Wednesday, July 6, 2016

चोरों ने खोजे गाड़ी चुराने के नए फंडे

नई दिल्ली
बदलते वक्त और तकनीक के साथ दिल्ली के ऑटो-लिफ्टर्स अब मॉडर्न बन चुके हैं। उन्होंने की-चिप जैसी मॉडर्न तकनीक तक का तोड़ निकाल लिया है। हालांकि गियर-लॉक जैसा पुराना तरीका आज भी कार चोरों के लिए सिरदर्द ही है, लेकिन लोग की-चिप को ज्यादा कारगर मानते हुए कार में गियर लॉक नहीं लगवाते। पहले माना जाता था कि चिप वाली चाबी की गाड़ी चोरी करना संभव नहीं है, लेकिन चोरों ने इस गलतफहमी को दो तरीकों से दूर कर दिया है।

ट्रेडिशनल तरीका
गाड़ी चुराने का पुराना तरीका मास्टर-की से गाड़ी खोलना है। अब पुरानी गाड़ी वहीं चोरी की जा रही हैं, जिन्हें ऑटो-पार्ट्स के लिए इसे कटवाना होता है। नए ट्रेनिंग ले रहे ऑटोलिफ्टर भी गाड़ी चोरी करना सीखते हुए पुरानी गाड़ी उठा रहे हैं।

पहला तरीका
चोरी का एक तरीका है कार का ईसीएम लॉक चेंज करना। आज 99 पर्सेंट केसों में ईसीएम लॉक बदल कर ही गाड़ी खोली जा रही है। रात में कार की विंडो का शीशा तोड़ कर एक चोर घुसता है और इग्निशन में ड्रिल मशीन डाल कर स्टेयरिंग को फ्री कर देता है। अब दूसरा चोर डैश बोर्ड को खोलकर उसके नीचे लगे ईसीएम के तार काट कर उसे डिसकनेक्ट देता है। खुद साथ लेकर आए ईसीएम में वह कटे तार लगा देता है। गाड़ी की मेमरी चेंज होकर अब उनके ईसीएम से कनेक्ट हो जाती है। अब यह लोग गा
ड़ी का लॉक चेंज कर अपना लॉक फिट कर देते हैं।

दूसरा तरीका
अब तक स्कैनर की मदद से गाड़ी चुराने वाला एक ही गिरोह पकड़ा जा सका है। गाड़ी की स्कैनिंग करने वाला स्कैनर हर ऑटोमोबाइल कंपनी का अलग होता है। स्कैनर से सिर्फ वही चोर गाड़ी चोरी कर सकता है, जिसने उस गाड़ी को बनाने वाली ऑटोमोबाइल कंपनी में काम किया होता है।

स्कैनर से गाड़ी खोलने के लिए ड्रिल मशीन या ईसीएम लॉक खोलने की जरूरत नहीं पड़ती। दरअसल हर ऑटोमोबाइल कंपनी का यूनिक कोड होता है। वह कोड करीब एक महीने तक काम करता है। कंपनी में काम कर रहे कर्मचारी को वह कोड पता होता है। अगर कोड एक्सपायर हो जाता है या किसी वजह से यह कोड नहीं लग पा रहा तो उसी वक्त कार में बैठ कर इंटरनेट से कंपनी की पास मौजूद डेटा से नया कोड मालूम कर लिया जाता है।

स्कैनर की मदद से की जाने वाली कार चोरी में कार की स्कैनिंग की जाती है। स्कैनिंग में गाड़ी का पूरा डेटा आ जाता है। हर ऑटो मोबाइल कंपनी का अपना स्कैनर होता है, जिसकी कीमत लाखों में होती है। अगर आज रिसीवर से ए कंपनी की गाड़ी चुराने का ऑर्डर मिला है तो ऑटोलिफ्टर अपने पास महज एक ही चाबी लेकर आएंगे। वह चाबी ए कंपनी की गाड़ी की होगी।

उस चाबी में चिप तो होगी, लेकिन मेमरी नहीं होगी। ये टारगेट की जाने वाली गाड़ी का शीशा तोड़ कर खिड़की के रास्ते अंदर घुस जाते हैं। बगैर गेट खोले शीशा तोड़ कर विंडो से अंदर कार में घुसने पर किसी भी कार का सेंट्रल लॉकिंग अलार्म नहीं बजता। इसलिए कार में अंदर घुसने के लिए विंडो का रूट लिया जाता है। अब स्कैनर को इग्निशन में लगाया जाता है। गाड़ी की पूरी मेमरी स्कैनर में आ जाती है। स्कैनर की मदद से उस गाड़ी की पूरी मेमरी डिलीट कर देते हैं।

स्कैनर में डिलीट का ऑप्शन आता है। अब जो ऑटोलिफ्टर्स उनके पास मौजूद चाबी में किसी और गाड़ी की मेमरी डाल देते हैं, जो इनके पास स्कैनर में पहले से ही सेव होती है। यह मेमरी किसी और गाड़ी की होती है। अब गाड़ी चोरी कर ली जाती है। इस तकनीक में स्टियरिंग फ्री करने की जरूरत नहीं होती। स्कैनर और ईसीएम लॉक बदल कर चोरी के मामलों में कार के अंदर चोर विंडो का शीशा तोड़ कर ही घुसते हैं। इस तरीके से सेंट्रल लॉकिंग अलार्म नहीं बजता। पुलिस ने टोयोटा कंपनी में लेटर भेज कर बताया है कि फॉरच्युनर में पीछे लेफ्ट वाला गेट खोलने पर भी अलार्म नहीं बजता।

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