Monday, August 29, 2016

नई दिल्ली: अस्पतालों का हाल बेहाल, एक बेड पर दो मरीज

बारिश के मौसम के कारण इन दिनों बुखार सहित अन्य बीमारियों के मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन राजधानी के अस्पताल इस तरह की किसी भी परिस्थिति को लेकर कितने गंभीर हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मरीजों को भर्ती होने के लिए एक अदद बिस्तर कर नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के लंबे चौड़े-दावे बेमानी ही नजर आते हैं।  अस्पतालों में बदइंतजामी का आलम कैसा है, इसकी एक बानगी देखते हैं। तेज बुखार व दर्द से बेहाल मंजू पिछले पांच-छह दिन से लालबहादुर शास्त्री अस्पताल में इलाज करा रही हैं, लेकिन उनको यहां लेटने तक की जगह नहीं मिल रही है। एक बिस्तर पर दो से तीन मरीजों को इलाज दे रहे इस अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में इतना भी इंतजाम नहीं है कि कि पुरुष व महिला मरीज को अलग-अलग बेड मिल पाए। यहां की इमरजेंसी में एक दिन में डेढ़ हजार से भी अधिक तरह-तरह के बुखार के मरीज आए।

डेंगू से पीड़ित इस मरीज की हालत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि रविवार को इनके प्लेटलेट्स गिर कर 25 हजार तक पहुंच गए थे। दर्द इतना कि न लेटने से चैन मिले न बैठने से। पूरे शरीर में चकत्ते व खुजली के मारे बुरा हाल, लेकिन अस्पताल में भर्ती होने की जगह नहीं। इन्हें डर है कि कभी भी ब्लीडिंग हो सकती है ऐसे में घर पर इलाज लेने की हिम्मत नहीं पड़ रही है, उस पर बारिश का मौसम। अचानक जरूरत पड़ी तो कहां जाएंगे क्या करेंगे,? इसलिए पहले ही अस्पताल पहुंचे, लेकिन डॉक्टर ने कहा कि भर्ती होने की जरूरत नही हैं, घर पर रह कर ही इलाज कराएं। काफी मिन्नतों के बाद डॉक्टर इमरजेंसी में भर्ती कर इलाज देने को राजी हुए, लेकिन बिस्तर न होने के कारण सलाह दी कि कुछ देर इमरजेंसी में रुक कर घर चली जाएं। लिहाजा वे इमरजेंसी में आकर सैलाइन वाटर चढ़वा कर घर चली जाती हैं।

राजवीर नगर से आने वाली इस मरीज ने बताया कि हालत यह है कि ग्लूकोज चढ़वाने तक के लिए अलग बिस्तर नही मिल पा रहा। एक ही बिस्तर पर उनको और एक अन्य पुरुष मरीज को सैलाइन चढ़ाया जा रहा था। टीबी से पीड़ित पुरुष मरीज के साथ लेटने में उनको असुविधा हो रही थी, लिहाजा वे बैठ कर सैलाइन चढ़वाने लगीं। एक अन्य मरीज जगवंती (बदला नाम) ने कहा कि इनके बगल में लेटे बुजुर्ग मरीज को छाती में टीबी है, जब से यह सुना तब से डर और बढ़ गया। वे कहती हंै कि सुना है कि खांसी वाली टीबी तेजी से फैलती है, लेकिन इलाज कराना है तो कोई चारा नहीं है। चिकनगुनिया से पीड़ित इस मरीज का भी बुरा हाल है। जोडों में दर्द इतना ज्यादा है कि पैर न सीधा हो रहा है न मुड़ रहा है। ऐसे में एक ही बिस्तर पर दो से तीन मरीजों को लिटाया जा रहा है। इस पर कोई सुनवाई नहीं। इलाज लेना है इसलिए रुके हैं। डर लग रहा है कि एक बीमारी ठीक होकर दूसरी न हो जाए।
यहीं जमीन पर बैठे राहुल को भी तेज बुखार था। दर्द से बेहाल राहुल ने कहा कि पिछले दस घंटे से ऐसे ही बिठा रखा है।

दवा का कोई असर नहीं हो रहा है। द२र्द में आराम नहीं, पैर नहीं मुड़ रहा है। निजी क्लीनिक में भी दिखाया। गरीब हैं फि र भी सात आठ सौ रुपए खर्च हो गए पर कोई राहत नहीं। हार कर यहां आए तो जमीन पर बिठा दिया गया। इस बीच परिजनों ने अंदर जाकर मिन्नतें कीं तब डॉक्टर ने वार्ड के भीतर बुलाया। अस्पताल सूत्रों ने बताया कि रात बारह बजे से लेकर शाम साढ़े चार बजे तक काय चिकित्सा के करीब डेढ़ हजार मरीज आ चुके थे। जिनमें से अधिकांश किसी न किसी बुखार से पीड़ित हैं। रविवार था, सो ओपीडी की दवा बांटने वाले काउंटर बंद थे। बताया गया कि इमरजेंसी की दवा का क ाउंटर चार साढे चार बजे खुलेगा। मरीजों ने बताया कि यहां रोज ओपीडी करीब चार बजे तक चलती है, लेकिन दवा के काउंटर डेढ़ बजे तक ही खुलते हैें। उसके बाद दो बजे से चार बजे तक लंच। चार बजे से रात दस बजे तक काउंटर फिर खुलेंगे, लेकिन सिर्फ इमरजेंसी के मरीजों के लिए।

 

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