दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को उपराज्यपाल नजीब जंग ने ऐतिहासिक करार दिया है, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि यह न तो किसी की जीत है न ही हार, बल्कि मुद्दा संवैधानिक वैधता का है जिसे कोर्ट ने स्पष्ट किया। दिल्ली सरकार के काम में बाधा डालने के आरोपों को खारिज करते हुए नजीब जंग ने कहा कि उन्होंने हमेशा दिल्ली की चुनी हुई सरकार का संविधान के दायरे में समर्थन किया है। उधर दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ जल्द ही सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि लोकतंत्र के सामने बड़ा सवाल है कि दिल्ली में ‘इलेक्टेड’ लोगों का या ‘सेलेक्टेड’ लोगों का शासन हो?
जंग और केजरीवाल सरकार के बीच पिछले कई महीनों से जारी रस्साकशी में दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले ने यह तो स्पष्ट कर दिया कि दिल्ली की बागडोर किसके हाथ में है, लेकिन यह तनाव अभी खत्म होता नहीं नजर आता। दोनों पक्षों ने प्रेस वार्ता कर अपनी-अपनी स्थिति स्पष्ट की। उपराज्यपाल ने फैसले के परिप्रेक्ष्य में अपनी शक्तियां और अपने संवैधानिक दायरे की बात कही, वहीं दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट जाने का एलान किया। उपराज्यपाल ने दिल्ली की पृष्ठभूमि का उल्लेख करते हुए कहा कि विधानसभा और उपराज्यपाल के राष्ट्रपति के प्रतिनिध के रूप में काम करने से विरोधाभास होना तय था इसलिए इसे केंद्रशासित प्रदेश रखा गया। नजीब जंग ने कहा, ‘यह फैसला जंग बनाम केजरीवाल का नहीं है, बल्कि कोर्ट ने केवल संवैधानिक स्थिति स्पष्ट की है। हमारी तरफ से हमेशा सहयोग का हाथ बढ़ा है। कोई क्रोध या अपशब्द का उपयोग नहीं किया गया’।’
जंग ने कहा, ‘पद के शपथ में एक अहम पंक्ति है-संविधान का संरक्षण, सुरक्षा और बचाव और मेरे पास संविधान के एक कॉमा के खिलाफ भी जाने का विकल्प नहीं है। दिल्ली सरकार के साथ काम को लेकर कोई विवाद नहीं है, संविधान के अनुसार केंद्र को रिपोर्ट किया है लेकिन यह कहना गलत है कि हमने दिल्ली सरकार के खिलाफ काम किया। हमने दिल्ली की चुनी हुई सरकार को हर संभव मदद की कोशिश की है। हमारी मजबूरी है कि जो संविधान के अनुसार नहीं है उसे वापस करते हैं ताकि दुरुस्त कर भेजें’।
उपराज्यपाल ने कहा कि फैसले से साफ हो गया है कि सेवाओं से जुड़े विषयों को उपराज्यपाल देखेंगे और कुछ मुद्दों पर केंद्र की सहमति की जरूरत नहीं है और वह उनपर फैसला ले सकते हैं। दिल्ली सरकार के 14 विधेयकों को उनके लौटाए जाने की बात को भी जंग ने खारिज किया और कहा कि वित्तीय मुद्दों से संबंधित पांच विधेयक ही ऐसे हैं जो जून में वापस आए थे। उपराज्यपाल ने कहा कि दिल्ली सरकार के 99 फीसद कागजों को मंजूरी दी है, कुछ-एक में नियम सम्मत नहीं होने से वापस भेजा गया। उन्होंने कहा कि पोस्टिंग के 150-200 मामले में केवल 3-4 पर ही सवाल उठाए गए।
उधर, दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा है कि दिल्ली में यह स्थिति और उसके खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की जरूरत इसलिए पड़ी कि दिल्ली सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करना शुरू किया और इस काम को करने देने से रोका जाने लगा।
हाई कोर्ट के फैसले से असहमति जताते हुए सिसोदिया ने कहा, ‘हम सुप्रीम कोर्ट में अपनी बात रखेंगे, केंद्र और राज्य के बीच के मुद्दे को सुलझाने का अंतिम अधिकार सुप्रीम कोर्ट को है और हमें पूरी उम्मीद है’। सिसोदिया ने सवाल किया कि जब केवल उपराज्यपाल से दिल्ली को चलाना था तो संविधान के 69वें संशोधन के अनुसार दिल्ली को ‘विधायिका के साथ केंद्रशासित प्रदेश’ का दर्जा देने की जरूरत क्या थी। उन्होंने यह भी पूछा कि अब दिल्ली के लोग अपनी समस्या लेकर कहां जाएं और यही सवाल वे सर्वोच्च न्यायालय के समझ रखेंगे, यह लड़ाई संविधान में उल्लेखित ‘वी द पिपुल’ की है। वहीं दिल्ली सरकार के सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को इस तरह के फैसले का पूरा भान था और वे इस पर आगे के रणनीति की तैयारी कर चुके हैं।
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