होने वाली हवेली में इस बार न कोई रंगत दिखी और न ही कोई मुशायरे का आयोजन हुआ। न शेर पढ़े गए, न ही कव्वालों ने रंग जमाया। रोज की तरह शाम ढलते ही हवेली पर बड़ा सा ताला लगा दिया गया।
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