नई दिल्ली
न्यूनतम मजदूरी में रिकॉर्ड बढ़ोतरी का ऐलान कर चुकी दिल्ली सरकार ने अब इसे सियासी तौर पर भुनाने की तैयारी कर ली है। दूसरी ओर पार्टी को ट्रेड-इंडस्ट्री से नाराजगी मोल लेने का डर भी सता रहा है क्योंकि यह नाराजगी पंजाब और गुजरात जैसे औद्योगिक राज्यों में उसे दिक्कत दे सकती है। दिल्ली असेंबली इलेक्शन के महीनों बाद तक ट्रेड-इंडस्ट्री को साधने में जुटा रहा पार्टी का एक खेमा अब भी ट्रेड-इंडस्ट्री को साधने में जुटा है, लेकिन जानकारों का कहना है कि केजरीवाल ने आगामी चुनावों के लिए पार्टी के कोर वोटर्स यानी आम आदमी पर दांव खेलने की रणनीति बना ली है।
दिल्ली सरकार गुरुवार को तालकटोरा स्टेडियम में पहले श्रमिक संवाद का आयोजन करने जा रही है, जिसमें देश की ज्यादातर ट्रेड यूनियनें शिरकत कर रही हैं। सरकार इस मौके पर कुछ और बड़े ऐलान कर सकती है। श्रम मंत्री गोपाल राय कह चुके हैं कि यूनियनें मिनिमम वेजेज 20,000 रुपये करने की मांग कर रही हैं और इस पर विचार हो रहा है।
दिल्ली सरकार के हालिया फैसले के खिलाफ कोर्ट जा चुके अपेक्स चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री, दिल्ली फैक्ट्री ओनर्स फेडरेशन और अन्य कारोबारी संगठन सरकार के रुख से हैरान हैं। एक इंडस्ट्री प्रतिनिधि ने कहा, 'अभी 14,000 रुपये मिनिमम वेजेज को ही एलजी की मंजूरी नहीं मिली है, फिर नया शिगूफा छेड़ने से क्या फायदा? सरकार जानती है कि कुछ लागू नहीं होने जा रहा। ऐसे में सुर्खियां बटोरने में क्या जा रहा। हालांकि इसकी कीमत पार्टी को पंजाब और गुजरात जैसे औद्योगिक बेल्ट में चुकानी पड़ेगी। खुद केजरीवाल कह चुके हैं कि उनके पास चुनाव लड़ने के लिए पैसे नहीं हैं। अब इंडस्ट्री से चंदा पाना और मुश्किल होगा।'
मिनिमम वेजेज पर पार्टी लाइन से हटकर आंदोलन की चेतावनी दे चुकी आप ट्रेड सेल के कन्वेनर ब्रजेश गोयल ने कहा, 'इस मुद्दे पर मैं आज भी ट्रेड-इंडस्ट्री के साथ खड़ा हूं। उद्योग राजस्व के सबसे बड़े स्रोत हैं और रोजगार भी उन्हीं से मिलते हैं, लेकिन मैं नहीं समझता कि पंजाब या गुजरात में उद्यमियों का पार्टी से मोहभंग हो सकता है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि इसी दिल्ली सरकार ने ट्रेड-इंडस्ट्री के हक में कई बड़े फैसले लिए हैं।'
दिल्ली सरकार का एक और बड़ा फैसला उद्यमियों की आंखों में गड़ रहा है। सरकार ने इन दिनों अपनी पूरी ताकत 1639 अनधिकृत कॉलोनियों के विकास में झोंक दी है और इसकी जिम्मेदारी डीएसआईआईडीसी पर डाल दी है, जिसका मुख्य काम औद्योगिक विकास है। एजेंसी फिलहाल औद्योगिक इलाकों में कोई काम नहीं कर रही है। कारोबारी इस बात से भी नाराज हैं कि सरकार के ज्यादातर फैसलों को एलजी खारिज करते आ रहे हैं और भविष्य में भी यह बड़े फैसले करने की हालत में नजर नहीं आ रही।
