Thursday, July 7, 2016

कुमार पर हल्ला और केजरीवाल की चुप्पी

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सबसे करीबी अधिकारी राजेंद्र कुमार की गिरफ्तारी पर मुख्यमंत्री और आप के सर्वेसर्वा केजरीवाल पिछली बार से विपरित अब तक चुप्पी लगाए हुए हैं। कुमार को बचाने की हर कोशिश तो हो ही रही है। एग्मू (अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश) कैडर के आइएएस अधिकारियों का राज्य (कैडर नियंत्रण) गृह मंत्रालय होता है, उसे ही इन अधिकारियों को नियुक्ति, राज्यों में तबादलों के साथ-साथ निलंबन करने और आरोप साबित न होने पर निलंबन रद्द करने का अधिकार है। 24 घंटे से ज्यादा गिरफ्तारी के बाद गृह मंत्रालय या संबंधित राज्य ऐसे अधिकारियों को निलंबित करता है।

राजेंद्र कुमार के मामले में गृह मंत्रालय के आदेश आने से पहले ही राज्य सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया, जिससे थोड़ा सा मामला अनुकूल होते ही निलंबन रद्द किया जा सके। इस मुद्दे पर भी आने वाले दिनों में दिल्ली सरकार की केंद्रीय गृह मंत्रालय से ठनने वाली है।
माना जा रहा है कि इस बार केजरीवाल खुल कर इसलिए मैदान में नहीं आ रहे हैं कि सीबीआइ लगातार यह माहौल बनाने में लगी है कि राजेंद्र कुमार ने न केवल अपने लोगों से एंडेवर सिस्टम कंपनी बनवाकर उसे बिना सही टेंडर के काम दिए बल्कि उन्होंने सीधा रिश्वत लिया। यह सही हो सकता है कि जिस तरह से कारवाई की गई वह स्वभाविक तरीके से नहीं होती। दिल्ली डायलॉग कमीशन के पूर्व अधिकारी आशीष जोशी को जिस तरह से दिल्ली सराकर में लाया गया और थोड़े ही दिन बाद हटाया गया उससे वे बेहद नाराज हो गए। दिल्ली सरकार के अधिकारियों का एक वर्ग राजेंद्र कुमार को सुपर अधिकारी बनाए जाने से नाराज तो था ही जोशी उनके माध्यम बन गए। पहले तो यह अजीब लग रहा था कि मामला शीला दीक्षित के समय का और बचाव केजरीवाल क्यों कर रहे हैं।

राजेंद्र कुमार जैसे अधिकारियों को अपवाद माना जा सकता है। लेकिन ज्यादातर अधिकारी तो केवल अधिकारी होते हैं। अभी उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया जिस तरह से अधिकारियों के तबादलों को मुद्दा बना रहे हैं उसी तरह का मुद्दा कुछ समय पहले दिल्ली जल बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और वैट आयुक्त रहे विजय कुमार के तबादले पर बनाया था। आज वे विजय कुमार उपराज्यपाल के सचिव बना दिए गए हैं। दिल्ली में अधिकारियों की कमी का रोना रोया जा रहा है और विशेषज्ञ से काम करवाने की बात कही जा रही है। जबकि आठ अधिकारी चार महीने से नियुक्ति के इंतजार में बैठे हुए हैं। दिल्ली में आइएएस के कुल 58 स्वीकृत पद हैं और करीब 90 आइएएस दिल्ली में तैनात हैं। दानिक्स अधिकारियों की कुल तादात 360 है। उनमें से ज्यादा तो हर समय दिल्ली में ही रहते हैं। अगर अधिकारियों की आप सरकार को इतनी फिक्र है तो अनेक आइएएस पदों पर गैर आइएएस और दानिक्स के पदों पर दूसरे कैडर के अधिकारी क्यों तैनात किए गए हैं।
वैसे दिल्ली के विधान के बारे में आम आदमी पार्टी के नेता भी जानते हैं। लेकिन राजेंद्र कुमार को तो किसी अन्य आला अफसर की तरह जानकारी होगी। 1991 में संविधान में 239 एए के तहत संशोधन करके दिल्ली को विधानसभा दी गई।

दिल्ली आज भी केंद्र शासित प्रदेश है और इस नाते उसका शासक राष्ट्रपति होता है। वह अपना शासन उपराज्यपाल के माध्यम से उसी तरह चलाता है जैसे देश के अन्य छह केंद्रशासित प्रदेशों में। उपराज्यपाल ही केंद्र सरकार की ओर से अफसरों का सालाना गोपनीय रिपोर्ट लिखता है। दिल्ली के इतिहास में पहली बार एक साथ आइएएस और दानिक्स अफसरों ने पिछले साल 31 दिसंबर को हड़ताल की। केजरीवाल को इस बात का जवाब देना होगा कि आखिर क्यों अनेक अधिकारी जो पहले दिल्ली आने के लिए बेताब रहते थे वे दिल्ली सरकार से जाने के लिए पैरवी क्यों कर रहे हैं?

महज सात दिन के लिए मुख्य सचिव का प्रभार देने या कोई पत्र नियमानुसार राजनिवास भेजने जैसे मुद्दे पर वरिष्ठ अधिकारी शकुंतला गैमलिन या बेहद ईमानदार अधिकारी अरर्निदों मजूमदार को सरेआम बेइज्जत करने से सरकार का क्या मकसद हल हुआ। इसी का परिणाम हुआ कि जिस परिमल राय को खास मान कर केजरीवाल महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी दे रहे थे, उन्होंने तभी काम शुरू किया जब राजनिवास से उसकी मंजूरी मिली। दिल्ली से बाहर नियुक्त हो गए एसएन सहाय हों या इस महीने रिटायर हो रहे रमेश नेगी कोई भी अधिकारी किसी पार्टी की राजनीति के लिए अपनी नौकरी की बलि नहीं दे सकता है। अब तो यह भी खतरा लगने लगा है कि कहीं राजेंद्र कुमार की जांच केजरीवाल सरकार तक न पहुंच जाए।

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