जसजीव गांधियक, नई दिल्ली
ऐसा लगता है कि दिल्ली का चिड़ियाघर न सिर्फ जानवरों की मौत का आंकड़ा कम कर और गलत पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट्स पेश करता रहा है बल्कि जानवरों को एक्सपार्ड दवाएं भी देता रहा है।
हैरानी की बात यह है कि सेंट्रल जू अथॉरिटी यानी CZA ने जांच में पाया कि कैटमाइन नाम से बिकने वाली महंगी दवा से जुड़े रिकॉर्ड विश्वसनीय नहीं थे। कैटमाइन का इस्तेमाल जानवरों पर किया जाता है। यह दर्द निवारक और अनीस्थटिक होती है।
जांच में CZA ने पाया कि जानवरों को कई ऐसी दवाएं दी जा रहीं थी जिनकी एक्सपायरी डेट निकल चुकी थी। इनमें एक रेप्लांटा नाम की दवा भी थी जिसका जू में इस्तेमाल हो रहा था। इतना ही नहीं, जानवरों को दी जाने वाली दवाओं का रिकॉर्ड भी पूरा नहीं था। CZA ने पाया कि कैटमाइन की जितनी मात्रा की सप्लाई की गई थी उसका करीब 20 फीसदी ही इस्तेमाल किया गया। एक अधिकारी ने बताया, 'दस्तावेजों में की गई एंट्री और स्टॉक-रिकॉर्ड के मेल न खाने से CZA को दवा के बाहर बेचे जाने का शक है क्योंकि ब्लैक मार्केट में इस महंगी दवा के अच्छे दाम मिलते हैं। रिकॉर्ड्स की जांच करने पर जू पर सवाल खड़े होते हैं।'
जू में रेप्लांटा की खरीद 2008 में की गई थी जिसपर 2010 की एक्सपायरी डेट होनी चाहिए थी लेकिन, स्टॉक रजिस्टर में उसकी एक्सपायरी डेट नहीं लिखी गई थी, जिसकी वजह से इसका इस्तेमाल 2010 के बाद भी हो रहा था। अपने अपराध पर पर्दा डालने के लिए चिड़ियाघर ने यह रिकॉर्ड नहीं रखा कि किन जानवरों पर कब किस दवा का इस्तेमाल किया गया।
अधिकारी ने कहा, 'एक्सपायर्ड दवाओं ने भले जानवरों को कोई नुकसान न पहुंचया हो लेकिन एक्सपायरी डेट निकल जाने के बाद इतने सालों तक ऐसी दवाओं का इस्तेमाल स्वीकार्य नहीं है।'
मामले का संज्ञान लेते हुए केंद्रीय महिला व बाल कल्याण मंत्री व पशु अधिकार ऐक्टिविस्ट मेनका गांधी ने वन व पर्यावरण मंत्रालय को चिट्ठी लिख दिल्ली के चिड़ियाघर के डायरेक्टर और स्टाफ के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ें
ऐसा लगता है कि दिल्ली का चिड़ियाघर न सिर्फ जानवरों की मौत का आंकड़ा कम कर और गलत पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट्स पेश करता रहा है बल्कि जानवरों को एक्सपार्ड दवाएं भी देता रहा है।
हैरानी की बात यह है कि सेंट्रल जू अथॉरिटी यानी CZA ने जांच में पाया कि कैटमाइन नाम से बिकने वाली महंगी दवा से जुड़े रिकॉर्ड विश्वसनीय नहीं थे। कैटमाइन का इस्तेमाल जानवरों पर किया जाता है। यह दर्द निवारक और अनीस्थटिक होती है।
जांच में CZA ने पाया कि जानवरों को कई ऐसी दवाएं दी जा रहीं थी जिनकी एक्सपायरी डेट निकल चुकी थी। इनमें एक रेप्लांटा नाम की दवा भी थी जिसका जू में इस्तेमाल हो रहा था। इतना ही नहीं, जानवरों को दी जाने वाली दवाओं का रिकॉर्ड भी पूरा नहीं था। CZA ने पाया कि कैटमाइन की जितनी मात्रा की सप्लाई की गई थी उसका करीब 20 फीसदी ही इस्तेमाल किया गया। एक अधिकारी ने बताया, 'दस्तावेजों में की गई एंट्री और स्टॉक-रिकॉर्ड के मेल न खाने से CZA को दवा के बाहर बेचे जाने का शक है क्योंकि ब्लैक मार्केट में इस महंगी दवा के अच्छे दाम मिलते हैं। रिकॉर्ड्स की जांच करने पर जू पर सवाल खड़े होते हैं।'
जू में रेप्लांटा की खरीद 2008 में की गई थी जिसपर 2010 की एक्सपायरी डेट होनी चाहिए थी लेकिन, स्टॉक रजिस्टर में उसकी एक्सपायरी डेट नहीं लिखी गई थी, जिसकी वजह से इसका इस्तेमाल 2010 के बाद भी हो रहा था। अपने अपराध पर पर्दा डालने के लिए चिड़ियाघर ने यह रिकॉर्ड नहीं रखा कि किन जानवरों पर कब किस दवा का इस्तेमाल किया गया।
अधिकारी ने कहा, 'एक्सपायर्ड दवाओं ने भले जानवरों को कोई नुकसान न पहुंचया हो लेकिन एक्सपायरी डेट निकल जाने के बाद इतने सालों तक ऐसी दवाओं का इस्तेमाल स्वीकार्य नहीं है।'
मामले का संज्ञान लेते हुए केंद्रीय महिला व बाल कल्याण मंत्री व पशु अधिकार ऐक्टिविस्ट मेनका गांधी ने वन व पर्यावरण मंत्रालय को चिट्ठी लिख दिल्ली के चिड़ियाघर के डायरेक्टर और स्टाफ के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
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