Friday, September 2, 2016

औद्योगिक संगठनों व बैंकों में ठप रहा काम

देश भर के विभिन्न श्रमिक संगठनों ने शुक्रवार को एक दिवसीय हड़ताल का समर्थन किया। इसके कारण राष्टÑीय राजधानी के विभिन्न औद्योगिक संगठनों सहित बैंकों में काम ठप रहा। हालांकि, परिवहन व्यवस्था पर इस हड़ताल का असर सामान्य रहा। दिल्ली-एनसीआर के केंद्रीय कर्मचारियों सहित ठेके पर काम करने वाले कई कर्मचारी संगठन सुबह से ही हड़ताल के मूड में नजर आए। कुछ केंद्रीय संगठनों ने अपने कार्यालय या नजदीकी स्थानों पर हड़ताल की जबकि ठेके पर काम करने वाले करीब एक दर्जन संगठनों ने संसद मार्ग पर इकट्ठा होकर इस राष्टÑव्यापी हड़ताल को समर्थन दिया।

दिल्ली-एनसीआर में ठेके पर काम करने वाले कर्मचारियों की मांग है कि उनको ‘समान काम का समान वेतन’ दिया जाए, कॉन्ट्रैक्ट लेबर एक्ट 1970 को सख्ती से लागू कराया जाए और आज की महंगाई के आंकड़ों के हिसाब से न्यूनतम वेतन दिया जाए। ऐसी ही तमाम मांगों को लेकर आइआरसीटीसी, आंगनबाड़ी, एमसीडी, रेलवे सफाई कर्मचारी, सीबीएसई, दिल्ली जल बोर्ड व एनडीएमसी सरीखे संगठन संसद मार्ग पर इकट्ठा हुए थे। आइआरसीटीसी एंप्लाइज यूनियन के महासचिव सुरजित श्यामल का कहना है कि पिछले दिनों केंद्र सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन 6474 रुपए के बजाय 9100 रुपए बढ़ाने की घोषणा कर मजदूरों व कर्मचारियों के बीच भ्रांति फैलाई, ताकि 2 सितंबर की देशव्यापी हड़ताल न हो, जबकि इससे देश के करीब 70 लाख केंद्रीय कर्मचारियों को फायदा होता।

महंगाई को देखते हुए सभी केंद्रीय श्रमिक संगठनों ने 18 हजार रुपए के न्यूनतम वेतन की मांग की है। आइआरसीटीसी के श्रमिक संगठन से जुड़ी शालिनी ने कहा कि आइआरसीटीसी में समान काम के लिए समान वेतन नहीं हैं। हमारी मांग है कि कर्मचारियों को कम से कम न्यूनतम वेतन दिया जाए। साथ ही ठेके पर काम करने वालों को बिना वजह निकाल दिया जाता है, इसलिए इन नौकरियों में सबसे अधिक अनिश्चितता है। दिल्ली आंगनबाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर यूनियन की महासचिव कमला ने कहा कि सरकार आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को मजदूर नहीं मानती।
हमारी मांग है कि सरकार हमें मजदूर माने और हेल्परों को ग्रेड-3 व कर्मचारियों को ग्रेड-4 का दर्जा दे। सामाजिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आंगनबाड़ी में काम करने वालों को 18000 रुपए न्यूनतम वेतन और कम से कम 3000 रुपए पेंशन दी जाए।

दिल्ली आॅफिस स्टैब्लिशमेंट एंप्लाइज यूनियन के बैनर तले हड़ताल में शामिल मोनिका का कहना था कि पिछले छह साल से उनके कार्यालय में वेतन नहीं बढ़ा है। साप्ताहिक अवकाश व अन्य छुट्टियां भी नहीं मिलतीं। उनका कहना था कि भले ही संसद में मातृत्व अवकाश की अवधि बढ़ गई हो, लेकिन वहां मातृत्व अवकाश के नाम पर छुट्टियां नहीं है और काम पर नहीं आने पर वेतन काटा जाता है। दक्षिणी नगर निगम में घरों में छिड़काव का करने वाले बुधराम व उनके साथी भी न्यूनतम मजदूरी और नियमितीकरण के मुद्दे पर हड़ताल में शामिल हुए थे। उनका कहना था कि वे 20 साल से निगम में काम कर रहे हैं, लेकिन आज तक उन्हें नियमित नहीं किया गया। यहां लोग 3500 रुपए वेतन पर काम करने को मजबूर हैं।

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