Tuesday, July 5, 2016

केंद्र के खिलाफ दिल्ली सरकार की याचिका, सुप्रीम कोर्ट के एक और जज ने किया किनारा

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव उच्चतम न्यायालय के मंगलवार (5 जुलाई) को ऐसे दूसरे न्यायाधीश हो गए, जिन्होंने दिल्ली सरकार की शक्तियों को घोषित करने और इसकी शक्तियों के दायरे सहित कई मुद्दे पर फैसला देने से उच्च न्यायालय को रोकने की मांग करने वाली उसकी याचिका से खुद को अलग कर लिया है। यह याचिका न्यायमूर्ति एआर दवे और न्यायमूर्ति राव के समक्ष सूचीबद्ध थी। एक दिन पहले ही शीर्ष न्यायालय के एक अन्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेएस खेहर ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।

दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुई वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने इस मामले का जिक्र पहले न्यायमूर्ति दवे की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष किया था। न्यायमूर्ति राव के हटने के बारे में पुष्टि होने के बाद जयसिंह प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अदालत में गईं और इस मामले की फौरन सुनवाई की मांग करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि वह शायद मामले को लेकर बदकिस्मत हैं क्योंकि सुनवाई बार बार टल रही है। सीजेआई ने फिर जयसिंह को भरोसा दिलाया कि मामले को शुक्रवार (8 जुलाई) को तीसरे न्यायाधीश के समक्ष सूचीबद्ध कराया जाएगा।

गौरतलब है कि सोमवार (4 जुलाई) को अरविंद केजरीवाल सरकार ने शीर्ष न्यायालय में यह सुनिश्चित करने की नाकाम कोशिश की कि राज्य के रूप में दिल्ली की शक्तियों की घोषणा के उसके कानूनी वाद पर दिल्ली उच्च न्यायालय को उसकी शक्तियों के दायरे सहित कई अन्य मुद्दों पर फैसला देने से रोकने के उसके अनुरोध के साथ सुनवाई हो। इसके पहले, न्यायालय दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई करने के लिए राजी हुआ था। अपनी याचिका में दिल्ली सरकार ने दावा किया कि संविधान के तहत सिर्फ शीर्ष न्यायालय के पास राज्यों और केंद्र से जुड़े मुद्दों से निपटने का क्षेत्राधिकार है।

आप सरकार ने आरोप लगाया है कि यह अपने ज्यादातर फैसलों को लागू करने में अक्षम रही है क्योंकि उपराज्यपाल नजीब जंग के इशारे पर या तो उन्हें रद्द कर दिया गया या बदल दिया गया। इसके पीछे यह आधार दिया गया कि दिल्ली एक पूर्ण राज्य नहीं है। अपनी अपील में शहर की सरकार ने आरोप लगाया कि राज्य में जनसेवा करने की इसकी शक्तियां प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई हैं। इसने यह सवाल भी उठाया कि क्या भारत सरकार राज्य सरकार की सारी शक्तियां अपने हाथों में ले सकती है। गौरतलब है कि दिल्ली सरकार और एलजी के बीच विभिन्न मुद्दों पर शक्ति को लेकर तकरार चल रहा है। इनमें भ्रष्टाचार रोधी शाखा पर नियंत्रण और नौकरशाहों का तबादला या बनाए रखने की शक्ति भी शामिल है।

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