दुर्गेश नंदन झा, दिल्ली
मुकेश कुमार (48 साल) दो महीने पहले जब अपने संक्रमित पैर का इलाज कराने सफदरजंग हॉस्पिटल आए थे, उन्होंने डॉक्टरों को दुविधा में डाल दिया था।
मुकेश के पैर में भयंकर इंफेक्शन हो गया था और डॉक्टरों ने उनसे कहा था कि बोन फिक्शेसन सर्जरी के जरिए उनका पैर बचाया जा सकता है, लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया। वजह जल्दी ही साफ हो गई जब उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। वह अस्पताल और दवाइयों का खर्च नहीं उठा सकते थे। लेकिन खुश कर देने वाली बात यह है कि डॉक्टरों और मेडिकल टीम ने उनके लिए पैसे का इंतजाम किया और उनका पैर बचा लिया।
मुकेश फिलहाल हॉस्पिटल के आर्थोपेडिक वार्ड में हैं और उनकी हालत में सुधार हो रहा है। उन्होंने कहा कि डॉक्टरों ने उन्हें नई जिंदगी दी है जिसके लिए वह उनका जितना शुक्रिया अदा करें, कम है। मुकेश ने कहा,'मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं दोबारा अपने पैर इस्तेमाल कर पाऊंगा। मैं किसी तरह इससे छुटकारा पाना चाहता था क्योंकि इसे दुर्गंध आती है और बहुत दर्द होता था।'
मुकेश पेशे से एक ड्राइवर हैं। साल 2005 में वह एक हादसे का शिकार हुए जिसमें उनका पैर घायल हो गया। संक्रमित पैर पर उनके इलाज का कोई असर नहीं हुआ। उन्होंने बताया,'मैं बिस्तर पर पड़ा रहता था। मेरी पत्नी और बेटी ने घरों में जाकर काम करना शूरू कर दिया ताकि गृहस्थी चलाई जा सके और मेरे लिए दवाइयां खरीदी जा सकें।'
डॉक्टरों का कहना है कि वह अब अगले छह-आठ महीनों में फिर से चल सकेंगे। एक ऑर्थोपेडिक सर्जन ने कहा,'मुकेश की तरह सैकड़ों दूसरे लोग भी हैं जिनके पास बीपीएल कार्ड नहीं होता और इसलिए वे सस्ते में इलाज से वंचित रह जाते हैं। कागजी कार्यवाही में बहुत वक्त लगता है। हम ऐसे बहुत से मरीजों को देखते हैं जो मदद का इंतजार करते-करते ही चल बसते हैं।'
ऐम्स में रोज तकरीबन 8,000 मरीज रोज आते हैं। हाल ही में ऐम्स ने फंड बढ़ाने के लिए पब्लिक डोनेशन की अपील की। कई बार ऐसे मौके आते हैं जब कोर्ट ने गरीबों का इलाज न करने के लिए ऐम्स को लताड़ लगाता है।
Read this story in English: On last leg of hope, doctors help him stand up
मुकेश कुमार (48 साल) दो महीने पहले जब अपने संक्रमित पैर का इलाज कराने सफदरजंग हॉस्पिटल आए थे, उन्होंने डॉक्टरों को दुविधा में डाल दिया था।
मुकेश के पैर में भयंकर इंफेक्शन हो गया था और डॉक्टरों ने उनसे कहा था कि बोन फिक्शेसन सर्जरी के जरिए उनका पैर बचाया जा सकता है, लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया। वजह जल्दी ही साफ हो गई जब उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। वह अस्पताल और दवाइयों का खर्च नहीं उठा सकते थे। लेकिन खुश कर देने वाली बात यह है कि डॉक्टरों और मेडिकल टीम ने उनके लिए पैसे का इंतजाम किया और उनका पैर बचा लिया।
मुकेश फिलहाल हॉस्पिटल के आर्थोपेडिक वार्ड में हैं और उनकी हालत में सुधार हो रहा है। उन्होंने कहा कि डॉक्टरों ने उन्हें नई जिंदगी दी है जिसके लिए वह उनका जितना शुक्रिया अदा करें, कम है। मुकेश ने कहा,'मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं दोबारा अपने पैर इस्तेमाल कर पाऊंगा। मैं किसी तरह इससे छुटकारा पाना चाहता था क्योंकि इसे दुर्गंध आती है और बहुत दर्द होता था।'
मुकेश पेशे से एक ड्राइवर हैं। साल 2005 में वह एक हादसे का शिकार हुए जिसमें उनका पैर घायल हो गया। संक्रमित पैर पर उनके इलाज का कोई असर नहीं हुआ। उन्होंने बताया,'मैं बिस्तर पर पड़ा रहता था। मेरी पत्नी और बेटी ने घरों में जाकर काम करना शूरू कर दिया ताकि गृहस्थी चलाई जा सके और मेरे लिए दवाइयां खरीदी जा सकें।'
डॉक्टरों का कहना है कि वह अब अगले छह-आठ महीनों में फिर से चल सकेंगे। एक ऑर्थोपेडिक सर्जन ने कहा,'मुकेश की तरह सैकड़ों दूसरे लोग भी हैं जिनके पास बीपीएल कार्ड नहीं होता और इसलिए वे सस्ते में इलाज से वंचित रह जाते हैं। कागजी कार्यवाही में बहुत वक्त लगता है। हम ऐसे बहुत से मरीजों को देखते हैं जो मदद का इंतजार करते-करते ही चल बसते हैं।'
ऐम्स में रोज तकरीबन 8,000 मरीज रोज आते हैं। हाल ही में ऐम्स ने फंड बढ़ाने के लिए पब्लिक डोनेशन की अपील की। कई बार ऐसे मौके आते हैं जब कोर्ट ने गरीबों का इलाज न करने के लिए ऐम्स को लताड़ लगाता है।
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