न्यूनतम मजदूरी में रिकॉर्ड बढ़ोतरी का ऐलान कर चुकी दिल्ली सरकार ने अब इसे सियासी तौर पर भुनाने की तैयारी कर ली है। दूसरी ओर पार्टी को ट्रेड-इंडस्ट्री से नाराजगी मोल लेने का डर भी सता रहा है क्योंकि यह नाराजगी पंजाब और गुजरात जैसे औद्योगिक राज्यों में उसे दिक्कत दे सकती है। दिल्ली असेंबली इलेक्शन के महीनों बाद तक ट्रेड-इंडस्ट्री को साधने में जुटा रहा पार्टी का एक खेमा अब भी ट्रेड-इंडस्ट्री को साधने में जुटा है, लेकिन जानकारों का कहना है कि केजरीवाल ने आगामी चुनावों के लिए पार्टी के कोर वोटर्स यानी आम आदमी पर दांव खेलने की रणनीति बना ली है।
दिल्ली सरकार गुरुवार को तालकटोरा स्टेडियम में पहले श्रमिक संवाद का आयोजन करने जा रही है, जिसमें देश की ज्यादातर ट्रेड यूनियनें शिरकत कर रही हैं। सरकार इस मौके पर कुछ और बड़े ऐलान कर सकती है। श्रम मंत्री गोपाल राय कह चुके हैं कि यूनियनें मिनिमम वेजेज 20,000 रुपये करने की मांग कर रही हैं और इस पर विचार हो रहा है।
दिल्ली सरकार के हालिया फैसले के खिलाफ कोर्ट जा चुके अपेक्स चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री, दिल्ली फैक्ट्री ओनर्स फेडरेशन और अन्य कारोबारी संगठन सरकार के रुख से हैरान हैं। एक इंडस्ट्री प्रतिनिधि ने कहा, 'अभी 14,000 रुपये मिनिमम वेजेज को ही एलजी की मंजूरी नहीं मिली है, फिर नया शिगूफा छेड़ने से क्या फायदा? सरकार जानती है कि कुछ लागू नहीं होने जा रहा। ऐसे में सुर्खियां बटोरने में क्या जा रहा। हालांकि इसकी कीमत पार्टी को पंजाब और गुजरात जैसे औद्योगिक बेल्ट में चुकानी पड़ेगी। खुद केजरीवाल कह चुके हैं कि उनके पास चुनाव लड़ने के लिए पैसे नहीं हैं। अब इंडस्ट्री से चंदा पाना और मुश्किल होगा।'
मिनिमम वेजेज पर पार्टी लाइन से हटकर आंदोलन की चेतावनी दे चुकी आप ट्रेड सेल के कन्वेनर ब्रजेश गोयल ने कहा, 'इस मुद्दे पर मैं आज भी ट्रेड-इंडस्ट्री के साथ खड़ा हूं। उद्योग राजस्व के सबसे बड़े स्रोत हैं और रोजगार भी उन्हीं से मिलते हैं, लेकिन मैं नहीं समझता कि पंजाब या गुजरात में उद्यमियों का पार्टी से मोहभंग हो सकता है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि इसी दिल्ली सरकार ने ट्रेड-इंडस्ट्री के हक में कई बड़े फैसले लिए हैं।'
दिल्ली सरकार का एक और बड़ा फैसला उद्यमियों की आंखों में गड़ रहा है। सरकार ने इन दिनों अपनी पूरी ताकत 1639 अनधिकृत कॉलोनियों के विकास में झोंक दी है और इसकी जिम्मेदारी डीएसआईआईडीसी पर डाल दी है, जिसका मुख्य काम औद्योगिक विकास है। एजेंसी फिलहाल औद्योगिक इलाकों में कोई काम नहीं कर रही है। कारोबारी इस बात से भी नाराज हैं कि सरकार के ज्यादातर फैसलों को एलजी खारिज करते आ रहे हैं और भविष्य में भी यह बड़े फैसले करने की हालत में नजर नहीं आ रही।
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