Saturday, November 26, 2016

नोटबंदी: गुरुद्वारों में बन रहा ज्यादा खाना

नई दिल्ली
नोटबंदी के बाद गुरुद्वारा कई लोगों के लिए सहारा बने हैं और वहां के लंगरों में जाकर लोग खाना खा रहे हैं। लंगर खाने के लिए गुरुद्वारों में बढ़ी भीड़ के चलते उनमें अब ज्यादा खाना बनने लगा है। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी (डीएसजीपीसी) से मिली जानकारी के मुताबिक, 9 नवंबर के बाद से दिल्ली के सभी बड़े गुरुद्वारों (बंगला साहिब, शीशगंज साहिब, रकाब गंज, नानक प्याऊ, मजनू का टीला) में लंगर करने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है। कमिटी ने बताया कि इन दिनों पहले के मुकाबले खर्च बढ़ गया है। पहले एक गुरुद्वारे में 500 किलो दाल, 700 किलो सब्जी बनती थी वहां अब 650-750 किलो दाल, 800-850 किलो सब्जी बनाई जा रही है। यह आम दिनों का आंकड़ा है। वीकेंड पर करीब-करीब 1.15 लाख लोगों ने लंगर किया।

रोजाना 150-250 रुपये कमाने वाले रामलाल नोटबंदी के बाद खाने के लिए लंगर पर निर्भर हैं। उनका कहना है कि 2 टाइम के खाने पर 60-80 रुपये खर्च हो जाते थे। हालात इतने बुरे हो गए हैं कि अब गुरुद्वारे के सहारे ही रहना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि वह 14 नवंबर से रोज गुरुद्वारा बंगला साहिब आ रहे हैं। राम लाल मजदूरी करके दिल्ली में गुजारा करते हैं। उन्हें नोटबंदी के बाद से काम नहीं मिला। खुले पैसे नहीं थे और न ही अकाउंट में ही कुछ था। कुछ दिन सेविंग से काम चलाया। रामलाल ने बताया कि वह दिन कैसे काट रहे हैं यह उनके अलावा कोई नहीं जान सकता। उन्होंने बताया कि उनकी तरह ही कई डेली वेज वर्कर गुरुद्वारों में ही लंगर कर रहे हैं।

कमिटी के प्रेजिडेंट मनजीत सिंह जीके ने बताया कि न सिर्फ गुरुद्वारों में लंगर की सेवा की गई बल्कि लाइनों में लगे लोगों को भी गुरुद्वारों से बनाकर लंगर कराया गया। जीके ने बताया कि पहले कुछ दिनों के हालात को देखते हुए लंगर की संख्या में इजाफा करने का फैसला लिया गया था। बंगला साहिब में ही डेली 40 हजार लोग लंगर कर रहे हैं। यहां आने वालों में आसपास के मजदूर हैं। जीके ने बताया कि श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश उत्सव के मौके पर होने वाले कार्यक्रमों में भी लोगों को लंगर का पैकेट बनाकर दिया जा रहा है।

शीशगंज गुरुद्वारा, नानक प्याऊ और मजनू के टीले में भी यही हाल है। कमिटी मेंबर ने बताया कि शीशगंज के पास कारपेंटर्स, पेंटर्स, मजदूर काफी बड़ी संख्या में रहते हैं। उन्होंने बताया कि जबसे नोटबंदी का ऐलान हुआ है उसके 2 दिन बाद से लंगर करने वालों की तादाद बढ़ गई है। सीलमपुर के रहने वाले ज्योति ने बताया कि काम नहीं मिल रहा है। ठेकेदार के पास पैसे देने के लिए कैश नहीं हैं। ऐसे में वह गुरुद्वारों में जाकर एक टाइम का खाना खाते हैं। उनके साथ उनका परिवार भी है। 2 छोटे बच्चे हैं। सभी सुबह नाश्ता और रात में लंगर गुरुद्वारे में ही करते हैं। मोहम्मद इकबाल ने बताया कि वह 16 नवंबर को दिल्ली आए थे। सोचा काम मिल जाएगा, लेकिन फैसला गलत निकला। खाने के पैसे तक नहीं बचे। ऐसे में गुरुद्वारों के बाहर या फिर कहीं भी लंगर लगता है तो वहीं खाकर गुजारा कर रहा हूं।

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